सरकारी बैंकों की दशा और दिशा सुधारेगा बैंकिंग क्षेत्र का ''महा-विलय''
पिछले 5 वर्षों के दौरान, डिजिटल बैंकिंग के क्षेत्र में भी अभूतपूर्व परिवर्तन देखने में आ रहा है। आज देश में प्रत्येक दिन करोड़ों की संख्या में डिजिटल लेनदेन हो रहे हैं। डिजिटल बैंकिंग के माध्यम से आप अपने घर बैठे ही बैंकिंग व्यवहार कर सकते हैं।
किसी भी देश के आर्थिक विकास के लिए बैंकिंग क्षेत्र एक धुरी के रूप में काम करता है और इसलिए बैंकिंग उद्योग, अर्थ जगत की रीढ़ माना जाता है। देश के आर्थिक विकास को गति देने एवं देश की अर्थव्यवस्था को 5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर तक ले जाने हेतु भारतीय बैंकिंग क्षेत्र को मज़बूत बनाया जाना बहुत ही आवश्यक है। हाल ही के समय में, केंद्र सरकार ने भारतीय बैंकिंग उद्योग को मज़बूत बनाए जाने के उद्देश्य से कई सुधारों की घोषणा की है। जैसे, ग़ैर निष्पादनकारी आस्तियों की समस्या से निपटने के लिए दिवाला एवं दिवालियापन संहिता लागू की गई। देश में सही ब्याज दरों को लागू करने के उद्देश्य से मौद्रिक नीति समिति बनायी गई। साथ ही, पिछले पाँच/छह वर्षों के दौरान केंद्र सरकार द्वारा इंद्रधनुष योजना को लागू करते हुए, सरकारी क्षेत्र के बैंकों को लगभग तीन लाख करोड़ रुपए की सहायता उपलब्ध करायी।
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इस वित्तीय वर्ष में भी रुपए 70,000 करोड़ रुपए की पूँजी सरकारी क्षेत्र के बैंकों को उपलब्ध करायी गई है ताकि इन बैंकों की तरलता की स्थिति में सुधार हो, देश के कृषि एवं उद्योग के क्षेत्रों को ऋण उपलब्ध कराने में आसानी हो एवं बाज़ल-3 के नियमों का पालन करने में सक्षम हों। केंद्र सरकार द्वारा हाल ही के समय में लिए गए कई निर्णयों के चलते वित्तीय वर्ष 2018-19 में सरकारी क्षेत्र के बैंकों द्वारा ग़ैर निष्पादनकारी आस्तियों के खातों में 121,076 करोड़ रुपए की रिकॉर्ड वसूली की गई है। जिसके परिणामस्वरूप, सकल ग़ैर निष्पादनकारी आस्तियों का प्रतिशत मार्च 2018 के 8.96 प्रतिशत से घटकर मार्च 2019 में 7.90 प्रतिशत हो गया। साथ ही, प्रावधान कवरेज अनुपात भी सुधर कर मार्च 2018 के 62.7 प्रतिशत से बढ़ कर मार्च 2019 में 75.3 प्रतिशत हो गया, जो कि पिछले 7 वर्षों के दौरान का सबसे उच्च स्तर है। वित्तीय वर्ष 2018-19 के अंतिम तिमाही में 18 सरकारी क्षेत्र के बैंकों में से 12 बैंक हानि दर्शा रहे थे एवं केवल 6 बैंक ही लाभप्रद स्थिति में थे। जबकि वित्तीय वर्ष 2019-20 की प्रथम तिमाही में इन्हीं 18 बैंकों में से 14 बैंक लाभप्रद स्थिति में आ गए हैं एवं केवल 4 बैंकों ने ही हानि दर्शायी है।
पिछले 5 वर्षों के दौरान, डिजिटल बैंकिंग के क्षेत्र में भी अभूतपूर्व परिवर्तन देखने में आ रहा है। आज देश में प्रत्येक दिन करोड़ों की संख्या में डिजिटल लेनदेन हो रहे हैं। डिजिटल बैंकिंग के माध्यम से आप अपने घर बैठे ही बैंकिंग व्यवहार कर सकते हैं। इससे न केवल इन बैंकों की उत्पादकता में वृधि हुई है, बल्कि सामान्यजन को बैंकिंग सेवाएँ भी त्वरित गति एवं आसानी से उपलब्ध होने लगी हैं। आज नेट बैंकिंग के माध्यम से किए गए लेनदेन की जानकारी तुरंत मिल जाती है, एक स्थान से दूसरे स्थान को राशि का हस्तांतरण, पलक झपकते ही हो जाता है। देश कैश-लेस बैंकिंग सेवाओं की ओर तेज़ी से बढ़ रहा है। मोबाइल बैंकिंग के बाद तो यह कहा जाने लगा है कि बैंक आपकी ज़ेब में है। कई ग्रामीण भी आज मोबाइल बैंकिंग एवं नेट बैंकिंग का इस्तेमाल करने लगे हैं। देश के बैंकों में जन-धन योजना के अंतर्गत कुल 36 करोड़ से अधिक नए जमा खाते खोले गए हैं, इन खातों का एक बहुत बड़ा भाग ग्रामीण क्षेत्रों में ही खोला गया है। आज इन खातों में एक लाख करोड़ रुपए से अधिक की धनराशि जमा हो गई है। एक माह में, जन धन योजना के अंतर्गत, 18 करोड़ जमा खाते खोलने का विश्व रिकॉर्ड भी भारत के नाम पर ही दर्ज है।
देश के आर्थिक विकास की दर को जब 8 प्रतिशत से ऊपर ले जाना हो तो भारतीय बैंकिंग उद्योग को आज और अधिक शक्तिशाली एवं मज़बूत बनाये जाने की आवश्यकता है। आज देश की अर्थव्यवस्था का आकार 2.6 लाख करोड़ डॉलर का है एवं बैंकिंग क्षेत्र के ऋणों का आकार 1.9 लाख करोड़ का है। अतः बैंकों द्वारा प्रदत ऋणों के आकार में बढ़ोतरी के साथ ही देश की अर्थव्यवस्था को रुपए 5 लाख करोड़ डॉलर का बनाया जा सकता है। इसी कड़ी में, दिनांक 30 अगस्त 2019 को देश की वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमन ने बैंकिंग क्षेत्र को और अधिक मज़बूत बनाए जाने के उद्देश्य से कई उपायों की घोषणा की। इसमें मुख्य है सरकारी क्षेत्र के बैंकों का आपस में विलय। सरकारी क्षेत्र के बैंकों के समेकन के माध्यम से इनकी क्षमता अनवरोधित (अनलाक) करने के उद्देश्य से ही सरकारी क्षेत्र के बैंकों का आपस में विलय किया जा रहा है।
भारतीय स्टेट बैंक के सहायक बैंकों का विलय भारतीय स्टेट बैंक में किया जा चुका है, जो कि एक बहुत ही सफल प्रयोग रहा है। वर्ष 2019 में बैंक ऑफ बड़ौदा के साथ विजया बैंक एवं देना बैंक का विलय भी कर दिया गया है, इस विलय में भी किसी बड़ी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा था, यह भी एक सुचारू विलय सिद्ध हुआ है। अब, पंजाब नैशनल बैंक के साथ ऑरीएंटल बैंक आफ कॉमर्स एवं यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया का विलय प्रस्तावित है। साथ ही, कनारा बैंक के साथ सिंडिकेट बैंक का तथा यूनियन बैंक के साथ आंध्रा बैंक एवं कॉरपोरेशन बैंक का तथा इंडियन बैंक के साथ इलाहाबाद बैंक का विलय प्रस्तावित किया गया है। इन बैंकों के विलय में इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है कि इनके विलय से किसी भी ग्राहक को किसी भी प्रकार की कोई परेशानी ना हो, ये तकनीक के लिहाज़ से एक ही प्लैट्फ़ॉर्म पर हों, इन बैंकों की संस्कृति एक ही हो तथा इन बैंकों के व्यवसाय में वृद्धि दृष्टिगोचर हो। वर्ष 2017 में देश में सरकारी क्षेत्र के 27 बैंक थे अब प्रस्तावित विलय हो जाने के बाद देश में केवल 12 सरकारी क्षेत्र के बैंक रह जाएँगे। इनमें से 6 बैंक वैश्विक स्तर के बैंक होंगे, 2 बैंक राष्ट्रीय स्तर के होंगे एवं 4 बैंकों की मज़बूत उपस्थिति मुख्य रूप से क्षेत्रीय स्तर की होगी। इस प्रकार देश में सरकारी क्षेत्र के बैंकों को अगली पीढ़ी के बैंकों का रूप दिया जा रहा है। उपरोक्त उपायों के साथ ही सरकारी क्षेत्र के बैंकों में अभिशासन में सुधार लाने के उद्देश्य से भी कई उपायों की घोषणा माननीय वित्त मंत्री महोदय ने की है। इनके अंतर्गत बैंक के ग्राहकों को भी अधिकार दिया गया है कि वे अपने ऋण प्रस्तावों के मंज़ूर होने की जानकारी ऑनलाइन ट्रैक कर सकेंगे।
इस विलय के बाद इन सरकारी क्षेत्र के बैंकों का बढ़ा हुआ आकार, इन बैंकों की ऋण प्रदान करने की क्षमता में अभितपूर्व वृद्धि करेगा। इन बैंकों की राष्ट्रीय स्तर पर मज़बूत उपस्थिति के साथ ही इनकी अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी पहुँच होगी। विलय के बाद इन बैंकों की परिचालन लागत में कमी होगी जिससे इनके द्वारा प्रदान किए जा ऋणों की लागत में भी सुधार आएगा। इन बैंकों के जोखिम लेने की क्षमता में वृद्धि होगी। इन बैंकों का बैंकिंग व्यवसाय हेतु नई तकनीकी के अपनाने पर विशेष ज़ोर रहेगा जिससे इनकी उत्पादकता में उल्लेखनीय सुधार होगा। इन बैंकों की बाज़ार से संसाधनों को जुटाने की क्षमता भी बढ़ेगी।
-प्रह्लाद सबनानी
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