कांग्रेस अध्यक्ष पद पर नहीं प्रधानमंत्री पद पर है राहुल गांधी की नजर, इसलिए तो कांग्रेस ने यह रणनीति बनाई है

Rahul Gandhi
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जहां तक राहुल की संभावित नयी और बड़ी भूमिका की बात है तो आपको बता दें कि राहुल गांधी ने हाल ही में 'एक व्यक्ति एक पद' के सिद्धांत की बात की थी। इस सिद्धांत के चलते अशोक गहलोत को कांग्रेस अध्यक्ष पद पर निर्वाचित होते ही राजस्थान के मुख्यमंत्री का पद छोड़ना होगा।

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भले दोबारा पार्टी अध्यक्ष नहीं बनना चाह रहे हों लेकिन उनको बड़ी भूमिका दिये जाने की पटकथा लिखी जा चुकी है। राहुल गांधी इन दिनों भारत जोड़ो यात्रा पर हैं और इसके बारे में उनका कहना है कि वह इस यात्रा का नेतृत्व नहीं कर रहे हैं बल्कि इसमें एक सहयात्री के रूप में भाग ले रहे हैं। लेकिन हम आपको बता दें कि यह सहयात्री जब दिल्ली लौटेंगे तो एक बड़ी भूमिका में होंगे। भले पार्टी अध्यक्ष पद गांधी परिवार के पास नहीं होगा लेकिन पार्टी को कैसे आगे लेकर जाना है या चुनावों में कब और क्या भूमिका निभानी है यह सब राहुल गांधी ही तय करेंगे। जहां तक कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव की बात है तो यह करीब-करीब तय हो चुका है कि मुकाबला अशोक गहलोत और शशि थरूर के बीच होगा। यानि लंबे अर्से बाद ऐसा होने जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष गांधी परिवार से बाहर का कोई व्यक्ति होगा। इस बारे में कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि गांधी परिवार से पार्टी अध्यक्ष नहीं होगा तो 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को 'परिवारवाद' पर हमला करने का मौका भी नहीं मिलेगा।

जहां तक राहुल गांधी की संभावित नयी और बड़ी भूमिका की बात है तो आपको बता दें कि राहुल गांधी ने हाल ही में 'एक व्यक्ति एक पद' के सिद्धांत की बात की थी। इस सिद्धांत के चलते अशोक गहलोत को कांग्रेस अध्यक्ष पद पर निर्वाचित होते ही राजस्थान के मुख्यमंत्री का पद छोड़ना होगा। पार्टी ने अपने उदयपुर चिंतन शिविर में भी तय किया था कि एक व्यक्ति के पास दो पद नहीं रहेंगे ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को जिम्मेदारी दी जा सके। इसलिए कांग्रेस में अब उन सभी लोगों को एक पद से इस्तीफा देना होगा जो इस समय दो पद संभाल रहे हैं। ऐसे ही लोगों में एक नाम है लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी का। हम आपको बता दें कि अधीर रंजन चौधरी लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता के अलावा पश्चिम बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष का पद भी संभाल रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि अधीर रंजन चौधरी को लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता का पद छोड़ना होगा और इस पद पर राहुल गांधी को नियुक्त किया जायेगा ताकि सरकार से वह सीधी टक्कर ले सकें।

कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी को लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल का नेता बनाया जायेगा ताकि वह मोदी सरकार की कथित नाकामियों को उजागर कर सकें। राहुल गांधी संगठन से ज्यादा सरकार को घेरने में समय लगायेंगे ताकि पार्टी को आगामी चुनावी मुकाबलों के लिए तैयार किया जा सके। कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी की संसद में ज्यादा भागीदारी के जरिये भाजपा के उन आरोपों की हवा भी निकाली जायेगी जिसके तहत कहा जाता है कि राहुल गांधी संसद में नहीं आते हैं या वह कोई सवाल नहीं पूछते हैं। कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि संसद में प्रधानमंत्री मोदी के साथ राहुल गांधी की जितनी ज्यादा 'राजनीतिक टक्कर' होगी उतना ही राहुल गांधी की पीएम कैंडिडेट वाली छवि बलवती होगी। कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी देश की समस्याओं को समझ रहे हैं जिसके चलते अब वह प्रभावी ढंग से जनता के मुद्दों को संसद में रख पाएंगे। भारत जोड़ो यात्रा से आने के बाद राहुल गांधी का युवाओं के साथ खासतौर पर लगातार संवाद का कार्यक्रम भी रहने वाला है।

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यही नहीं, कांग्रेस सूत्रों का यह भी कहना है कि भारत जोड़ो यात्रा के समापन के बाद भी राहुल गांधी का जनता से संवाद का कार्यक्रम लगातार जारी रहेगा और वह समाज के विभिन्न वर्गों के बीच सक्रिय नजर आयेंगे। दरअसल ऐसा करके मुख्य विपक्षी पार्टी राहुल गांधी की उस छवि को भी बदलना चाहती है जिसके तहत कहा जाता है कि वह सिर्फ चुनावों के मौके पर जनता के बीच नजर आते हैं और अक्सर छुट्टी पर विदेश चले जाते हैं। या फिर यह आरोप लगाया जाता है कि राहुल गांधी सिर्फ ट्वीट करना जानते हैं। कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि 2024 का लोकसभा चुनाव भले अभी कुछ समय दूर हो लेकिन राहुल गांधी की इतनी सक्रियता अभी से ऐसी दिखेगी कि अन्य पार्टियां भी अपनी चुनावी तैयारी तुरंत शुरू कर देंगी।

कांग्रेस सूत्रों का यह भी कहना है कि राहुल गांधी संगठन में पद अभी इसलिए भी नहीं चाहते थे क्योंकि पार्टी को चुनावी लड़ाई के लिए तैयार करने के साथ ही संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन को भी मजबूत करना है। पार्टी के नेताओं का कहना है कि राहुल गांधी की विपक्षी दलों के नेताओं से मेल-मुलाकात के कार्यक्रम भी अब खूब होंगे ताकि एक मजबूत विपक्षी गठबंधन बनाया जा सके। कांग्रेस ने इस काम में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार को लगा भी दिया है जिन्होंने हाल ही में बयान दिया था कि ममता बनर्जी कांग्रेस के साथ अपने मतभेद भुलाने को तैयार हैं। इसके अलावा नीतीश कुमार को भी जिम्मेदारी सौंपी गयी है कि पुराने समाजवादियों को एक मंच पर लाने के प्रयास किये जायें। गौरतलब है कि ममता बनर्जी और नीतीश कुमार दोनों ही प्रधानमंत्री पद के महत्वाकांक्षी हैं लेकिन यदि यह दोनों कांग्रेस के साथ आ जाते हैं तो राहुल गांधी की ताकत बढ़ जायेगी। शरद पवार पहले ही कह चुके हैं कि वह प्रधानमंत्री पद की रेस में नहीं हैं। ऐसे में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ही रहेंगे जो पीएम पद की महत्वाकांक्षा रखते हैं और उसे पूरा करने के मिशन पर लगे हुए हैं। लेकिन कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि आने वाले दिनों में राजनीतिक हालात ऐसे होंगे जिससे सभी गैर भाजपाई दलों को एक बार फिर यही विश्वास हो जायेगा कि भाजपा से टक्कर सिर्फ कांग्रेस के नेतृत्व में ली जा सकती है।

बहरहाल, देखना होगा कि राहुल गांधी की यह सब कवायदें क्या कांग्रेस पार्टी को सफलता दिला पाती हैं क्योंकि कांग्रेस भले 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों के लिए अब तैयारी शुरू करने जा रही हो लेकिन भाजपा यह काम पहले ही शुरू कर चुकी है। दूसरा कांग्रेस को यह भी समझना होगा कि भले वह यूपीए का कुनबा मजबूत कर ले लेकिन जब तक वह खुद मजबूत नहीं होगी उसका कुछ नहीं हो सकता। खुद की मजबूती के लिए कांग्रेस को अपने संगठन को वापस खड़ा करना होगा जोकि एकदम शिथिल पड़ चुका है।

- नीरज कुमार दुबे

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