बंगाल में भाजपा की सियासी चाल में फंसती चली गईं ममता बनर्जी
पश्चिम बंगाल में चुनावी हिंसा का सबसे बड़ा कारण सत्ताधारी TMC को भाजपा से मिल रही चुनौती है। बंगाल का इतिहास रहा है कि जब-जब सत्तारूढ़ पार्टी खुद को कमज़ोर पाती है और कोई अन्य पार्टी उसे चुनौती देने लगती है तो हिंसा की घटनाएं हुई है।
सात चरणों में चले लोकतंत्र का सबसे बड़ा त्योहार अब समाप्त हो गया है। इस दौरान जहां वोटरों का उत्साह देखने को मिला तो वहीं नेताओं का एक दूसरे पर तीखे आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला भी जारी रहा। लेकिन इस चुनाव में सबसे ज्यादा सुर्खियों में रहा तो वह पश्चिम बंगाल था। केंद्र की सत्ताधारी पार्टी और राज्य की सत्ताधारी पार्टी यानि कि भाजपा और टीएमसी के बीच का टकराव जोरों पर रहा। इस दौराम ममता और मोदी के बीच का आरोप-प्रत्यारोप भी देखने को मिला तो बंगाली अस्मिता, राष्ट्रवाद और हिन्दुत्व का मुद्दा भी हावी रहा। यहां तक तो सही था पर जिस तरीके से दो पार्टियों के कार्यकर्ताओं के बीच हिंसक झड़पों की खबरें आईं वह वाकई में लोकतंत्र को शर्मसार कर रही थीं।
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सियासी हिंसा का कारण
पश्चिम बंगाल में चुनावी हिंसा का सबसे बड़ा कारण सत्ताधारी TMC को भाजपा से मिल रही चुनौती है। बंगाल का इतिहास रहा है कि जब-जब सत्तारूढ़ पार्टी खुद को कमज़ोर पाती है और कोई अन्य पार्टी उसे चुनौती देने लगती है तो हिंसा की घटनाएं हुई है। सिद्धार्थ शंकर रे के समय से ही बंगाल चुनावी हिंसा का शिकार रहा है। भले ही पिछले चार दशकों से बंगाल में राजनीतिक स्थिरता रही हो और स्थिर सरकार भी रही हो पर यह बात भी सच है कि जब भी सत्ताधारी पार्टी की सियासी चुनौती बढ़ी है तो बंगाल में खून बहा है। 70 के दशक में जब कांग्रेस की जमीन खिसकने लगी थी और वाम दल मजबूत हो रहे थे तब बंगाल में सियासी हिंसा की शुरूआत भी हो रही थी। 90 के दशक में ममता बनर्जी के उदय के साथ ही सियासी हिंसा ने जोर पकड़ लिया जिसका उल्लेख आज भी दीदी बार-बार करती हैं। यह हिंसा ममता बनर्जी के 2011 में सत्ता में आने तक जारी रही जिसमे नंदीग्राम आंदोलन जैसा भीषण संघर्ष भी शामिल है। वर्तमान दौर में देखें तो अब यहां का सियासी मुकाबला TMC बनाम BJP हो गया है। भले ही वाम और कांग्रेस यहां कागजों पर मजबूत नजर आ रहीं हो पर ममता बनर्जी को जमीन पर असली चुनौती भाजपा से ही मिल रही है।
TMC को मिल रही भाजपा से तगड़ी चुनौती
बंगाल में भाजपा का बढ़ता प्रभाव TMC और ममता बनर्जी के लिए बड़ी चिंता है। ममता हर हाल में बंगाल में अपना वर्चस्व कायम रखना चाहती है तो भाजपा वहां अपना जमीन तलाशने में लगी हुई है। ममता को यह डर सताने लगा है कि आने वाले समय में भाजपा उनको सत्ता से बेदखल ना कर दे। साथ ही साथ वर्तमान में ममता जहां खुद को विपक्ष के प्रधानमंत्री के रुप में पेश कर रही है वहीं भाजपा बंगाल में ही उन्हें घेरने की जीतोड़ कोशिश कर रही है। अगर भाजपा बंगाल में 15 सीट के आस-पास ले आती है तो ममता का यह दांव कमजोर पड़ सकता है क्योंकि वह खुद को भाजपा और कांग्रेस के बिना बनने वाली गठबंधन में सबसे मजबूत पाती हैं। ममता भाजपा को रोकने के लिए प्रसाशन और कार्यकर्ताओं के उत्साह का भरपूर इस्तेमाल कर रही हैं। ममता जहां भाजपा पर बंगाल में धर्म की राजनीति करने का आरोप लगा रहीं है तो भाजपा ममता पर घुसपैठिओं को शरण देने को लेकर हमलावर है। इसके साथ साथ दोनों दलों के कार्यकर्ताओं के बीच लगातार हिंसक झड़प की भी खबरें आती रही है। भाजपा बंगाल पुलिस पर भी ममता के एजेंडे के तहत काम करने का आरोप लगा रही है।
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भाजपा के लिए बंगाल क्यों है जरूरी?
मोदी और शाह के नेतृत्व वाली भाजपा की सबसे अच्छी बात यह है कि ये दोनों पार्टी के विस्तार को लेकर ज्यादा सक्रिय रहते हैं। पार्टी अध्यक्ष बनने के बात अमित शाह अपनी यात्रा और मोदी के चेहरे का इस्तेमाल कर संगठन को मजबूत और प्रभावशाली बनाने में लगे हुए हैं। यह कार्य भाजपा जहां सत्ता में है वहां भी, जहां गठबंधन में है वहां भी और जहां जमीन तलाश रही है वहां भी कर रही है। इस काम में भाजपा को सबसे ज्यादा सहयोग RSS से मिल रहा है। शाह अपने भाषण में इस बात का जिक्र जरूर करते हैं कि जब तक पार्टी दक्षिण और पूरब में अपने दम पर खड़ी नहीं हो जाती तब तक भाजपा का स्वर्णिम समय नहीं आएगा। बंगाल भी भाजपा के लिए इसी कड़ी का हिस्सा है। हालांकि भाजपा इस लोकसभा चुनाव में बंगाल से बड़ी उम्मीदें भी कर रही है। भाजपा इस बात को लेकर आशंकित है कि 2014 के मुकाबले 2019 में पार्टी को उत्तर और मध्य भारत में नुकसान हो सकता है जिसकी भरपाई बंगाल और उड़ीसा से ही करनी है।
चुनावी राजनीति में धर्म का ‘तड़का’?
वर्तमान समय में देखें तो पश्चिम बंगाल की राजनीति की परिभाषा ही बदली हुई है और लगभग सभी राजनीतिक दल विभिन्न मज़हब के लोगों के अपनी तरफ लुभाने की कोशिश कर रहे हैं। इसी कारण से बंगाल में साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाओं में वृद्धि हुई है। भाजपा बंगाल में अपनी जड़ें जमाने के लिए हिन्दुत्व राग को मजबूती से अलाप रही है तो ममता मुसलमान और घुसपैठिओं को संरक्षण देने के साथ-साथ बंगाली अस्मिता की बात कर रही है। हालांकि पिछले कुछ दिनों में ममता ने भी भाजपा के हिन्दुत्व को काटने के लिए अपना हिंदुत्व कार्ड खेलना शुरू कर दिया है। भाजपा जहां श्री राम के नारे को बुलंद कर रही है तो ममता काली पूजा और दुर्गा पूजा का जिक्र कर हिन्दू वोटरों को लामबंद करने में जुटीं रहीं। भाजपा नागरिकता अधिनियम और एनआरसी का मुद्दा उठाकर अपने हिन्दुत्व कार्ड को बल दे रही है। इसके अलावा भाजपा सुभाष चंद्र बोस और विवेकानंद का जिक्र कर राष्ट्रवाद को भी बंगाल में बड़ा मुद्दा बना रही है।
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बंगाल में कितनी है मोदी लहर
मोदी और ममता में एक समानता है और वह समानता यह है कि दोनों जनता के साथ अच्छी तरह से सीधा-संवाद कर पाते है। ममता भले ही हिन्दी भाषियों को प्रभावित नहीं कर पाई हो पर बंगाल में स्टेज के एक छोर से दूसरे छोर तक चलकर भाषण देना लोगों को काफी पसंद आता है। पर बात अगर मोदी की करें तो बंगाल में उन्हें लेकर काफी क्रेज है। मोदी और शाह के अलावा भाजपा के बड़े नेताओं की रैलियों में आने वाली भीड़ इस बात की गवाह है। भारी हिंसा के बीच अगर लोग मोदी और शाह की सभाओं में गए हैं तो इससे बहुत बड़ा संकेत सामने निकल कर आ रहा है। इसके अलावा ममता जिस तरीके से मोदी पर प्रहार कर रही हैं, इससे साफ जाहिर हो रहा है कि वह भाजपा से काफी परेशान हैं। बंगाल का ग्रामीण क्षेत्र हो या फिर झारखंड और बिहार से सटी सीमा हो, भाजपा ने इन इलाकों में अपनी जमीन मजबूत की है। ममता राफेल, नोटबंदी, बेरोज़गारी और जीएसटी को लेकर मोदी पर हमला तो करती ही हैं पर उनका सबसे बड़ा आरोप यही रहता है कि नरेंद्र मोदी और भाजपा समाज को बांट रहा है। बंगाल में भाजपा के लिए सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि वहां पार्टी के पास कोई मजबूत चेहरा नहीं है। हाल में ही कुछ लोकप्रिय चेहरे पार्टी से जुड़े है पर वह पहले TMC या लेफ्ट से जुड़े रहे हैं।
पश्चिम बंगाल में भाजपा के लिए कितनी संभावना
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने बंगाल में 42 में से कम से कम 23 सीटें जीतने का लक्ष्य कार्यकर्ताओं के सामने रखा है। कार्यकर्ता भी उत्साह के साथ इस लक्ष्य को पूरा करने में जुटे हुए हैं। तमाम हिंसा और जुबानी कट्टरता के बीच बंगाल में सात चरणों के बीच चुनाव संपन्न हुए हैं। एग्जीट पोल के हिसाब से देखें तो भाजपा उम्मीद के अनुरूप वहां प्रदर्शन भी कर रही है पर 23 के आकड़े से पीछे रह रही है। सभी एग्जिट पोल में भाजपा को बंगाल में 15 से 20 सीट मिलते दिखा रहे हैं पर सहीं आंकड़ा 23 मई को ही पता चलेगा। बंगाल के राजनीतिक पंडितों की मानें तो यहां भाजपा को 10 सीटें मिल सकती है। अगर भाजपा को 10 सीटें भी मिलती है तो अमित शाह के नेतृत्व की यह बड़ी सफलता मानी जाएगी। भाजपा बंगाल में अपने संगठन को मजबूती देने के साथ-साथ आगे के चुनावों में लगी हुई है। इसके लिए पार्टी गांव और कस्बों में भी अपने संगठन को मजबूत कर रही है। अगर लोकसभा चुनाव में पार्टी अच्छा प्रदर्शन करती है तो इसका असर 2021 में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिल सकता है।
- अंकित सिंह
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