दौलत कमाने के फेर में 'महाकाव्य रामायण' का अपमान है फिल्म आदिपुरुष
डायलॉग लिखने वाले दावा करते हैं कि वह जब फिल्म के डायलॉग लिखते थे तो अपने जूते-चप्पल तक दफ्तर के बाहर उतार कर जाया करते थे। लेकिन सोचने वाली बात यह है कि सम्मान दर्शाने का ढोंग कर रहे लेखक ने तब जाकर आदिपुरुष फिल्म के लिए इतने बेहूदे डायलॉग लिखे हैं।
दिग्गज निर्देशक ओम राउत की बहुप्रतीक्षित फिल्म आदिपुरुष अपने टीजर के साथ शुरुआत से ही विवादों में रही है। इस फिल्म के प्रमोशन के दौरान जगह-जगह निर्माता, निर्देशक, लेखक व अन्य पूरी टीम ने यह दावा किया था कि आदिपुरुष फिल्म सनातन धर्म के आराध्य मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के महाकाव्य रामायण की महागाथा से प्रेरित है। लेकिन यह दावे इस फिल्म को देखने पर एकदम झूठे व खोखले साबित होते नज़र आते हैं। हालांकि देश में अभी तक छोटे व बड़े पर्दे पर महाकाव्य रामायण से प्रेरित सीरियल व फिल्म बार-बार दिखायी जाती रही हैं, लेकिन यह भी एकदम कटु सत्य है कि देश में पहला मौका है जब महाकाव्य रामायण को अत्याधुनिक सिनेमा तकनीक के माध्यम से रूपहले बड़े पर्दे इतने बड़े स्तर पर जीवंत किया गया है। यही वजह है कि आदिपुरुष फिल्म के रिलीज होने का दर्शकों को बेहद बेसब्री से इंतजार था, लेकिन विवादों के चलते आदिपुरुष फिल्म देश व दुनिया में सुर्खियों में तो आ गयी है, लेकिन इंतजार करने वाले दर्शकों को फिल्म देखकर निराशा ही हाथ लगी है। हालांकि अधिकांश फिल्मों के निर्माताओं का उद्देश्य तो केवल दर्शकों का मनोरंजन करके उनकी जेब से पैसा निकाल कर उस दौलत से अपनी तिजोरी भरना होता है, उसी के चलते ही सिनेमा घरों तक दर्शकों को लाने के लिए फिल्मों की रिलीज से पहले ही जानबूझकर विवाद खड़ा करने का एक फैशन आजकल बन गया है, जो एक सामान्य हंसी मजाक व अन्य फिल्मों तक तो ठीक लगता है, लेकिन अगर फिल्म की कमाई के लिए देशहित व धर्म ग्रंथों को तोड़-मरोड़कर पेश करते हुए उन पर विवाद खड़ा करने का कुत्सित प्रयास किया जाये तो वह सरासर अनुचित है और अक्षम्य अपराध है। वही हाल फिल्म आदिपुरुष का है, जिसमें देश व दुनिया के करोड़ों सनातन धर्म के अनुयाइयों के आराध्य मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के महाकाव्य रामायण के संवादों को अपने मनमाफिक तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया और लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का अपराध किया गया है।
हालांकि इसके डायलॉग लिखने वाले तो यहां तक दावा करते हैं कि वह जब फिल्म के डायलॉग लिखते थे तो अपने जूते-चप्पल तक दफ्तर के बाहर उतार कर जाया करते थे। लेकिन सोचने वाली बात यह है कि सम्मान दर्शाने का ढोंग कर रहे लेखक ने तब जाकर आदिपुरुष फिल्म के लिए इतने बेहूदे डायलॉग लिखे हैं। अगर इस फिल्म के कुछ डायलॉग पर नज़र डालें तो फिल्म में हमारे आराध्य पवन पुत्र हनुमान जी के लिए भी ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करते हुए दिखाया गया है जो काफी भद्दे हैं। फिल्म में एक सीन है जिसमें इंद्रजीत, हनुमान जी को पकड़कर लंका के राजा रावण के पास ले जाता है। इस पर रावण इंद्रजीत से कहता है- "कोई और काम धंधा नहीं है जो बंदर पकड़ रहा है" यह भाषा हमारे आराध्य बजरंग बली के लिए काफी खराब है। इसके अलावा एक सीन में रावण का एक राक्षस हनुमान जी से कहता है- "ये तेरी बुआ का बगीचा थोड़ी है" यह भाषा भी सरासर अनुचित है। इसके अलावा जब हनुमान जी लंका जलाते हैं उस वक्त भी व अन्य कई किरदारों के द्वारा बोले गये कई डायलॉग अभ्रद हैं जिनका इस्तेमाल किया गया है, जो कि सरासर ग़लत है।
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डायलॉग के बाद लोगों की सबसे ज्यादा आपत्ति फिल्म में किरदारों के लुक पर है, जो कि दूर-दूर तक भी महाकाव्य रामायण के पात्रों से मिलती नहीं है। लोगों को फिल्म के किरदारों का कास्ट्यूम पसंद नहीं आ रहे हैं। लोग कह रहे हैं कि इस फिल्म के राम, न तो मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम लग रहे हैं, ना ही सीता, लक्ष्मण, हनुमान व रावण तक का लुक महाकाव्य की गरिमा के अनुरूप है। आदिपुरुष के किरदारों का यह लुक आम जनमानस को जरा भी रास नहीं आ रहा है। जिसके चलते फिल्म रिलीज के बाद अब तो आदिपुरुष फिल्म पर विवाद थमने की जगह और तेजी से बढ़ता नज़र आ रहा है। अब तो इस फिल्म पर भारत के साथ नेपाल में प्रतिबंध लगाने की मांग हो रही है। इसके अलावा, दिल्ली हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल करके फिल्म पर रोक लगाए जाने की मांग के साथ इस फिल्म को सेंसर बोर्ड की ओर से दिये जाने वाले सर्टिफिकेट को भी रद्द करने की मांग की गई है। खैर... इस फिल्म के जरिए महाकाव्य रामायण को तोड़-मरोड़कर पेश करके मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम व हमारी सनातन संस्कृति का मजाक उड़ाया गया है, जो ठीक नहीं है। इसलिए भारत सरकार को सनातन धर्म के अनुयाइयों की भावनाओं को देखते हुए स्वयं ही आदिपुरुष जैसी फिल्मों पर तत्काल प्रतिबंध लगा देना चाहिए।
-दीपक कुमार त्यागी
(वरिष्ठ पत्रकार, स्तंभकार व राजनीतिक विश्लेषक)
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