बालासोर रेल हादसे से उपजते सवाल समय रहते ही मांग रहे दो टूक जवाब ताकि थमे ऐसी रेल दुर्घटनाएं
जानकारों का कहना है कि इस मार्ग पर कवच प्रणाली उपलब्ध नहीं थी। क्योंकि जब लोको पायलट सिग्लन तोड़कर बढ़ता है तो 'कवच' सक्रिय हो जाता है। जब एक मार्ग पर निर्धारित दूरी के अंदर अन्य ट्रेन होने का संकेत मिलता है तब यह प्रणाली सतर्क करती है और ट्रेन को स्वतः रोक देती है।
सम्भवतया सदी के सबसे बड़ा रेल हादसा समझा जाने वाला बालासोर (उड़ीसा) भीषण ट्रेन हादसा ने देश-दुनिया वासियों को हिलाकर रख दिया है। गत शुक्रवार को हुए इस हादसे में जहां 288 लोगों की मौत हो चुकी है, वहीं 1175 यात्रियों के घायल होने की खबर है। आने वाले दिनों में मृतकों के आंकड़े बढ़ भी सकते हैं। इस रेल दुर्घटना के बाद 90 ट्रेनों के रद्द होने और 46 ट्रेनों के मार्ग परिवर्तन से इस रेलमार्ग के महत्व का पता चलता है। इसलिए ऐसे सभी रेल मार्गों को और अधिक सुरक्षित व सुविधापूर्ण बनाये जाने की जरूरत है। वाकई इस हृदय विदारक घटना से कई सवाल उपज रहे हैं, जिसके जवाब यदि समय से मिल जाए तो भविष्य में ऐसे लोमहर्षक हादसे थम सकते हैं।
पहला सवाल है कि सरकारीकरण और निजीकरण की दुविधा में पड़े भारतीय रेलवे ने समय रहते ही इस महत्वपूर्ण रेलखंड पर 'कवच प्रणाली' का उपयोग क्यों नहीं किया, जो कि ऐसे रेल हादसों को रोकने में सक्षम बताये जाते हैं। जानकारों का कहना है कि इस मार्ग पर कवच प्रणाली उपलब्ध नहीं थी। क्योंकि जब लोको पायलट सिग्लन तोड़कर बढ़ता है तो 'कवच' सक्रिय हो जाता है। जब एक मार्ग पर निर्धारित दूरी के अंदर अन्य ट्रेन होने का संकेत मिलता है तब यह प्रणाली सतर्क करती है और ट्रेन को स्वतः रोक देती है।
दूसरा सवाल है कि सरकारीकरण बनाम निजीकरण की चक्की में पिस रहे आम आदमी को गुणवत्तापूर्ण व्यवस्थागत सेवाएं आखिर कब तलक मिलेंगी, क्योंकि मीडिया रपटों से पता चलता है कि सिस्टम के निजीकरण के चलते सिर्फ रेलवे ही नहीं बल्कि अधिकांश क्षेत्रों में जहां उपभोक्ताओं को पहले से ज्यादा भुगतान करना पड़ रहा है, वहीं सेवागत गुणवत्ता में या तो कमी आई है या फिर नदारत बताई जाती है। आखिर ऐसा क्यों है और इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों की नकेल कसने में हमारा राजनीतिक नेतृत्व विफल क्यों प्रतीत हो रहा है?
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तीसरा सवाल है कि क्या इस हादसे के तुरंत बाद दिखाई दिए सरकारी राहत एवं बचाव के उपायों को और अधिक बेहतर व प्रासंगिक बनाने के लिए पहले से ही नीतियां क्यों नहीं बनाई जाती हैं, क्योंकि जब भी ऐसे हादसे कहीं होते हैं तो आसपास उपलब्ध आपात नागरिक सुविधाएं कमतर प्रतीत होने लगती हैं। क्या अब भी सरकार चेतेगी और प्रत्येक 100-150 किलोमीटर के दायरे में माकूल इंतजाम करने की रणनीति बनाएगी, ताकि आम दिनों में ऐसी सुविधाएं आमलोगों के काम आएं और आपातकालीन परिस्थितियों में किसी भी घटना से पीड़ित व्यक्तियों के काम आए। क्योंकि रेल व सड़क हादसे और बर्बर संघर्ष इस देश की नियति बन चुकी है।
चतुर्थ सवाल है कि विपक्ष द्वारा परम्परागत रूप में रेल मंत्री के इस्तीफे की मांग तो की जा रही है, लेकिन इन्हें शर्म नहीं आती कि देश पर लगभग 5 दशक तक शासन करने वाली कांग्रेस और उसके पिछलग्गुओं ने भारतीय रेल, सड़क व वायु परिवहन को दिया क्या है? किसी भी आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए सुदूर इलाकों में कितनी स्वास्थ्य सुविधाएं व अन्य जनसुविधाएं विकसित की थीं। इन्होंने किसी बड़ी घटना के बाद मंत्रियों से इस्तीफे तो ले लिए, लेकिन उसके बाद भी जनहित में ठोस उपाय क्यों नहीं किये। अन्यथा आज देश और अधिक विकसित व सुव्यवस्थित होता। सच कहूं तो जिस विपक्षी अराजकता को उन्होंने बढ़ावा दिया, उसका दुष्परिणाम आजतक देश व देशवासी दोनों भुगत रहे हैं।
पंचम सवाल है कि इस हादसे के पीछे दुर्घटना की वजह पर रेलवे की दो रिपोर्ट सामने आई है। एक रिपोर्ट में बताया गया है कि कोरोमंडल एक्सप्रेस के लिए ग्रीन सिग्नल था, फिर भी यात्री ट्रेन लूप लाइन में घुसकर बहनागा बाजार स्टेशन पर खड़ी मालगाड़ी से टकरा गई, जिससे इसके डिब्बे दूसरी पटरी पर गिर गए। जिससे यशवंतपुर-हावड़ा एक्सप्रेस दुर्घटनाग्रस्त हो गई। यानी कि रेल सिग्नल में गड़बड़ी का अनुमान लगाया जा रहा है। वहीं, दूसरी रिपोर्ट में बताया गया है कि यशवंतपुर-हावड़ा एक्सप्रेस के डीरेल होने यानी पटरी से उतरने के कारण कोरोमण्डल और मालगाड़ी हादसे की शिकार हुई। इसलिए सरकार का यह कर्तव्य बनता है कि वह दुविधा भरी बातों को तरजीह देने की प्रशासनिक अभ्यस्तता पर नजर रखे और सटीक निर्णयों तक पहुंचने की मंशा रखे, ताकि ऐसी हृदयविदारक घटनाएं रुकें।
षष्टम सवाल है कि क्या मौजूदा सरकार विभिन्न औपचारिकताओं से ऊपर उठकर कुछ ऐसे ठोस उपाय करेगी, ताकि भविष्य में ऐसी दुर्घटनाओं पर काबू पाया जा सके। क्या वह अपनी व्यवस्था को इतनी ठोस और वैज्ञानिक बनायेगी, ताकि ऐसी अप्रत्याशित दुर्घटनाएं कभी हों ही नहीं। बहरहाल, इस हादसे की जो उच्चस्तरीय जांच शुरू हो चुकी है, वह जल्द मुकाम पर पहुंचे। भारतीय रेलवे के प्रवक्ता अमिताभ शर्मा के मुताबिक, जांच समिति की अध्यक्षता दक्षिण-पूर्वी प्रखंड के रेलवे सुरक्षा आयुक्त ए एम चौधरी कर रहे हैं। इसलिए उम्मीद की जाती है कि वह जल्द ही दूध का दूध और पानी का पानी कर देंगे। क्योंकि शुक्रवार की शाम कोरोमण्डल एक्सप्रेस और बेंगलुरु-हावड़ा एक्सप्रेस के पटरी से उतरने और मालगाड़ी से टकराने से हुआ यह हादसा इतना भीषण था कि ट्रेन की बोगियां एक के ऊपर एक चढ़ गईं और कुछ बोगियां जमीन के भीतर धंस गई थीं, जिसके दृष्टिगत कोच को काटकर शव निकालने पड़े।
सप्तम सवाल है कि पूर्वी और दक्षिण भारत को जोड़ने वाले इस महत्वपूर्ण रेल मार्ग पर ऐसी दुर्घटनाओं को रोकने में कारगर "कवच प्रणाली" का न होना क्या रेल अधिकारियों की मानसिकता पर सवाल पैदा नहीं, क्योंकि यदि यह कवच प्रणाली लगाई गई होती तो बालासोर रेल हादसा टल सकता था। आमतौर पर देखा जाता है कि दिल्ली में बैठे लोग उत्तर भारत और पश्चिम भारत पर ज्यादा ध्यान देते हैं, पूर्वी भारत और दक्षिण भारत की अपेक्षा। इसलिए सुरक्षा उपायों में ऐसी घृणित मानसिकता से ऊपर उठने की जरूरत है।
अष्टम सवाल है कि बालासोर ट्रेन हादसे के तत्काल बाद स्थानीय लोगों, जिला प्रशासन, राज्य प्रशासन और केंद्रीय प्रशासन के साथ साथ रेल प्रशासन ने जो संवेदनशीलता और सक्रियता दिखाई और पीड़ितों को हर सम्भव मदद पहुंचाने की कोशिश की, वह सराहनीय है। फिर भी एक भारत, श्रेष्ठ भारत की रणनीति के तहत राज्यों के साथ मिलकर आपातकालीन जनसुविधाओं को विकसित करना केंद्र का फर्ज है। पूर्वी भारत और उससे लगे इलाके नक्सलियों और जातिवादी अपराधियों के नजरिये से भी काफी संवेदनशील समझे जाते हैं, इसलिए यहां उन जनसुविधाओं की ज्यादा जरूरत है। यह ठीक है कि इस हादसे में घायलों की मदद के लिए 200 एम्बुलेंस को लगाए जाने, जल-थल-नभ सेना की मदद से राहत व बचाव कार्य चलाकर हेलीकॉप्टर एम्बुलेंस द्वारा घायलों को अस्पताल तक पहुंचाने और राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) के 300 कर्मियों की मदद से राहत व बचाव कार्य किये जाने से राष्ट्र के सामर्थ्य का पता चलता है। यह प्रसंशनीय है। इसे और विकसित किये जाने की जरूरत है।
नवम सवाल है कि इस दुखद रेल दुर्घटना के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ओडिशा का दौरा किया और दुर्घटना के बाद चले राहत व बचाव कार्यों की समीक्षा के उपरांत राष्ट्र को आश्वस्त किया कि दोषियों को नहीं बख्शा जाएगा। इसी के साथ प्रधानमंत्री को अबतक हुई तमाम रेल दुर्घटनाओं की समीक्षा करवानी चाहिए और दोषियों को कितना दंड मिला, इसका आंकड़ा जारी करना चाहिए। अन्यथा ऐसी दुर्घटनाओं को थामा नहीं जा सकता है।
दशम सवाल है कि एक ओर जहां प्रधानमंत्री ने दुर्घटना स्थल और उन अस्पतालों का दौरा किया जहां घायलों का उपचार चल रहा है। वहीं दूसरी ओर उनकी भाजपा ने इस घटना के बाद शनिवार को अपने सभी कार्यक्रम रद्द कर दिए और पार्टी की उड़ीसा इकाई को घायलों की मदद के लिए दौड़ा दिया, जो बहुत बड़ी बात है। यदि ऐसे ही फैसले कांग्रेस समेत अन्य दलों ने भी किये होते, तो देशवासियों में ज्यादा आश्वस्ति भाव दिखता कि विपत्ति के समय सभी उनके साथ खड़े हैं।
ग्यारह सवाल है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गृहमंत्री अमित शाह व अन्य मंत्रियों के साथ समीक्षात्मक बैठक करके अन्य कार्रवाई में जो तेजी लाई, वह उचित है। उन्होंने रेलगाड़ियों में यात्रा कर रहे विभिन्न राज्यों के लोग, जो इस भीषण त्रासदी से प्रभावित हुए हैं, को राहत पहुंचाने की बात कही। साथ ही इस दुर्घटना में मृतकों के प्रति शोक व्यक्त करते हुए कहा कि घायलों को हर संभव चिकित्सा सहायता प्रदान की जाएगी। उनकी सरकार अपनों को खोने वाले शोक संतप्त परिजनों के साथ खड़ी है।
बारह सवाल है कि प्रधानमंत्री ने दुर्घटना की त्वरित जांच कराने और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के निर्देश दिए। उन्होंने तुरंत राहत और बचाव कार्य में मदद के लिए ओडिशा सरकार, स्थानीय प्रशासन और स्थानीय लोगों, विशेष रूप से युवाओं के प्रयासों की सराहना की, जिन्होंने रात भर बचाव कार्य में सहयोग किया। उन्होंने घायलों की सहायता के लिए बड़ी संख्या में रक्त दान के लिए पहुंचे स्थानीय नागरिकों की भी सराहना की। उन्होंने कहा कि राहत और बचाव कार्यों के साथ-साथ रेल विभाग, रेल मार्ग पर शीघ्र यातायात बहाल करने के लिए कार्य कर रहा है। स्थानीय अधिकारियों, आपदा राहत बल के कर्मियों और रेलवे अधिकारियों के साथ बातचीत करते हुए, प्रधानमंत्री ने भीषण त्रासदी से निपटने के लिए सरकार की पुरजोर सहायता का आश्वासन दिया।
अंतिम सवाल है कि ओडिशा के बालासोर की अपनी यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि "यह एक भयंकर हादसा हुआ है। इससे असहनीय वेदना मैं अनुभव कर रहा हूं और अनेक राज्यों के नागरिकों ने इस यात्रा में कुछ न कुछ गंवाया है। जिन लोगों ने अपना जीवन खोया है, उन्हें नमन है। ये बहुत बड़ा दर्दनाक और वेदना से भी परे मन को विचलित करने वाला घटना है।" यह उनकी जनसम्वेदनशीलता का परिचायक है। इससे शोक संतप्त परिजनों को राहत मिली है।
उन्होंने आगे कहा, "जिन परिवारजनों को injury हुई है उनके लिए भी सरकार उनके उत्तम स्वास्थ्य के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेगी। जो परिजन हमने खोए हैं वो तो वापिस नहीं ला पाएंगे, लेकिन सरकार उनके दुख में, परिजनों के दुख में उनके साथ है। सरकार के लिए ये घटना अत्यंत गंभीर है, हर प्रकार की जांच के निर्देश दिए गए हैं और जो भी दोषी पाया जाएगा, उसको सख्त से सख्त सजा हो, उसे बख्शा नहीं जाएगा।"
प्रधानमंत्री ने कहा, "मैं उड़ीसा सरकार का भी, यहां के प्रशासन के सभी अधिकारियों का जिन्होंने जिस तरह से इस परिस्थिति में अपने पास जो भी संसाधन थे, उसके मार्फ़त लोगों की मदद करने का प्रयास किया। यहां के नागरिकों का भी हृदय से अभिनंदन करता हूं क्योंकि उन्होंने इस संकट की घड़ी में चाहे ब्लड डोनेशन का काम हो, चाहे rescue operation में मदद की बात हो, जो भी उनसे बन पड़ता था, करने का प्रयास किया है। खास करके इस क्षेत्र के युवकों ने रातभर मेहनत की है।"
उन्होंने आगे कहा, "मैं इस क्षेत्र के नागरिकों का भी आदरपूर्वक नमन करता हूं कि उनके सहयोग के कारण ऑपरेशन को तेज गति से आगे बढ़ा पाए। रेलवे ने अपनी पूरी शक्ति, पूरी व्यवस्थाएं rescue operation में आगे रिलीव के लिए और जल्द से जल्द track restore हो, यातायात का काम तेज गति से फिर से आए, इन तीनों दृष्टि से सुविचारित रूप से प्रयास आगे बढ़ाया है। लेकिन इस दुख की घड़ी में मैं आज स्थान पर जा करके सारी चीजों को देख करके आया हूं। अस्पताल में भी जो घायल नागरिक थे, उनसे मैंने बात की है। मेरे पास शब्द नहीं हैं इस वेदना को प्रकट करने के लिए। लेकिन परमात्मा हम सबको शक्ति दे कि हम जल्द से जल्द इस दुख की घड़ी से निकलें। मुझे पूरा विश्वास है कि हम इन घटनाओं से भी बहुत कुछ सीखेंगे और अपनी व्यवस्थाओं को भी और जितना नागरिकों की रक्षा को प्राथमिकता देते हुए आगे बढ़ाएंगे। दुख की घड़ी है, हम सब प्रार्थना करें इन परिजनों के लिए।"
- कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार
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