महाराष्ट्र से मिले ''उत्साह'' के जरिये यूपी में योगी को घेरने चला विपक्ष
ताज्जुब इस बात का है कि सत्ता में रहते हुए कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश की सियासत में जो काला अध्याय लिखा था, आज उन्हें वह याद नहीं है। महाराष्ट्र के घटनाक्रम को लेकर जिस प्रकार यूपी की राजनीति में हो-हल्ला मचाया जा रहा है उसका कोई औचित्य नहीं है।
भारतीय संविधान दिवस की 70वीं जयंती के मौके पर आहूत उत्तर प्रदेश विधानसभा का विशेष सत्र अपनी छाप छोड़ने की बजाए ठीक वैसे ही सियासत की भेंट चढ़ गया जैसे 02 अक्टूबर को महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर बुलाए गए सत्र का हुआ था। दोनों ही बार भाजपा और उसके गठबंधन सहयोगी को छोड़कर किसी भी दल ने विशेष सत्र में हिस्सा नहीं लिया। इस बार विशेष सत्र के बीच में समाजवादी पार्टी तथा कांग्रेस का सदन के बाहर विरोध प्रदर्शन चलता रहा। समाजवादी पार्टी के विधायक जहां संविधान की रक्षा की गुहार लगा रहे हैं, वहीं कांग्रेस के नेता महाराष्ट्र में लोकतंत्र की हत्या का प्ले कार्ड लेकर प्रदर्शन कर रह थे।
ताज्जुब इस बात का है कि सत्ता में रहते हुए कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश की सियासत में जो काला अध्याय लिखा था, आज उन्हें वह याद नहीं है। लोग भूले नहीं हैं कि किस तरह से केन्द्र की कांग्रेस सरकार के इशारे पर उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी ने 21 फरवरी 1998 को कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त करके उनकी जगह कांग्रेस नेता जगदम्बिका पाल को मुख्यमंत्री बना दिया था। कल्याण सिंह इसके विरोध में धरने पर बैठ गए थे तो सुप्रीम कोर्ट ने हस्तेक्षप करके फिर से कल्याण सिंह की सत्ता में वापसी की राह तैयार की थी।
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इसी प्रकार लखनऊ के स्टेट गेस्ट हाउस कांड को भी नहीं भूला जा सकता है। यह वह दौर था जब भाजपा राम मंदिर के सहारे सत्ता की सीढ़ियां चढ़ रही थी, इसी के चलते 06 दिसंबर 1992 को अयोध्या में कारसेवकों के हुजूम द्वारा विवादित ढांचा तोड़ दिया गया था। बाबरी विध्वंस के बाद 1993 में बसपा और सपा साथ आ गए। सपा और बसपा ने क्रमशः 256 और 164 सीटों पर मिलकर चुनाव लड़ा। सपा अपने खाते में से 109 सीटें जीतने में कामयाब रही जबकि 67 सीटों पर बसपा को जीत मिली, मुलायम सिंह मुख्यमंत्री बने और बसपा ने उन्हें बाहर से समर्थन दिया, लेकिन दो वर्ष के भीतर दोनों में खटास बेहद बढ़ गई। मायवती, सपा से दूरी बनाते हुए भाजपा के करीब होती जा रही थीं। भाजपा लगातार मायावती को मुख्यमंत्री पद का प्रलोभन दिखा रही थी, तभी 2 जून 1995 में बसपा ने अचानक मुलायम सरकार से समर्थन वापसी का ऐलान कर दिया। इससे बौखलाए कुछ सपा कार्यकर्ता लखनऊ के मीराबाई रोड स्थित स्टेट गेस्ट हाउस के कमरा नंबर एक में घुस गए जहां मायावती ठहरी थीं और अपने नेताओं के साथ बैठक कर रही थीं। उन पर हमला हुआ, बदसलूकी हुई। लखनऊ के स्टेट गेस्ट हाउस में मायावती के साथ जो कुछ हुआ उसे भुलाया नहीं जा सकता है, जिसमें मायावती को सपा के गुंडों से जान बचाने के लाले पड़ गए थे। इस दौरान बसपा नेता लगातार वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को फोन कर बुलाने की कोशिश कर रहे थे लेकनि किसी भी पुलिस अधिकारी ने फोन नहीं उठाया।
मायावती ने इस घटना के बाद कभी समाजवादी पार्टी की तरफ मुड़ कर नहीं देखा। एक बार लालू यादव ने कह दिया था कि मुलायम−मायावती को एकजुट होकर चुनाव लड़ना चाहिए। इस पर मायावती ने तंज कसते हुए कहा था कि अगर लालू के परिवार की किसी महिला सदस्य के साथ ऐसा होता तो क्या तब भी वह यही कहते। समाजवादी पार्टी में मुलायम युग की समाप्ति के बाद अखिलेश के कार्यभार संभालने के बाद ही सपा−बसपा के बीच नजदीकी हो पाई थी, दोनों ने लोकसभा का पिछला चुनाव मिलकर लड़ा भी था, लेकिन बाद में दोनों फिर से अलग हो गए। 02 जून 1995 को लखनऊ में स्टेट गेस्ट हाउस में जो कुछ घटा वह लोकतंत्र पर काला धब्बा था, आज भी इसे याद किया जाता है, लेकिन सपा को यह सब याद नहीं होगा।
समाजवादी पार्टी और कांग्रेस अगर संविधान दिवस की महत्ता को भूलकर हल्ला मचाती हैं तो इसे परिपक्व राजनीति का हिस्सा नहीं कहा जा सकता है। महाराष्ट्र में जो कुछ हो रहा है उसकी लड़ाई वहां से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में लड़ी जा रही है। केन्द्र सरकार के ऊपर भी हमले हो रहे हैं लेकिन महाराष्ट्र के बहाने यूपी में अव्यवस्था फैलाने की छूट किसी को नहीं दी जा सकती है। फिर उस कांग्रेस को तो बिल्कुल भी नहीं जिसने बिना तथ्यों के आधार पर प्रियंका वाड्रा के इशारे पर अलोकतांत्रिक तरीके से उत्तर प्रदेश के 10 दिग्गज नेताओं को सिर्फ इसलिए निलंबित कर दिया क्योंकि उन्होंने प्रियंका की हठधर्मिता के खिलाफ आवाज उठाई थी।
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एक तरफ जब संविधान दिवस पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लखनऊ में लौह पुरुष सरदार पटेल, संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अम्बेडकर तथा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर रहे थे। उनके साथ विधि मंत्री ब्रजेश पाठक तथा मंत्रिमंडल के अन्य सहयोगी भी थे। तब विशेष सत्र के दौरान समाजवादी पार्टी के विधायक चौधरी चरण सिंह की प्रतिमा के समक्ष धरना दे रहे थे। इनके साथ ही कांग्रेस के विधायक भी चौधरी चरण सिंह की प्रतिमा के समक्ष प्रदर्शन कर रहे थे। लगता है महाराष्ट्र के बाद यूपी में भी सपा के साथ वह कांग्रेस फिर से गलबहियां करने को उतावली हो रही है, जिसे लोकसभा चुनाव के समय समाजवादी पार्टी ने दूध की मक्खी की तरह निकाल कर बहार फेंक दिया था। बहरहाल, महाराष्ट्र की सियासत को लेकर यूपी में शह−मात का जो खेल खेला जा रहा है, उससे प्रदेश का कोई भला होने वाला नहीं है।
-अजय कुमार
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