बसपा के वोट बैंक पर सपा की नजर, बाबा साहेब के नाम का फायदा उठाने की होड़
लोकसभा चुनाव से पूर्व सपा−बसपा गठबंधन टूटने के बाद से समाजवादी पार्टी की नजर बहुजन समाज पार्टी के वोटबैंक पर लगी हुई है। इसी कड़ी में सपा, बसपा के बागियों को पार्टी में स्थान और सम्मान देने के अलावा दलितों को जोड़ने की मुहिम भी चलाए हुए है।
संविधान निर्माता डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर की अद्वितीय प्रतिभा अनुकरणीय है। वे एक मनीषी, योद्धा, नायक, विद्वान, दार्शनिक, वैज्ञानिक, समाजसेवी एवं धैर्यवान व्यक्तित्व के धनी, अनन्य कोटि के नेता थे, जिन्होंने अपना समस्त जीवन समग्र भारत की कल्याण कामना में उत्सर्ग कर दिया। खासकर भारत के 80 फीसदी दलित सामाजिक व आर्थिक तौर से अभिशप्त थे, उन्हें अभिशाप से मुक्ति दिलाना ही डॉ. आंबेडकर का जीवन संकल्प था। बाबा साहब ने कहा− वर्गहीन समाज गढ़ने से पहले समाज को जातिविहीन करना होगा। क्योंकि श्रेणी ने इंसान को दरिद्र और वर्ण ने इंसान को दलित बना दिया। जिनके पास कुछ भी नहीं है, वे लोग दरिद्र माने गए और जो लोग कुछ भी नहीं हैं वे दलित समझे जाते थे।
दलितों को उनका अधिकार दिलाने की लड़ाई लड़ते समय बाबा साहेब ने संघर्ष का बिगुल बजाकर आह्वान किया, 'छीने हुए अधिकार भीख में नहीं मिलते, अधिकार वसूल करना होता है।' उन्होंने कहा कि हिन्दुत्व की गौरव वृद्धि में वशिष्ठ जैसे ब्राह्मण, राम जैसे क्षत्रिय, हर्ष की तरह वैश्य और तुकाराम जैसे शूद्र लोगों ने अपनी साधना का प्रतिफल जोड़ा है। उनका हिन्दुत्व दीवारों में घिरा हुआ नहीं है, बल्कि ग्रहिष्णु, सहिष्णु व चलिष्णु है। बाबा साहब का साफ मानना कि था भारतीय समाज में हमेशा से अभिशाप और जन्मसूत्र से प्राप्त अस्पृश्यता की कालिख नहीं थी। 6 दिसंबर 1956 को बाबा साहब की मृत्यु दिल्ली में नींद के दौरान उनके घर में हो गई थी। डॉ. आंबेडकर का लक्ष्य था− सामाजिक असमानता दूर करके दलितों के मानवाधिकार की प्रतिष्ठा करना, मौत के करीब 6 वर्षों के बाद भी बाबा साहब आम हिन्दुस्तानी के लिए प्रसांगिक हैं। उन्हें जाति धर्म के दायरे में नहीं बांटा जा सकता है। परंतु सपा−बसपा सहित तमाम सियासतदारों को आज भी यह बात समझ में नहीं आती है कि बाबा साहब भारतीय नायक थे। 1990 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।
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ऐसे दलों की ओछी और छोटी राजनीति के चलते बाबा साहब के परिनिर्वाण दिवस 06 दिसंबर को फिर जब सपा−बसपा बाबा साहब के नाम पर शक्ति प्रदर्शन करेंगे तो निश्चित ही बाबा साहब की आत्मा को काफी चोट पहुंचेगी। गौरतलब है कि अबकी से संविधान निर्माता बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के परिनिर्वाण दिवस पर सपा−बसपा शक्ति प्रदर्शन की तैयारी कर रहे हैं। बसपा तो हमेशा से बाबा साहब का परिनर्वाण दिवस जोर−शोर से मनाती है, लेकिन समाजवादी पार्टी को बाबा साहब क्यों रास आने लगे हैं, इसकी वजह सपा की विचारधारा में किसी तरह का बदलाव तो नहीं दलित वोट बैंक है, जिसमें सपा सेंधमारी चाहती है।
लोकसभा चुनाव से पूर्व सपा−बसपा गठबंधन टूटने के बाद से समाजवादी पार्टी की नजर बहुजन समाज पार्टी के वोटबैंक पर लगी हुई है। इसी कड़ी में सपा, बसपा के बागियों को पार्टी में स्थान और सम्मान देने के अलावा दलितों को जोड़ने की मुहिम भी चलाए हुए है। समाजवादी पार्टी ने पहली बार बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर का परिनिर्वाण दिवस व्यापक स्तर पर मनाने का फैसला लिया है। बाबा साहेब को याद करने के लिए सपा छह दिसंबर को जिलों में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित होंगे। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अपने कार्यकर्ताओं से कहा है कि सभी जिलों में छह दिसंबर को भारत के संविधान निर्माता व दलितों के मसीहा डॉ. आंबडेकर का परिनिर्वाण दिवस अनिवार्य रूप से मनाया जाए। इस मौके पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करने के साथ ही समाज निर्माण में उनकी भूमिका और आदर्शों पर चर्चा होगी। इसी क्रम में समाजवादी पार्टी के अधिकृत होर्डिंग्स में भी बदलाव किया गया है। अब सपा के बैनर−पोस्टरों में डॉ. राममनोहर लोहिया के साथ में बाबा साहेब के चित्र सभी होर्डिंग्स व अन्य प्रचार माध्यमों पर लगाने को भी कहा गया है।
बसपा छोड़कर सपा में आए एक पूर्व विधायक का कहना है कि बसपा से गठबंधन भले ही टूट गया हो परंतु दलितों में सपा को लेकर आक्रोश में अब पहले जैसी बात नहीं रह गई है। बसपा का एक धड़ा, मायावती ने जिस तरह से सपा से गठबंधन तोड़ा है उससे काफी आहत और नाराज है। ऐसे में बसपा से नाराज दलितों का एक खेमा समाजवादी पार्टी की साइकिल पर सवारी करने को राजी दिखता है। इसके लिए समाजवादी पार्टी योजनाबद्ध तरीके से दलितों का भरोसा जीतने की कोशिश में लगी है।
उधर, पहली बार डॉ. भीमराव आंबेडकर की पुण्यतिथि मनाने के समाजवादी पार्टी के फैसले से डरी बहुजन समाज पार्टी ने भी छह दिसंबर को व्यापक स्तर पर श्रद्धाजंलि कार्यक्रम आयोजित करने का फरमान जारी किया है। सेक्टर स्तर पर होने वाले कार्यक्रमों में पार्टी कार्यकर्ताओं को अधिक से अधिक भीड़ जुटाने और बाबा साहब की नीतियों व सिद्धांतों का प्रचार प्रसार करने के लिए कहा गया है। गत दिनों लखनऊ बसपा मुख्यालय में राष्ट्रीय टीम के पदाधिकारियों की बैठक में बसपा प्रमुख मायावती ने राजनीतिक हालात पर चर्चा की।
मायावती ने छह दिसंबर को होने वाले कार्यक्रमों में इस वर्ष अधिकतम भीड़ जुटाने की हिदायत दी। उनका कहना था कि सत्ता की मास्टर चाबी पाने के लिए बहुजन समाज में एकजुटता बनाए रखना बहुत जरूरी है। वोट के लिए दलित समाज की एकता को भंग करने की तमाम साजिशें हो रही हैं। वर्तमान राजनीतिक वातावरण में खासकर दलित, आदिवासी, पिछड़ा वर्ग व अल्पसंख्यक समाज को बुनियादी कानूनी व संवैधानिक हक से वंचित रखने का हर प्रकार का षड्यंत्र किया जा रहा है।
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मायावती का कहना था कि आंबेडकर परिनिर्वाण दिवस पर जहां पूरे प्रदेश में सेक्टर स्तर पर कार्यक्रम होंगे, वहीं लखनऊ में मंडल स्तर पर आंबेडकर सामाजिक परिवर्तन स्थल में श्रद्धासुमन कार्यक्रम होगा। उन्होंने लखनऊ के श्रद्धांजलि कार्यक्रम में स्वयं उपस्थित रहने के संकेत भी दिए। इसके साथ ही बसपा की बैठक में मायावती ने आंबेडकर पुण्यतिथि कार्यक्रमों के साथ 15 जनवरी को अपने जन्मदिन पर प्रतिवर्ष मनाए जाने वाले प्रोग्रामों की तैयारी की समीक्षा भी की।
-स्वदेश कुमार
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