पहलगाम आतंकी हमले से सुलगते हुए सवाल अब मांग रहे हैं दो टूक जवाब, आखिर देगा कौन?

दरअसल जम्मू-कश्मीर में आम लोगों पर हुए बड़े आंतकी हमलों में एक आतंकी हमला 21 मार्च 2000 की रात को अनंतनाग जिले के छत्तीसिंहपोरा गांव में किया गया था। जिसमें आतंकियों ने अल्पसंख्यक सिख समुदाय को निशाना बनाया गया था।
कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है, क्योंकि इस क्रूर इस्लामिक मिजाज वाले हमले में दो दर्जन से ज्यादा लोग मरे गए हैं और एक दर्जन से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। यहाँ पर बहशी आतंकियों ने जिस तरह से नाम पूछ-पूछ कर, कलमा पढ़वाने की बात करके, शक होने पर खतना चेक करके निर्दोष लोगों पर गोलियां बरसाई, उसने मानवता को हिलाकर रख दिया है। वहीं इस घटना के कई वीडियो जिस तरह से इंटरनेट पर वायरल हो रहे हैं, उनमें इस हमले की बर्बरता स्पष्ट दिखाई दे रही है। इसलिए पुनः सुलगता हुआ सवाल यही कि आखिर कबतक रुकेंगे ऐसे आतंकवादी हमले और इन्हें रोकने में हमारा प्रशासन हर बार क्यों विफल हो जाता है? अलबत्ता पहलगाम आतंकी हमले से सुलगते हुए सवाल अब मांग रहे हैं दो टूक जवाब, लेकिन आखिर इसे देगा कौन? यक्ष प्रश्न है!
कहना न होगा की साँपों को दूध पिलाने वाले और आतंकियों को बिरियानी खिलाने वाले इस देश में अब आमलोगों की जिन्दगी में यही बदनसीबी बदी हुई है, क्योंकि पुलिस और सैन्यबल के जवान तो बड़े बड़े नेताओं, नौकरशाहों, जजों और उनके मित्र उद्योगपतियों की निर्विघ्न यात्रा के सम्पादन में जुटे हुए रहते हैं! वहीं ‘मिनी स्विट्जरलैंड’ के नाम से मशहूर पहलगाम की वादियों में पुख्ता सुरक्षा इंतजाम क्यों नहीं किए गए, यह जम्मू-कश्मीर की उमर अब्दुल्ला सरकार और उपराज्यपाल मनोज सिन्हा को स्पष्ट करना चाहिए, क्योंकि यह उनकी स्पष्ट लापरवाही नहीं तो फिर क्या है, वही बता सकते हैं?
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आपको बता दें कि यह आतंकी हमला मंगलवार दोपहर करीब 2:30 बजे हुआ, जिसमें करीब 50 राउंड फायरिंग की गई। लश्कर-ए-तैयबा (LeT) से जुड़े द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने इस घृणित काम की जिम्मेदारी ली है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि इस आतंकी घटना के पीछे का कारण क्या है? आखिर क्यों दहशतगर्तों ने पहलगाम और पर्यटकों को ही निशाना बनाया? वहां भी महिलाओं और बच्चों को छोड़कर सिर्फ पुरुषों को ही निशाना क्यों बनाया?
सवाल यह भी है कि अमरनाथ यात्रा से पहले ही पहलगाम में पर्यटकों को निशाना क्यों बनाया गया? मसलन कुछ लोगों ने यह बताया है कि ये आतंकवादी हमले ‘वक्फ अधिनियम में संशोधन’ के बाद नरेंद्र मोदी सरकार को एक बड़ा संदेश देना चाहते थे और इसलिए उन्होंने अपना सारा गुस्सा पर्यटकों पर ही निकाला है। क्योंकि वायरल वीडियो में से एक वीडियो में पीड़िता कहते हुए दिख रही है कि उसके पति को गोली मारने के बाद आतंकी ने कहा था 'बता देना अपने मोदी को।' इससे साफ है कि क्या वो देश की सरकार को यह संदेश देना चाह रहे थे कि वो उनकी किसी भी बात को नहीं मानेंगे?
ऐसे में पुनः वही सवाल उठता है कि क्या कश्मीर में कांग्रेस के सहयोग से निर्वाचित नेशनल कांफ्रेंस की उमर अब्दुल्ला सरकार में आतंकवाद फिर से जिंदा हो चुका है? क्योंकि जिस तरह से अमरनाथ यात्रा से पहले ये सुनियोजित और अप्रत्याशित हमला हुआ है, उसने एक बार फिर से कश्मीर में आतंकवाद के जिंदा होने का स्पष्ट प्रमाण दे दिया है।
अलबत्ता अब सांप भाग जाने पर लकीर पीटने जैसी कार्रवाई से खोया हुआ पर्यटक विश्वास तुरंत बहाल नहीं किया जा सकता है। क्योंकि ये आतंकी हमला कोई पहली बार नहीं हुआ है जब अमरनाथ यात्रा के बेस कैंप पहलगाम को निशाना बनाया गया है।
आंकड़े बताते हैं कि इससे पहले 6 अगस्त 2002 को पहलगाम में एक शिविर पर हुए हमले में नौ लोग मारे गए थे, जबकि 20 जुलाई 2001 को भी एक शिविर पर हुए हमले में 13 लोगों की मौत हो गई थी। यदि देखा जाए तो बीते ढाई दशक में इस तरह का यह 11वां बड़ा हमला है, जिनमें अभी तक 227 लोगों ने अपनी जान गंवाई है।
दरअसल जम्मू-कश्मीर में आम लोगों पर हुए बड़े आंतकी हमलों में एक आतंकी हमला 21 मार्च 2000 की रात को अनंतनाग जिले के छत्तीसिंहपोरा गांव में किया गया था। जिसमें आतंकियों ने अल्पसंख्यक सिख समुदाय को निशाना बनाया गया था। इस आतंकी हमले में कुल 36 लोगों की जान गई थी, जबकि कई अन्य लोग घायल भी बताए गए थे| वहीं इसी साल यानी 2000 के अगस्त माह में पहलगाम के नुनवान बेस कैंप आतंकी हमला हुआ था जिसमें अमरनाथ तीर्थ यात्रियों को निशाना बनाया गया था| इस हमले में स्थानीय लोगों के साथ-साथ कुल 32 तीर्थ यात्रियों की हत्या की गई थी|
इसके बाद जुलाई 2001 में भी अमरनाथ यात्रियों को आतंकियों ने फिर निशाना बनाया। इस हमले में आतंकियों ने 13 लोगों की हत्या की थी| ये हमला अनंतनाग के शेषनाग बेस कैंप पर हुआ था। वहीं जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर में राज्य विधानमंडल परिसर पर आत्मघाती आतंकी हमला हुआ था, जिसमें 36 लोग मारे गए थे जबकि कई लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे। वहीं वर्ष 2002 में कश्मीर के चंदनवारी बेस कैंप पर आतंकी हमला हुआ, जिसमें 11 अमरनाथ यात्री मारे गए थे। वहीं 23 नवंबर 2002 को जम्मू-श्रीनगर नेशनल हाइवे पर आतंकी हमला हुआ था, जिसमें इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस से विस्फोट किया गया था| इस हमले में 9 सुरक्षाकर्मी, तीन महिलाएं और दो बच्चों समेत 19 लोगों की जान चली गई थी।
ऐसे में आप खुद सोचिए कि जब आगामी 27 जून, 2025 से अमरनाथ यात्रा शुरू हो रही है, जो पहलगाम से ही शुरू होती है। ऐसे में उसी इलाके को आतंकियों ने निशाना बनाकर बहुत खतरनाक संदेश दिया है। सवाल यह भी है कि जब सऊदी अरब में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पहुंचे थे, जयपुर में अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे डी वेंस घूम रहे थे, तब ये आतंकी हमला क्यों किया गया? इसका मकसद क्या है? क्या यह हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच नफरत की खाई और चौड़ी करने का एक और प्रयास है?
शायद अब यह सम्भव भी हो सकता है क्योंकि अब लोगों को ‘कश्मीरियत’ और ‘जम्हूरियत’ जैसे शब्द उसी तरह से डरायेंगे, जैसे कि मुर्शिदाबाद में गंगा-जमुनी तहजीब वाले शब्द डराते हैं। क्योंकि हर जगह खतने वाली सोच की निर्णायक खता तय करने में हमारा संविधान और उससे बनीं सरकारें अबतक निरर्थक प्रतीत हुईं हैं| हालाँकि जनता ने इनकी परिभाषा तो तभी समझ ली थी जबकि 1989 में भाजपा नेता टीकालाल टपलू को श्रीनगर स्थित घर में घुसकर मार डाला गया, जब जज नीलकंठ गंजू को हाईकोर्ट के पास ही मार डाला गया, जब रावलपुरा में स्क्वाड्रन लीडर रवि खन्ना समेत भारतीय वायुसेना के 4 जवानों को मार डाला गया, और जब बुजुर्ग कवि सर्वानंद कौल को उनके बेटे सहित घर में ही फाँसी पर लटका दिया गया। इसलिए जम्मू कश्मीर के पहलगाम में हुआ आतंकी हमला, सिर्फ़ आतंकी हमला नहीं है बल्कि यह इस्लामी आतंकी हमला है। जिसमें हिन्दुओं को चुन चुन कर निशाना बनाया गया है।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, पुरुष पर्यटकों को कलमा पढ़वाकर, उनके पैंट खोलवाकर देखा गया कि उनका खतना हुआ है या नहीं। और जिन-जिनका खतना नहीं हुआ था, उन्हें जान से हाथ धोना पड़ा। वहीं टीवी परदे पर भी एक बड़े मैदान में लाशें पड़ी दिखीं, महिलाएँ चीख-चीख कर मदद माँगती दिखीं। इनमें कई ऐसे जोड़े भी थे जो नई-नई शादी के बाद हनीमून मनाने गए थे। इसलिए ये जख्म उन्हें हमेशा सालते रहेंगे। धरती के स्वर्ग कश्मीर में हुई नृशंसता वो कभी नहीं भूल पाएंगे। दरअसल, ये अनुच्छेद-370 और 35A को निरस्त किए जाने के बाद का सबसे बड़ा आतंकी हमला है। इसके लिए वहां की निर्वाचित सरकार भी जिम्मेदार है।
बता दें कि जम्मू कश्मीर के पहलगाम में पाकिस्तानी आतंकवादी के नेतृत्व में हुए हमले में 6 आतंकी शामिल थे| हमले में आधुनिक हथियारों का इस्तेमाल हुआ। इस हमले की कमान खुद पाकिस्तानी आतंकवादी के हाथ में थी। ख़ुफ़िया सूत्रों के मुताबिक, इस हमले में दो विदेशी आतंकी हैं। इन आतंकवादियों के पास एक-47 जैसी राइफल मौजूद थी। इनकी तलाश में दक्षिण कश्मीर के कोकरनाग-पुलवामा और सोपिया इलाके में सुरक्षाबलों का ऑपरेशन हुआ। अब तक की जांच के दौरान कई महत्वपूर्ण तथ्य सामने आए हैं।
पता चला है कि पहलगाम आतंकवादी हमले की कमान खुद पाकिस्तानी आतंकवादी संभाल रहा था। उसके साथ मौजूद आतंकवादियों में कम से कम एक और विदेशी आतंकवादी भी शामिल था। आतंकवादियों की तादाद लगभग आधा दर्जन थी। यह भी पता चला है कि इन आतंकवादियों के पास आधुनिक हथियारों से लेकर आपस में बात करने वाले आधुनिक उपकरण भी मौजूद थे। इन आतंकवादियों ने संभवत: इसी इलाके की रेकी भी की थी। अब तक की जांच के दौरान यह बात भी निकल कर सामने आई है कि आतंकवादियों को इस बात का एहसास था कि इस इलाके में पुलिस और सुरक्षा बलों की मौजूदगी भी काफी कम है, क्योंकि यही इलाका सैलानियों से भरा रहता है। यहां पर आज तक कोई ऐसी बड़ी आतंकवादी वारदात भी नहीं हुई थी।
बताया जा रहा है कि आतंकवादियों को रेकी कराने में कुछ ओवर ग्राउंड वर्कर का हाथ भी रहा होगा। यह भी पता चला है कि जो आतंकवादी इस ग्रुप को लीड कर रहा था, वह पिछले कुछ समय पहले ही पाकिस्तान से भारत आया था। माना जा रहा है कि यह पाकिस्तानी आतंकवादी पाकिस्तान में बैठे अपने आकाओं के लगातार संपर्क में था और वहीं से लगातार गाइडलाइन ले रहा था। ध्यान रहे कि इस आतंकवादी वारदात में अनेक लोग मारे गए हैं जबकि अनेक घायल हुए है। साल 2000 के बाद पाक समर्थक आतंकवादियों द्वारा बेगुनाह लोगों को मारे जाने का यह सबसे बड़ा हत्याकांड है।
इससे स्पष्ट है कि ये कोई आम आतंकी हमला नहीं है, क्योंकि एक महिला की जान बख्शते हुए आतंकियों ने कहा कि जाओ मोदी को बता देना। इसीलिए मैंने लिखा, ‘सन्देश’ है ये। ऐसा नहीं है कि मोदी सरकार, तमाम ख़ुफ़िया/सुरक्षा एजेंसियाँ, जम्मू कश्मीर सरकार और अधिकारियों को ख़तरे का अंदाज़ा नहीं है या उनकी अगली रणनीति तय नहीं होगी। फिर भी, जो तेज़ स्थिति बनी है उसमें सबसे बड़ी चुनौती होगी पर्यटकों को वापस कश्मीर जाने के लिए प्रेरित करना। क्योंकि किसी अशांत जगह पर मरने कोई नहीं जाना चाहता। इसलिए अब कश्मीर यात्रा से लेकर अमरनाथ यात्रा को लेकर रेजिस्ट्रेशन्स रद्द हों तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। क्योंकि सबके लिए अपनी जान पहली प्राथमिकता होती है।
वहीं, जहाँ तक पर्यटकों पर करवाए गए सुनियोजित हमले में पाक की सेना के हाथ की बात है तो खुद जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने इसे पाकिस्तान की सेना की करतूत बताया है। उनका स्पष्ट कहना है कि पाकिस्तान में नागरिक सरकार जब-जब कमजोर होती है तो वहां की सेना इस तरह के हमले करवाती है। अभी हाल ही में आए पाकिस्तानी जनरल के द्विराष्ट्र वाले सिद्धांत की बात और हिन्दू-मुसलमान के बीच पैदा की गई विभाजनकारी सोच के साथ कश्मीर को पाकिस्तान के गर्दन की नस बताए जाने से भी आतंकवादियों के नापाक मंसूबों को बल मिला है| इस पर कड़ा एक्शन नहीं लिए जाने से उनका मनोबल बढ़ा है, यह बात भारत सरकार को समझना होगा।
इस बात में कोई दो राय नहीं कि यदि जम्मू कश्मीर को आतंकवाद की गिरफ़्त से बचाना है तो सबसे पहले कश्मीरियत, जम्हूरियत, इंसानियत और गंगा-जमुनी तहजीब जैसे तोतारटंत शब्दों से नेताओं को बचना होगा, क्योंकि अब ये शब्द ही जनता को परेशान करते हैं, उनकी जान यत्र-तत्र लेते हैं। 1990 के दौर में जिन लोगों ने कुछ क्रूर घटनाओं को अंजाम दिया, उनमें से एक यासीन मलिक से दिल्ली में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हाथ मिलाते हैं। यही भारत की नियति बन गई थी, आज यही हिन्दुओं की नियति है।
लेकिन याद कीजिए, जून 2024 में रियासी में माता वैष्णो देवी मंदिर जा रही बस पर हुए खौंफनाक हमले को, जब 20 मिनट तक गोलीबारी चलती रही थी। तब मृतकों में 2 साल का एक बच्चा भी था, जिसकी तस्वीर आजतक हमें झकझोड़ती रहती है। लेकिन, हम कमज़ोर याददाश्त वाले लोग हैं। खुद के भविष्य से भी जुड़ी चीजों को बड़ी जल्दी ही भूल जाते हैं। हम यह भी स्वीकार करने से हिचकते रहते हैं कि महिलाओं-बच्चों को निशाना बनाने वाले इन कायरों के कुछ ‘हमदर्द’ सिर्फ़ जम्मू कश्मीर ही नहीं बल्कि देश के भीतर भी बैठे हैं, जिनसे निबटना राष्ट्रीय दायित्व है सभी सरकारों की, लेकिन वह वोट बचाने में मशगुल रहती हैं।
चाहे 2020 में दिल्ली का दंगा हो या फिर इस वर्ष मुर्शिदाबाद में हिन्दुओं का पलायन या पहलगाम में पर्यटकों पर हमला– इन्हें अलग करके देखने की भूल बिलकुल मत कीजिए। ये वही विचारधारा है, पैंट खोलकर खतना चेक करने वाली, जो हिन्दुओं को हर जगह वही मारती है। इसलिए इन्हें पोस्ट गोधरा वाला सबक हर बार चाहिए, चाहे विपक्ष और कोर्ट जितना तड़फड़ाये! जैसे को तैसा त्वरित जवाब मिलना चाहिए।
अब भले ही प्रधानमंत्री मोदी ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से बातचीत करके पूरी स्थिति की जानकारी ली हो, और उनके निर्देश पर अमित शाह तुरंत ग्राउंड जीरो पर निकल गए। वहीं, इस घटना के सामने आते ही पीएम मोदी ने सऊदी अरब का अपना दौरा बीच में छोड़ दिया और वो भारत आ गए, एयरपोर्ट पर उतरते ही उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, विदेश मंत्री एस. जयशंकर और विदेश सचिव के साथ आपात बैठक की और पूरे हालात की जानकारी ली है।
मालूम हो कि कश्मीर में हुए इस आतंकी हमले के बाद से दिल्ली, यूपी में सुरक्षा बढ़ा दी गई है। उधर इस हमले के ख़िलाफ़ मंगलवार की शाम पहलगाम के टैक्सी ड्राइवरों ने कैंडल मार्च निकालकर हमलावरों को सज़ा दिए जाने की मांग की है। घाटी में मौजूद पर्यटकों ने अपनी आगे की योजना को स्थगित कर दिया और वापस लौटने लगे हैं। इससे बुधवार की सुबह पहलगाम में सन्नाटा पसरा हुआ है और चहल पहल से भरा रहने वाला इलाक़ा पर्यटकों से खाली है। पहलगाम में यह चरमपंथी हमला तब हुआ है जब घाटी में टूरिस्ट सीज़न पीक पर है। हमले के विरोध में घाटी में बंद का आह्वान किया गया और राजनीतिक दलों ने हमले की कड़ी निंदा करते हुए इस बंद का समर्थन किया।
अब भले ही सर्च ऑपरेशन चल रहा है। आतंकियों का सफाया भी हो रहा है और होगा। कार्रवाई तेज़ होगी। लेकिन, एक भी मृतक को वापस नहीं जीवित किया जा सकेगा, ये एक क्रूर सच्चाई है। ‘मुस्लिम हो?’ पूछकर मारने वाली विचारधारा का कैसे काम तमाम किया जाएगा, इसकी स्पष्ट रणनीति बनानी होगी। कूटनीतिक सर्जिकल स्ट्राइक से काम नहीं चलेगा। इनको मिट्टी में मिलाने के लिए निर्णायक सैन्य कार्रवाई करनी होगी। क्योंकि जम्मू कश्मीर के बाद अब पश्चिम बंगाल और वहाँ की सत्ता की तुष्टिकरण की नीति के कारण हाथ से निकलता हुआ दिख रहा है।
- कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक
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