मध्य प्रदेश के राजनीतिक घटनाक्रम पर SC के फैसले से राजनीतिक पार्टियां चुप क्यों ?
राज्यपाल की शक्तियों को परिभाषित करने वाला यह अहम फैसला न्यायमूर्ति डी.वाई.चंद्रचूड़ और हेमंत गुप्ता की पीठ ने दिया। जिसमें उन्होंने कमलनाथ सरकार को 19 मार्च 2020 को 24 घंटे में सदन में बहुमत साबित करने के अपने पिछले आदेश का विस्तृत कारण बताते हुए आदेश जारी किया।
मध्य प्रदेश में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार को फ्लोर टेस्ट करवाने को लेकर राज्यपाल लालजी टंडन द्वारा दिए गए आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि कमनाथ सरकार को गिराने के लिए चले घटना क्रम के बाद राज्यपाल का कमलनाथ सरकार को बहुमत साबित करने के लिए कहना संवैधानिक तौर पर अनुचित नहीं कहा जा सकता है। राज्यपाल ने मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए संतुष्ट होने के बाद ऐसा आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने मुख्यमंत्री को बहुमत साबित करने का आदेश देने की राज्यपाल की शक्तियों को परिभाषित करते हुए कहा है कि सरकार गठन के बाद भी बीच में राज्यपाल परिस्थितियों को देखते हुए विश्वास मत हासिल करने का आदेश दे सकते हैं इस संबंध में कोई रोक नहीं है।
राज्यपाल की शक्तियों को परिभाषित करने वाला यह अहम फैसला न्यायमूर्ति डी.वाई.चंद्रचूड़ और हेमंत गुप्ता की पीठ ने दिया। जिसमें उन्होंने कमलनाथ सरकार को 19 मार्च 2020 को 24 घंटे में सदन में बहुमत साबित करने के अपने पिछले आदेश का विस्तृत कारण बताते हुए आदेश जारी किया। 19 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ को 20 मार्च 2020 को 5 बजे तक सदन में बहुमत साबित करने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश के बाद कमलनाथ ने बहुमत साबित करने से पहले ही पद से त्यागपत्र दे दिया था। जिसके बाद प्रदेश में भाजपा ने शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में सरकार बनाई है।
हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा है कि राज्यपाल को बहुमत साबित करने का आदेश देने की शक्तियों का बहुत सावधानी के साथ इस्तेमाल करना चाहिए। ऐसा करते समय राज्यपाल को ध्यान रखना चाहिए कि इससे चुनी हुई सरकार अस्थिर न हो बल्कि राज्यपाल तभी ऐसे मामले में दखल दें जब उनको लगे कि सरकार ने बहुमत खो दिया है। राज्यपाल को यह शक्ति इस सिद्धांत को बनाए रखने के लिए प्रदान की गई है कि सरकार को हर वक्त सदन का विश्वास प्राप्त है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हम वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी की उस दलील से सहमत नहीं है। जिसमें उन्होंने कहा था कि राज्यपाल फ्लोर टेस्ट का आदेश पारित नहीं कर सकते। एक राज्यपाल विधानसभा का सत्र चालू रहने के दौरान भी अपने अधिकार का प्रयोग कर सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद जहां मध्य प्रदेश के कांग्रेस नेताओं ने चुप्पी साध ली है। तो वही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि कांग्रेस पार्टी के अंदर विद्रोह हुआ है। कुशासन ऐसा था कि उनके साथियों ने ही आरोप लगाए, ऐसी सत्यानाश करने वाली सरकार हमने देखी नहीं, सहयोगी खुद ही नाराज होकर गए कुशासन के कारण और आरोप हम पर लागाते है। इसमें हमारा दोष कहा है, आप चला न पाओ, आप प्रदेश को तबाह कर दो और आरोप दूसरों पर लगाओ। मुख्यमंत्री ने कहा कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला किया है उससे सिद्ध हो गया दूध का दूध और पानी का पानी। महामहिम राज्यपाल महोदय का जो फैसला था, फ्लोर टेस्ट का वो बिल्कुल सच था और ऐसी स्थिति में क्या होता, आपने बहुमत खो दिया और अल्पमत में आ गए। तो फ्लोर टेस्ट ही एक मात्र विकल्प था। आज सिद्ध हो गया है कि, कांग्रेस केवल घटिया राजनीति करने की कोशिश करती रहती है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने उनको दिशा दिखा दी है कि झूठ की राजनीति लम्बी नहीं चलती।
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तो वही इस पूरे मामले पर न तो पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की तरफ से कोई बयान आया और न ही राज्यसभा सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने ही कोई प्रतिक्रिया व्यक्त की। अमूमन राजनीतिक मामलों पर कांग्रेस के इन बडे नेताओं के ट्वीटर के जरिए बयान सामने आ जाते थे। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले ने दूसरे राज्यों के लिए एक गाइड लाइन तय कर दी है, जिसके अनुसार अगर राज्यपाल को यह लगता है कि सरकार अल्पमत में है। तो वह सरकार को विधानसभा के पटल पर बहुमत साबित करने का आदेश दे सकता है। तो दूसरी ओर इस फैसले ने प्रदेश की वर्तमान भाजपा सरकार पर कांग्रेस द्वारा लगाए जाने वाले आरोपों से मुक्ति दिला दी है। तो सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले ने कांग्रेस पार्टी द्वारा राज्यपाल की मंशा पर खडे किए जा रहे प्रश्नों पर भी विराम लगा दिया है।
- दिनेश शुक्ल
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