राहुल गांधी की ''न्यूनत आय योजना'' हकीकत या चुनावी जुमला?
राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ''कृषक सम्मान योजना'' की जगह जो ''न्यूनत आय योजना'' लाने की घोषणा की वह 6 हजार सालाना की जगह 12 हजार रुपये मासिक की लड़ाई है। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि हार के डर से इस योजना की घोषणा हुई।
राहुल गांधी ने एक बड़ा ही चुनावी दांव चला जिसमें 20 फीसदी देश के गरीबों को 72 हजार रुपये सालाना देने का वादा कर डाला। इससे होने वाले लोकसभा चुनाव पर असर पडऩा लाजमी है क्योंकि यह लोक लुभावन वादे से जनता को अपनी-अपनी ओर खींचने के नए तरीकों का इस्तेमाल सभी पार्टियों ने शुरू कर दिया है। चाहे वह कांग्रेस हो या भाजपा या अन्य राज्यों की क्षेत्रीय पार्टियां सभी ज्यादा से ज्यादा सीटें निकालने के लिए नए-नए हथकंडे अपना रहीं है।
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राहुल गांधी को अब जनता की गरीबी दिखाई दे रही है या लोकसभा चुनाव जीतने का नया हथकंडा क्योंकि कि केंद्र में एनडीए सरकार के पहले जब केंद्र में यूपीए की सरकार थी तब भी तो गरीबी थी तब तो गरीबों पर ध्यान नहीं दिया गया। जो कि दो पंचवर्षीय यूपीए की सरकार केंद्र में थी तब कोई ऐसा ऐलान क्यों नहीं किया गया? क्या इसका कारण राजकोषीय घाटा था? जिसके चलते मनरेगा को छोड़ कोई भी किसानों या गरीबों के लिए योजना लाई गई हो। तब न ही पूरे देश के किसानों का कर्ज ही माफ किया गया, और आज किसानों की बात की जा रही है, अब कर्ज माफी को मुद्दा बनाया जा रहा है। यदि इतना ही गरीबों और किसानों से लगाव था तो इन योजनाओं को लाकर गरीबों की मदद पहले भी की जा सकती थी। अब जब दिनोंदिन लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं तो गरीबों और किसानों को साधने का प्रयास किया जा रहा है।
यदि यूपीए की सरकार बनती है तो इस न्यूनत आय योजना को लागू करने में भी काफी मुश्किल होगी। क्योंकि गरीबी हटाने का वादा करना तो ठीक है लेकिन हर साल तीन लाख 60 हजार करोड़ रुपये सरकार कहा से जुटायेगी। यह तो मानने की बात है। शिक्षा, चिकित्सा जैसे बजटों में भारी भरकम कटौती भी की जा सकती है। नहीं तो इस योजना को लागू करने में बहुत ही मुश्किल होगी। यह योजना सुनने में तो बहुत अच्छी लग रही है लेकिन गरीब परिवारों के मुखिया समेत परिवार के सभी सदस्यों की आय देखी जायेगी तो बहुत ही कम लोगों को इस योजना का लाभ मिल सकेगा। क्योंकि यदि परिवार में पाँच लोग हैं तो मुखिया समेत सभी की आय देखी जायेगी, पूरे परिवार की आय 12 हजार रुपये है तो इस योजना का लाभ नहीं मिल सकेगा। अगर सभी की आय मिलाकर 12 हजार रुपये से जितनी कम होगी उतनी ही उन्हें दी जायेगी। तो यह ऊट के मुंह में जीरा जैसा साबित होगा।
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राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 'कृषक सम्मान योजना' की जगह जो 'न्यूनत आय योजना' लाने की घोषणा की वह 6 हजार सालाना की जगह 12 हजार रुपये मासिक की लड़ाई है। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि हार के डर से इस योजना की घोषणा हुई। अब देखना यह है कि भोली भाली जनता किधर जाती है यह तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा क्योंकि एक तरफ योजनाओं का लाभ उठा चुके लोग नरेन्द्र मोदी की तरफ रुख करते हैं या फिर कांग्रेस की घोषणा के चलते उधर रुख करते हैं। वहीं राहुल गांधी ने युवा उद्यमियों को साधने का भी प्रयास किया है और उन्होंने कहा कि नया उद्यम लगाने के लिए तीन साल तक सरकार से किसी तरह की मंजूरी लेने की जरूरत नहीं होगी। बेरोजगारी के लिए मोदी सरकार पर ठिकरा फोड़ते हुए बताया कि देश के 45 साल के इतिहास में सबसे अधिक बेरोजगारी आज मोदी सरकार के कार्यकाल में है। गरीबी मिटाने के लिए ऐसी योजनाओं से ज्यादा किसानों के फसलों का उचित मूल्य और उर्वरक, पानी एवं बीज, भंडारण जैसी सुविधाएं देने से ही उनकी समस्या सुलझ सकती है न कि ऐसी लोकलुभावन योजना के लाने से उनके जीवन में कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
अगर अर्थशास्स्यिों की माने तो न्याय सामाजिक सुरक्षा के लिए यह स्वागत योग्य प्रतिबद्घता है लेकिन इस प्रस्ताव की मजबूती इस बात पर निर्भर करेगी कि इसका वित्त पोषण कैसे होता है और किस प्रकार 20 प्रतिशत आबादी की पहचान की जाती है। इससे राजकोषीय बोझ पड़ेगा लेकिन कई अमीरों के पास गलत तरीके से अर्जित धन पड़ा है। यदि कोई भी ईमानदार नेतृत्व इस तरह के धन को बेहतर उपयोग के लिये लगा सकते हैं। इस योजना में काफी धन की जरूरत होगी और इसके क्रियान्वयन का भी मुद्दा बना रहेगा।
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कुछ विशेषज्ञों ने यह भी माना कि भारत का कर -जीडीपी अनुपात दुनिया में सबसे कम है। हम अति धनाढ्यों पर उच्च दर से कर नहीं लगाते। हम धनी तथा मध्यमवर्ग को जो सब्सिडी दे रहे हैं वह गरीबों को दी जाने वाली सहायता के मुकाबले तीन गुना है। इसीलिए हमें अपनी सब्सिडी को सही जगह पहुंचाने के लिये उसे ठीक करना पड़ेगा। कुल मिलाकर देखा जाये तो यदि धनी वर्ग पर उच्च कर लगा दिया जाये तो सम्भव है। किन्तु मध्यमवर्ग की यदि सब्सिडी खत्म कर दी जाती है तो मध्यमवर्ग के बहुत ही बड़ी परेशानी खड़ी हो जायेगी। देश में मध्यमवर्ग तबका सबसे बड़ा वोट बैंक है। इसलिए राजनीतिक पार्टियां मध्यमवर्ग को दी जा रही सब्सिडी में छेड़छाड़ नहीं करेंगी।
इस योजना को लागू करने के लिये 2019-20 में 3.60 लाख करोड़ रुपये या जीडीपी का 1.7 प्रतिशत की जरूरत होगी। अगले वित्त वर्ष के लिये जीडीपी 210 लाख करोड़ रुपये आंका गया है। अब यदि कांग्रेस की सरकार बनती है तो वह इस योजना के लिए कहाँ से इतना पैसा लाते है वह तो अभी इस विषय कोई जानकारी ही नहीं दी। वित्तीय नजरिये से इस योजना के क्रियान्वयन को लेकर चिंता जतायी जा रही है। कुलमिलाकर देखा जाये तो यह योजना सुनने में तो बहुत अच्छी है लेकिन इसको लागू करने के लिए बहुत ही परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है, या कुछ दिन इस योजना का पैसा देने के बाद इस योजना को बंद भी किया जा सकता है।
- रजनीश कुमार शुक्ल
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