विवादित ढांचा ध्वंस मामले में जल्द आयेगा फैसला, आडवाणी-जोशी की धड़कनें बढ़ीं

verdict-on-babri-demolition-will-be-announced-in-april-2020
अजय कुमार । Nov 21 2019 12:59PM

सुप्रीम कोर्ट ने 09 नवंबर 2019 को अयोध्या विवाद पर फैसला देते समय ढांचा विध्वंस को लेकर कठोर टिप्पणियां की थीं, जिसे विवादित ढांचा गिराए जाने की सुनवाई कर रही सीबीआई की अदालत स्वतः संज्ञान में ले सकती है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में विवादित जमीन रामलला विराजमान को सौंपने के साथ ही सदियों पुराने मुकदमे का पटाक्षेप कर दिया है, लेकिन सुप्रीम अदालत ने विवादित ढांचा गिराने वालों के खिलाफ सख्त टिप्पणी करके उन नेताओं और साधु संतों के दिलों की धड़कनें बढ़ा दी हैं जिनके खिलाफ विवादित ढांचा गिराये जाने सहित कई आपराधिक धाराओं में मुकदमा चल रहा है और जिस पर अगले वर्ष अप्रैल तक फैसला भी आ सकता है।

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 09 नवंबर 2019 को अयोध्या विवाद पर फैसला देते समय ढांचा विध्वंस को लेकर कठोर टिप्पणियां की थीं, जिसे विवादित ढांचा गिराए जाने की सुनवाई कर रही सीबीआई की अदालत स्वतः संज्ञान में ले सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला देते समय अपनी टिप्पणियों में यह लिखने से गुरेज किया कि ट्रायल कोर्ट में चल रहा मुकदमा सर्वोच्च अदालत की इस मुकदमे में की गई टिप्पणियों से प्रभावित नहीं होगा और केस साक्ष्य व परिस्थितियों के आधार पर चलेगा।

इसे भी पढ़ें: फैसला मानने की बात से मुकर गया लॉ बोर्ड, इस वादाखिलाफी का क्या करें ?

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ ने फैसला देते समय इस बात को रेखांकित किया था कि छह दिसंबर 1992 को गिराया गया ढांचा देश के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के विपरीत है और यह नहीं होना चाहिए था। ढांचा गिराने का काम बेहद गैरकानूनी था। ये टिप्पणियां करते हुए ही अदालत ने मुसलमानों को पांच एकड़ भूमि अयोध्या में ही देने का आदेश दिया था। यह आदेश संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत पूर्ण न्याय करने के लिए दिया है।

संविधान विशेषज्ञों के अनुसार, संविधान पीठ की ये टिप्पणियां एक तरीके से नेताओं पर दोषारोपण करती हैं जो एक गंभीर बात है। ट्रायल जज इस बात को गंभीरता से ले सकते हैं। यहां तक कि सर्वोच्च अदालत जब किसी को जमानत देता है तो साथ में यह जरूर लिखता है कि जमानत के दौरान की गई बहस और टिप्पणियों का ट्रायल पर कोई असर नहीं होगा। लेकिन इस मामले में सर्वोच्च अदालत ने यह नहीं लिखा है। बहुत संभावना है कि सुप्रीम कोर्ट के रूख को भांप कर सीबीआई कोर्ट के ट्रायल जज सभी नेताओं को दंडित करें। यह मुकदमा पिछले 25 वर्षों से विशेष सीबीआई अदालत में लंबित है।

ढांचा गिराने के बारे में मुकदमा पहले रायबरेली की सीबीआई अदालत में चल रहा था, बाद में इसे लखनऊ की सीबीआई अदालत में स्थानांतरित कर दिया गया था। इस आपराधिक मुकदमे का फैसला अप्रैल 2020 या उससे पहले आ सकता है। इस मामले में भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह, उमा भारती, विनय कटियार, साध्वी ऋतंभरा सहित विहिप के नेता आरोपी बनाये गये हैं। इन नेताओं पर साजिश करके (आईपीसी की धारा 120 बी) अयोध्या में कारसेवकों के साथ 6 दिसंबर 1992 को 16वीं सदी के ढांचे को गिराने का आरोप है।

ढांचा गिराने के मामले का ट्रायल लखनऊ में विशेष सीबीआई जज सुरेंद्र कुमार यादव की कोर्ट में रोजाना के आधार पर चल रहा है। कल्याण सिंह के राजस्थान के राज्यपाल पद से हटने के बाद विशेष कोर्ट ने पिछले दिनों उन्हें समन किया था और जमानत पर छोड़ा है।

इसे भी पढ़ें: राममंदिर निर्माण की राह से बाधा तो हट गयी लेकिन नये झगड़े भी शुरू हो गये

बता दें कि उक्त मामले की सुनवाई कर रहे न्यायाधीश सुरेन्द्र यादव का कार्यकाल 30 सितंबर को खत्म हो रहा था लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर यूपी सरकार ने उनका कार्यकाल मुकदमे का ट्रायल निपटाने या 30 अप्रैल तक बढ़ा दिया है। इस संबंध में उत्तर प्रदेश सरकार के वकील कमलेंद्र मिश्रा और राजीव दूबे ने कहा कि शीर्ष अदालत के 23 अगस्त के आदेश के आधार पर सरकार ने सुरेंद्र कुमार का कार्यकाल मुकदमे का फैसला देने या 30 अप्रैल तक बढ़ा दिया है। उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत के आदेश पर यादव की सुरक्षा व्यवस्था में भी इजाफा किया गया है। उन्होंने बताया कि पिछले दिनों यादव ने ही अदालत को पत्र लिखकर यह जानकारी दी थी कि उनका कार्यकाल 30 सितंबर को समाप्त हो रहा है और उन्हें आगे क्या आदेश है। इसी के बाद कार्यकाल बढ़ाने का फैसला लिया गया।

-अजय कुमार

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़