Raebareli को घर समझ कर Rahul Gandhi चुनावी अखाड़े में कूद तो गये हैं लेकिन दिनेश प्रताप सिंह ने जोरदार तरीके से ताल ठोक रखी है
रायबरेली संसदीय क्षेत्र के चुनावी इतिहास की बात करें तो आपको बता दें कि 1977 में राजनारायण ने इंदिरा गांधी को यहां से चुनाव हरा कर सबको चौंका दिया था। उसके बाद राम मंदिर के आंदोलन से उपजी लहर में दो बार भाजपा यहां चुनाव जीत चुकी है।
उत्तर प्रदेश का रायबरेली और अमेठी संसदीय क्षेत्र वीआईपी इलाके माने जाते हैं क्योंकि यह दशकों से गांधी परिवार के गढ़ के रूप में विख्यात हैं। आप जब किसी वीआईपी क्षेत्र या गढ़ की कल्पना करते हैं तो स्वाभाविक रूप से मन में ऐसी छवि उभरती है कि वहां विकास की गंगा बह रही होगी और सबकुछ सर्वोत्तम होगा। चूंकि यह क्षेत्र दशकों से गांधी परिवार का गढ़ रहा है तो आपको लगेगा कि उन्होंने यहां किसी भी प्रकार की कमी नहीं रखी होगी। लेकिन जब आप इन क्षेत्रों का दौरा करेंगे तो पाएंगे कि जनता ने तो खूब प्यार और सम्मान दिया लेकिन गांधी परिवार ने इस क्षेत्र के लिए ज्यादा कुछ नहीं किया। खासतौर पर रायबरेली तो अब तक गांधी परिवार के साथ रहा था लेकिन यहां की टूटी सड़कें और विकास का अभाव क्षेत्र के साथ सांसद की बेरुखी को दर्शाता है। जब प्रभासाक्षी की टीम रायबेरली पहुँची तो लोगों ने हमसे शिकायत की कि पहले तो कभी कभार सोनिया गांधी क्षेत्र में आ भी जाया करती थीं लेकिन 2019 में जीतने के बाद उन्होंने पूरी तरह मुंह फेर लिया। लोगों ने नाराजगी भरे स्वर में कहा कि कोरोना की इतनी बड़ी महामारी आई उस समय तमाम सांसद अपने अपने क्षेत्र की जनता की मदद करते दिखे लेकिन सोनिया गांधी ने रायबरेली की कोई सुध नहीं ली। लोगों ने कहा कि यहां तक सोनिया गांधी के लिए वोट मांगने वाली प्रियंका गांधी वाड्रा भी मुसीबत के वक्त लोगों का हालचाल जानने नहीं आईं। लोगों ने कहा कि हमने यहां से चुनाव जिता कर भेजा लेकिन सोनिया गांधी जीत का प्रमाण पत्र तक लेने नहीं आईं। लोगों ने कहा कि हम हमेशा यही सुनते रहे कि सोनिया गांधी अस्वस्थता के कारण यहां नहीं आ पा रही हैं लेकिन जब अपने लड़के राहुल गांधी का नामांकन भरवाना था तब वह यहां आ गयीं। लोगों ने कहा कि इस क्षेत्र में राहुल गांधी से ज्यादा प्रयंका गांधी आती हैं इसलिए यदि सोनिया को अपने बच्चों में से ही किसी को टिकट देना था तो प्रियंका को उतारा जाना चाहिए था। हमसे बातचीत में लोगों ने कहा कि सोनिया के इस निर्णय से साबित हो गया है कि वह लड़का और लड़की में भेद करती हैं।
प्रभासाक्षी से बातचीत में लोगों ने कहा कि पिछले पांच साल में जनता अपने सांसद को ढूंढ़ती रह गयी लेकिन वह नहीं मिलीं इसलिए इस बार हम इतिहास को दोहराने जा रहे हैं। जब हमने पूछा कि कौन-सा इतिहास दोहराने की तैयारी है तो लोगों ने कहा कि जैसे राहुल गांधी की दादी इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए रायबरेली की जनता ने चुनाव हरवाया था उसी प्रकार इस बार उनके पोते को हार मिलेगी। लोगों ने कहा कि हम जानते हैं कि राहुल गांधी बड़े नेता हैं वह अक्सर विदेश दौरों पर रहते हैं इसलिए जीत के बाद उन्हें यहां आने का मौका नहीं मिलेगा। जनता ने यह भी कहा कि हम यह भी जानते हैं कि राहुल गांधी वायनाड से भी चुनाव लड़ रहे हैं और दोनों सीटों से यदि वह जीत गये तो वायनाड को ही बरकरार रखेंगे क्योंकि उन्हें एक वर्ग को खुश रखना है। लोगों ने कहा कि हम नहीं चाहते कि राहुल गांधी यहां से जीतें और फिर हमें अपने काम करवाने के लिए अपने सांसद को ढूँढ़ना पड़े। लोगों ने कहा कि भाजपा उम्मीदवार दिनेश प्रताप सिंह हमारे बीच के हैं और लोगों से मिलते जुलते रहते हैं। लोगों ने कहा कि हम दिनेश प्रताप सिंह और उनके परिवार को अच्छे से जानते हैं और जब भी कोई काम पड़ा है तो उन्होंने हमारी मदद की है। जनता से उनका हमेशा संपर्क रहता है और हमें ऐसा ही नेता चाहिए।
इसे भी पढ़ें: लखनऊ क्या फिर बनेगा रक्षा मंत्री राजनाथ का ’रक्षा कवच’
हम आपको बता दें कि रायबरेली में विधायक अदिति सिंह को उम्मीद थी कि उन्हें कांग्रेस का साथ छोड़ कर भाजपा में आने का प्रतिफल मिलेगा और संसदीय चुनाव में उन्हें उम्मीदवार बनाया जायेगा। इसी प्रकार हाल ही में राज्यसभा चुनाव में सपा विधायक दल के मुख्य सचेतक रहे मनोज पांडेय ने भी इस उम्मीद में पाला बदला था कि उन्हें लोकसभा चुनाव का टिकट मिलेगा लेकिन उम्मीदवार बना दिये गये योगी सरकार में मंत्री दिनेश प्रताप सिंह। इसके चलते यह दोनों नेता नाराज बताये जा रहे थे लेकिन भाजपा ने अब इनको मना लिया है। रायबरेली के दौरे के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भाजपा विधायक अदिति सिंह को मनाया जिसके बाद उन्होंने कहा कि अब सब ठीक है और यह चुनाव बहुत अच्छा रहेगा। वहीं मनोज पांडेय को मनाने के लिए अमित शाह उनके घर ही पहुँच गये। माना जा रहा है कि राहुल गांधी को रायबरेली से चुनाव हरवाने के लिए भाजपा सारे राजनीतिक समीकरण साध चुकी है।
राहुल गांधी भले इस क्षेत्र में नाई की दुकान पर जाकर इस क्षेत्र से अपना लगाव दर्शा रहे हों, अपनी दो मां- दादी और मम्मी के इस क्षेत्र से जुड़ाव की लोगों को याद दिला रहे हों, भले उनकी बहन यहां डेरा जमा कर बैठ गयी हों और घर-घर जाकर प्रचार कर रही हों लेकिन इस क्षेत्र में आकर यह साफ पता लगता है कि पिछले पांच साल में गांधी परिवार ने जिस तरह रायबरेली की उपेक्षा की उसके चलते लोगों का उस परिवार के प्रति भावनात्मक लगाव कम या खत्म हो गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शायद जमीनी स्थिति का पता है इसीलिए उन्होंने हाल ही में एक साक्षात्कार में दावा कर दिया कि राहुल गांधी की रायबरेली में अमेठी से भी बड़ी हार होगी। इसके अलावा हमने यहां के दौरे पर पाया कि बड़ी संख्या में प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ क्षेत्र के लोगों को मिला है और अपने जीवन में आये इस बदलाव के लिए वह मोदी के मुरीद नजर आये। साथ ही रायबरेली में लगभग हर घर पर लगा जयश्रीराम का झंडा दर्शा रहा था कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण हो जाने से इस क्षेत्र के लोग कितने खुश हैं।
रायबरेली संसदीय क्षेत्र के चुनावी इतिहास की बात करें तो आपको बता दें कि 1977 में राजनारायण ने इंदिरा गांधी को यहां से चुनाव हरा कर सबको चौंका दिया था। उसके बाद राम मंदिर के आंदोलन से उपजी लहर में दो बार भाजपा यहां चुनाव जीत चुकी है। 1996 के चुनाव में भाजपा उम्मीदवार अशोक सिंह ने पहली बार कांग्रेस के गढ़ में सेंध लगाई थी। इसके बाद 1998 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा के अशोक सिंह ने यहां से जीत दर्ज की थी। अब भाजपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे दिनेश प्रताप सिंह पहले कांग्रेस में ही थे। वह जानते हैं कि कांग्रेस अपनी चुनावी बिसात इस सीट पर कैसे बिछाती रही है इसलिए उनको अपना काम आसान नजर आ रहा है। देखना होगा कि यहां चुनाव का परिणाम क्या रहता है लेकिन एक बात तो तय है कि राहुल गांधी रायबरेली को जितना आसान समझ कर यहां आये हैं यह सीट उतनी आसान उनके लिए है नहीं।
-नीरज कुमार दुबे
अन्य न्यूज़