कर्नाटक में जनादेश भाजपा को मिला था, उससे खिलवाड़ कर कांग्रेस ने सबका नुकसान किया
विधायकों को रिजॉर्ट पॉलिटिक्स कांग्रेस ने ही सिखायी है और इसका आविष्कार कर्नाटक में ही हुआ है। यह बात अलग है कि इस तरह की पॉलिटिक्स शुरू करने वाली कांग्रेस अब खुद इसका शिकार हो गयी है।
कर्नाटक में जनता दल सेक्युलर और कांग्रेस की गठबंधन सरकार के गिरने पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा है कि यह 'लोकतंत्र, ईमानदारी और राज्य की जनता की हार' है। दरअसल सत्ता किसी की भी जाये उसको दर्द तो होता ही है जाहिर है कांग्रेस को भी यह दर्द हो रहा होगा लेकिन चूँकि राहुल गांधी ने बात 'लोकतंत्र', 'ईमानदारी' और 'जनता की हार' की करी है इसलिए उन्हें जरा 2018 में हुए कर्नाटक विधानसभा चुनावों के परिणामों की याद दिलानी होगी। बतौर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पार्टी के स्टार प्रचारक थे, उन्होंने मंदिर-मंदिर, मठ-मठ जाकर शीश नवाया और किसानों के कर्ज की माफी जैसे कई बड़े-बड़े वादे किये लेकिन कर्नाटक की सत्ता से जनता ने कांग्रेस को उखाड़ फेंका और उसे मात्र 78 सीटों पर समेट दिया। 224 सदस्यीय कर्नाटक विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी लेकिन जादुई आंकड़े 113 से कुछ पीछे रह गयी। जनता दल सेक्युलर को 37 सीटों पर विजय मिली थी तथा बाकी सीटें अन्य और क्षेत्रीय दलों के खाते में गयी थीं।
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कर्नाटक की जनता ने भले भाजपा को स्पष्ट बहुमत नहीं दिया था लेकिन यह स्पष्ट था कि जनादेश कांग्रेस को विपक्ष में बैठने के लिए था। यही नहीं कांग्रेस के उस समय मुख्यमंत्री रहे सिद्धारमैया डर के मारे दो विधानसभा सीटों से चुनाव लड़े थे जिसमें से उन्हें एक पर हार का सामना करना पड़ा था। लेकिन सत्ता के लिए कांग्रेस ने उस जनता दल सेक्युलर से चुनाव परिणाम आने के कुछ ही घंटों के अंदर गठबंधन कर लिया जिसको चुनाव प्रचार के दौरान खूब खरी खोटी सुनाई थी। भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए कांग्रेस ने मुख्यमंत्री पद अपने से बहुत छोटी पार्टी के नेता एचडी कुमारस्वामी को देने का ऑफर दे दिया और अपने वरिष्ठ नेताओं को बैंगलुरु रवाना कर दिया और पार्टी के वकीलों की फौज को दिल्ली में तैनात कर दिया कि चाहे जो हो भाजपा को सरकार नहीं बनाने देनी है। कौन भूला है कांग्रेस का वह आधी रात को उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का वाकया जब उसने भाजपा नेता बी.एस. येदियुरप्पा को राज्यपाल द्वारा शपथ दिलाये जाने से रोकने की मांग की थी।
राज्यपाल ने अपने संवैधानिक कर्तव्यों का पालन करते हुए सबसे पहले सबसे बड़े दल के रूप में भाजपा को सरकार बनाने का निमंत्रण दिया था लेकिन कांग्रेस निर्दलीयों और क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर ऐसी गोलबंदी कर चुकी थी कि येदियुरप्पा को अपना इस्तीफा देना पड़ा और आखिरकार कर्नाटक में कांग्रेस और जनता दल सेक्युलर की मिलीजुली सरकार बन गयी। लेकिन अब सरकार गिरने पर राहुल गांधी जो 'लोकतंत्र, ईमानदारी और जनता की हार' की बात कर रहे हैं तो उन्हें यह देखना चाहिए कि लोकतंत्र को असली नुकसान तो तब पहुँचाया गया था जब भाजपा को रोकने के लिए उसने 37 सीटों वाली पार्टी का मुख्यमंत्री बनवा दिया, राहुल गांधी ईमानदारी की बात कर रहे हैं लेकिन कर्नाटक की कुमारस्वामी सरकार पर जितने भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं, वह अपने आप में रिकॉर्ड है। राहुल गांधी राज्य की जनता की हार की बात कर रहे हैं तो राज्य की जनता की हार उस दिन हुई थी जब जनादेश को नहीं मानते हुए उसके साथ खिलवाड़ करते हुए उसे पलट दिया गया था। राज्य की जनता की हार उस दिन से ही हो रही थी जिसका मुख्यमंत्री शपथ लेने के बाद से ही कहता रहा हो कि मुझे नहीं पता कब तक कुर्सी रहेगी, या फिर उनकी यह शिकायत रहती हो कि सत्तारुढ़ गठबंधन के नेताओं द्वारा उनका अपमान किया जाता है।
विधायकों को रिजॉर्ट पॉलिटिक्स कांग्रेस ने ही सिखायी है और इसका आविष्कार कर्नाटक में ही हुआ है। यह बात अलग है कि इस तरह की पॉलिटिक्स शुरू करने वाली कांग्रेस अब खुद इसका शिकार हो गयी है। कुमारस्वामी की 14 महीने पुरानी सरकार के दौरान पहली बार सरकार पर खतरा आया हो ऐसा नहीं है इससे पहले भी सत्तारुढ़ गठबंधन के विधायकों ने आंखें तरेरी थीं और कुछ को मंत्री पद देकर तो कुछ को मंत्री का दर्जा देकर मनाया गया था। कांग्रेस के लोग अफवाह 'ऑपरेशन लोटस' की फैलाते थे लेकिन अंदरखाने 'ऑपरेशन सिद्धारमैया' चल रहा था।
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यह गठबंधन कांग्रेस आलाकमान को भले भा रहा था लेकिन कर्नाटक की राज्य इकाई के कई नेता इस गठबंधन की जड़ें खोदने में लगे हुए थे जिनमें पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया सबसे आगे थे। सिद्धारमैया ने लोकसभा चुनावों में मांड्या में कुमारस्वामी के बेटे को हरवाने का हर संभव प्रयास किया था। सिद्धारमैया की मुख्यमंत्री पद पर लौटने की आकांक्षा किसी से छिपी नहीं है लेकिन कांग्रेस उन पर कोई कार्रवाई कर पाने में विफल रही। कुमारस्वामी सरकार में भ्रष्टाचार किस तरह चरम पर था यह बात तब सामने आ गयी थी जब इस सरकार के कार्यकाल के दौरान विभिन्न प्रकार के छापों में कई तरह के खुलासे हुए। लोकसभा चुनावों के समय जब राज्य की जनता से विभिन्न जगहों पर जाकर राज्य सरकार के बारे में प्रतिक्रिया ली तो वह वाकई चौंकाने वाले थी क्योंकि हर कोई भ्रष्टाचार के मामलों में नये-नये खुलासे करता था। साथ ही जिस तरह कर्नाटक की सरकार में साथ होते हुए भी जनता दल सेक्युलर और कांग्रेस के नेता सार्वजनिक रूप से आपस में भिड़ते थे उससे भी लोगों में सही संदेश नहीं गया। कर्नाटक में कुमारस्वामी की सत्ता जाते ही यह सवाल भी खड़ा हो गया कि उनके शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए विपक्षी दलों की एकता का अब क्या होगा। हालांकि इसमें से 'अधिकांश की एकता' लोकसभा चुनावों के दौरान ही टूट चुकी है।
बहरहाल, मुख्यमंत्री पद पर भले 23 जुलाई को कुमारस्वामी की हार हुई हो लेकिन उनकी असल हार तो 23 मई को तब हो गयी थी जब लोकसभा चुनावों के परिणाम आये थे। मुख्यमंत्री के पिता और पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा और मुख्यमंत्री के बेटे निखिल कुमारस्वामी की चुनावों में हार हुई थी। होना तो यह चाहिए था कि 23 मई को ही कुमारस्वामी इस्तीफा दे देते लेकिन सत्ता त्याग करने वाले दुर्लभ लोग सिर्फ किताबों में ही मिलते हैं। बात राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की करें तो उन्हें अब तो कम से कम कर्नाटक विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की हार हुई थी, यह बात स्वीकार करनी चाहिए और आंतरिक समीक्षा का काम शुरू करना चाहिए। यह पूरी तरह स्पष्ट है कि भले पूर्ण नहीं हो लेकिन कर्नाटक विधानसभा चुनावों में जनादेश भाजपा को सत्ता पक्ष में बैठने के लिए था। कांग्रेस ने जनादेश से खिलवाड़ कर भाजपा ही नहीं, अपना, अन्य पार्टियों का, कर्नाटक की आर्थिक स्थिति का और कर्नाटक के राजनीतिज्ञों की छवि को बड़ा भारी नुकसान पहुँचाया है। कर्नाटक में आज तक अगर कोई गठबंधन सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई है तो उसकी सर्वाधिक दोषी कांग्रेस ही है।
-नीरज कुमार दुबे
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