नकारात्मक राजनीति की पीठ पर सवार है विपक्ष

Rahul Gandhi
ANI

राहुल गांधी संसद में खड़े होकर जो मन में आता है, बोलते हैं। उनके भाषण का कोई सिरा आपस में जुड़ता नहीं है। असल में वो रटी रटाई स्क्रिप्ट को सदन में दोहराते हैं। वो सरकार पर निशाना साधने और उसकी साख को गिराने के एजेंडे को हर दिन आगे बढ़ाते हैं।

एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जितनी जरूरत एक सशक्त सरकार की होती है, उतना ही सशक्त विपक्ष भी जरूरी होता है। विपक्ष लोकतंत्र के वास्तविक सार के संरक्षण और लोगों की आकांक्षाओं व अपेक्षाओं के प्रकटीकरण में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। किंतु, वर्तमान में भारत का विपक्ष झूठ और दुष्प्रचार की राजनीति में गले तक डूबा दिखाई देता है।

एक जीवंत लोकतंत्र में विपक्ष एक निगरानीकर्ता के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो सरकार की शक्तियों पर नियंत्रण और संतुलन सुनिश्चित करता है। यह विभिन्न विचारों को व्यक्त करने, समाज के विभिन्न वर्गों का प्रतिनिधित्व करने और सरकार को उसके कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराने में सहायक होता है।

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एक दशक तक लोकसभा में विपक्ष के नेता का पद रिक्त रहा, क्योंकि सदन में किसी भी पार्टी के पास सदन की कुल सदस्य संख्या के दसवें हिस्से के बराबर सदस्य नहीं थे, जो अब रायबरेली के सांसद राहुल गांधी द्वारा भरा गया है। लेकिन राहुल गांधी विपक्ष के नेता संसदीय सीमाओं, अनुशासन, परंपराओं और कर्तव्यों की लक्ष्मण रेखा प्रतिदिन लांघ रहे हैं।  

राहुल गांधी संसद में खड़े होकर जो मन में आता है, बोलते हैं। उनके भाषण का कोई सिरा आपस में जुड़ता नहीं है। असल में वो रटी रटाई स्क्रिप्ट को सदन में दोहराते हैं। वो सरकार पर निशाना साधने और उसकी साख को गिराने के एजेंडे को हर दिन आगे बढ़ाते हैं।

चुनाव नतीजों के बाद से ही राहुल गांधी के संसद में दिये गये भाषणों और मीडिया के सामने की गयी बयानबाजी का विश्लेषण करें तो वो सीधे तौर पर देश के हर तबके और वर्ग में असंतोष पैदा करने में जुटे हैं। वो मोदी सरकार की साख पर बट्टा लगाने के मिशन में जुटे हैं। विपक्ष के नेता और विपक्ष की भूमिका के इतर वो हर वो काम कर रहे हैं, जो विशुद्ध तौर पर राजनीति का हिस्सा है।

संसदीय व्यवस्था में विपक्ष की भूमिका की बात करें तो विपक्ष सरकार की नीतियों और कार्यों की जांच करता है, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित होती है। उदाहरण के लिए, भारत में 2जी स्पेक्ट्रम मामले में विपक्ष द्वारा निभाई गई भूमिका ने भ्रष्टाचार और शासन के मुद्दों को उजागर किया।

विपक्ष नीतिगत मामलों पर वैकल्पिक दृष्टिकोण भी प्रदान करता है। 2013 में विपक्ष के रूप में भाजपा ने तत्कालीन यूपीए सरकार की आर्थिक नीतियों की प्रभावी ढंग से आलोचना की, जिससे उसे महत्वपूर्ण चुनावी लाभ हुआ।

वहीं विपक्ष विविध और अल्पसंख्यक विचारों का प्रतिनिधित्व करता है, जिससे बहुलवादी समाज सुनिश्चित होता है। डीएमके और एआईटीसी जैसी क्षेत्रीय पार्टियां राष्ट्रीय स्तर पर क्षेत्रीय हितों का प्रतिनिधित्व करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इन सबके अलावा विपक्ष  विधायी प्रक्रियाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिससे अक्सर कानूनों में सुधार होता है। मौजूदा सरकार के तहत जीएसटी विधेयक में विपक्ष द्वारा सुझाए गए संशोधन इसका एक उदाहरण हैं।

1960 के दशक के आरंभ से भूमि सुधार, औद्योगिक मज़दूर वर्ग के अधिकार, बेरोज़गारी, खाद्यान्न एवं उनका वितरण, जातीय मांगों और भाषाई अधिकारों जैसे विभिन्न मुद्दों पर पूरे भारत में शक्तिशाली आंदोलनों की शुरुआत हुई। तत्कालीन विपक्ष ने स्वयं को इन सामाजिक आंदोलनों से उल्लेखनीय रूप से संलग्न किया था। इतिहास में संसदीय विपक्ष ने भारत के संसदीय लोकतंत्र को रचनात्मकता और सकारात्मकता प्रदान की थी। 

वहीं इस बात में दो राय नहीं है कि कमज़ोर विपक्ष एक कमज़ोर या गैर-उत्तरदायी सरकार से कहीं अधिक खतरनाक होता है। और एक गैर-उत्तरदायी, अनुशासहीन और संसदीय परंपराओं को न मानने वाला विपक्ष देश को तबाही की रास्ते पर ले जाता है।

4 जून को लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही विपक्ष ने इंडी गठबंधन के बैनर तले मोदी सरकार को हर छोटे—बड़े मुद्दे पर घेर रहा है। खासकर देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस संसदीय नियमों, लोकतंत्र की मर्यादाओं और परंपराओं को भूलकर लगातार तीन लोकसभा चुनाव में मिली हार की खीझ उतारती दिख रही है।

पिछले तीन आम चुनाव में ये तो साबित हो चुका है कि सीधी लड़ाई में विपक्ष मोदी को शिकस्त देने में सक्षम नहीं है। विपक्ष के झूठ, दुष्प्रचार और गलत बयानबाजी के बावजूद देश के हर वर्ग का विश्वास मोदी के प्रति कायम है। ऐसे में इंडी गठबंधन ने झूठ, दुष्प्रचार और विवादित मुद्दे उछालने की रणनीति पर काम करना शुरू कर रखा है।

2024 के लोकसभा चुनाव में इंडी गठबंधन ने दुष्रचार और झूठ का सहारा लिया है। मोदी तीसरी बार सत्ता में आएंगे तो संविधान बदल देंगे। भोली भाली जनता विपक्ष के दुष्प्रचार के दुष्चक्र में फंसी भी। इस चुनाव में विपक्ष की सीटें 2014 और 2019 के चुनाव की तुलना में बढ़ोत्तरी हुई। विपक्ष के झूठ और दुष्प्रचार के बावजूद मोदी के नेतृत्व में  देश की जनता ने भारतीय जनता पार्टी की झोली में सबसे ज्यादा 240 सीटें डाली। जमीनी सच्चाई यह है कि तीसरी बार कांग्रेस विपक्ष में बैठने को मजबूर है। देश की जनता ने उसे सत्ता के लायक नहीं समझा। इस चुनाव में झूठ, षडयंत्र, दुष्प्रचार और पूरी ताकत लगाने के बावजूद विपक्ष सत्ता के करीब नहीं पहुंच पाया। लगातार तीन चुनाव में हार की खीझ, झुंझलाहट, हताशा और निराशा विपक्ष के नेताओं की बयानबाजी में साफ तौर पर झलकती है।

विशेषकर गांधी की गतिविधियां, भाषण और बयानबाजी से ऐसा प्रतीत होता है कि वो देश में अराजकता पैदा करना चाहते हैं। राहुल गांधी कभी अग्निवीर और नीट परीक्षा की आड़ में युवाओं को, कभी किसानों को, कभी अल्पसंख्यक समुदायों को, कभी सरकारी कर्मचारियों को, कभी दलित और आदिवासियों के मन में सरकार, संवैधानिक संस्थाओं और व्यवस्था के प्रति रोष, असंतोष और घृणा भरने का काम कर रहे हैं। वो तो देश की जनता इतनी परिपक्व और समझदार है कि वो इनके कुत्सित इरादों ओर नीयत को समझती है। अगर जनता की समझदारी में थोड़ी भी कमी या अपरिपक्वता होती तो चार जून के बाद से अब तक देश में हिंसा और सांप्रदायिक तनाव की कई घटनाएं घट गयी होती। देश में अशांति, असुरक्षा और भय का वातावरण बन गया होता। देश की समझदार और परिपक्व जनता इस समझदारी, धैर्य और अनुशासन के लिये बधाई की पात्र है।

राजनीतिक दल अपनी राजनीति चमकाने और आगे बढ़ाने के लिये विरोधी दल की आलोचना करते हैं। ये आम बात है। लेकिन विरोध नीतियों, नीयत और निर्णयों पर होना चाहिए। वहीं विरोध और आलोचना में सत्य, प्रामाणिकता और सकारात्मकता होनी चाहिए। आधे अधूरे तथ्यों, जानकारी और आंकड़ों के आधार पर एक दूसरे की आलोचना करना एक स्वस्थ लोकतंत्र में उचित नहीं ठहराया जा सकता। लेकिन अफसोस इस बात का है कि पिछले एक दशक से  विपक्ष झूठ, दुष्प्रचार, फेक न्यूज फैलाने और झूठे नैरेटिव गढ़ने में व्यस्त है। उसके पास देश की समस्याओं के समाधान की कोई कार्ययोजना और नीति नहीं है। देश के विकास और जनकल्याण का कोई मॉडल और विजन उसके पास नहीं है। विपक्ष झूठ के सहारे सत्ता हासिल करना चाहता है। और देशवासियों की समस्याओं के समाधान के तौर पर रेवड़ी कल्चर का पिटारा उसके पास है।

लोकतंत्र का स्वास्थ्य प्राय: उसके विपक्ष की ताकत और जीवंतता में झलकता है। भारत में विपक्ष को मजबूत करना सिर्फ़ राजनीतिक दलों को सशक्त बनाने के बारे में नहीं है, बल्कि लोकतांत्रिक ढांचे को मजबूत करने के बारे में भी है। राज्य द्वारा वित्त पोषण, मीडिया तक समान पहुंच और पार्टियों के भीतर आंतरिक लोकतंत्र को बढ़ावा देने जैसे उपाय महत्वपूर्ण हैं। एक जीवंत, उत्तरदायी और जवाबदेह लोकतंत्र के लिए एक मजबूत और प्रभावी विपक्ष आवश्यक है। वर्तमान में विपक्ष अपनी भूमिका, कर्तव्यपालन और उत्तरदायित्व के पालने में असफल दिखाई देता है। विपक्ष को झूठ, दुष्प्रचार और नकारात्मक राजनीति छोड़कर देश और जनता के हित, कल्याण, समृद्धि और विकास की दिशा में कार्य करना चाहिए। इसी में लोकतंत्र, लोकतांत्रिक व्यवस्था और राजनीतिक दलों की भलाई और कल्याण निहित है।

- डॉ. आशीष वशिष्ठ

स्वतंत्र पत्रकार

लखनऊ, उत्तर प्रदेश

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