इस तरह धीरे-धीरे वापस पटरी पर आ सकती है देश की अर्थव्यवस्था

indian economy

सरकार ने बजटीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 3.8 प्रतिशत तक बढ़ाने का फ़ैसला किया है परंतु आज की स्थितियों को देखते हुए यह 2020-21 में इससे भी काफ़ी अधिक हो सकता है। क्योंकि, केंद्र एवं राज्य सरकारों को विभिन्न करों से आय बहुत कम होने की सम्भावना है।

देश में धीरे-धीरे चरणबद्ध तरीक़े से बाज़ारों को खोला जा रहा है। ग्रीन ज़ोन एवं ऑरेंज ज़ोन में व्यापार, उत्पादन एवं अन्य गतिविधियों के लिए काफ़ी छूट दी जा रही है एवं रेड ज़ोन में भी कुछ हद तक छूट प्रदान की गई है। बहुत सम्भव है कि देश के कुछ क्षेत्रों में अगले लगभग 15 दिनों के बाद लॉकडाउन को पूरे तरह से समाप्त कर दिया जाये। अब विचार करने का विषय यह है कि लॉक डाउन समाप्त होने के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं देश के अंदर व्यापारिक गतिविधियाँ किस तरह से बदल जाने की सम्भावना है। 

पूरे विश्व में यह धारणा प्रबल होती जा रही है कि बहुत बड़ी संख्या में बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अपनी उत्पादन इकाईयों को चीन से बाहर ला सकती हैं। यह भावना जापानी, अमेरिकी एवं यूरोपीयन कम्पनियों में प्रबल होती जा रही है। जापान ने तो बाक़ायदा इसके लिए एक फ़ंड की स्थापना ही कर दी है। इस हेतु भारत, वियतनाम, मेक्सिको, बांग्लादेश, इंडोनेशिया एवं थाईलैंड आदि देशों के बीच में कड़ी प्रतिस्पर्धा है। अतः चीन से विनिर्माण इकाईयाँ दूसरे देशों को स्थानांतरित होने वाली हैं, यह लगभग तय माना जा सकता है। इसका कितना लाभ किस देश को मिलेगा यह एक अलग प्रश्न हो सकता है। 

इसे भी पढ़ें: रोटी, कपड़ा, मकान और मोबाइल रिचार्ज दे दें सरकारें तो प्रवासी श्रमिक कहीं नहीं जाएँगे

दूसरा, हाल ही के समय में अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की क़ीमतों में भारी कमी देखने में आई है। जिसके चलते यातायात लागत में कमी देखने में आ सकती है। विभिन्न देशों के बीच विदेशी व्यापार की लागत कम होने की पूरी सम्भावना बनती है। 

तीसरा, भूमंडलीकरण की चमक आने वाले समय में फीकी हो सकती है। विश्व के सभी ताक़तवर देश अब संरक्षणवादी नीतियों को अपनाने की ओर आगे बढ़ते दिखाई दे रहे हैं। अमेरिका का नाम यहाँ विशेष रूप से लिया जा सकता है। जिसके चलते इन देशों से विकासशील देशों में विदेशी निवेश कम हो सकते हैं। क्योंकि अब ये देश भरपूर प्रयास करेंगे कि इन देशों की कम्पनियाँ यदि चीन से अपनी विनिर्माण इकाईयों को स्थानांतरित करती हैं तो इन्हें वे उनके अपने देश में स्थानांतरित करें। ताकि, इन इकाईयों द्वारा उत्पादन इनके अपने देशों में किया जा सके एवं इन्हीं देशों में रोज़गार के नए अवसर निर्मित हो सकें। 

प्रत्येक देश अब प्रयास करेगा कि उनके अपने देश में ही स्थानीय स्तर पर विनिर्माण इकाईयाँ स्थापित हों एवं इन देशों में सप्लाई चैन को मज़बूत किया जाये। बाहरी देशों से आयात के ऊपर निर्भरता कम से कम की जाये। इससे अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल की क़ीमतों में आई भारी कमी के बावजूद विदेशी व्यापार में भारी कमी देखने को मिल सकती है।

इसे भी पढ़ें: आर्थिक प्रगति आँकने के पैमाने में नागरिकों की प्रसन्नता को भी जोड़ना चाहिए

अमेरिका भी संरक्षणवादी नीतियों पर चलते हुए अमेरिका-प्रथम की पॉलिसी का पालन कर रहा है। अतः अमेरिकी विनिर्माण इकाईयाँ शायद अमेरिका में ही स्थानांतरित हों। इस सबके चलते विश्व व्यापार संगठन की वैश्विक स्तर पर भूमिका में भी भारी कमी आ सकती है। 

वायु यातायात के क्षेत्र में भी भारी गिरावट देखने को मिल सकती है। विशेष रूप से सूचना प्रौदयोगिकी कम्पनियों में कर्मचारियों के घर से कार्य करने की प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया जाएगा, जिसके कारण भौतिक यात्रा में बहुत कमी देखने को मिल सकती है। यात्राओं में कमी होने से कच्चे तेल की खपत भी बहुत कम होगी। 

भारत में विशेष रूप से विमान-सेवा, होटल, हैंडीक्राफ़्ट, ऑटोमोबाइल, यात्रा, टूरिज़्म, आदि क्षेत्रों पर विपरीत प्रभाव पड़ने की सम्भावना है। जबकि फ़ार्मा, खाद्य सामग्री, जैसे उद्योगों में तेज़ी से वृद्धि होने की सम्भावना है। शिक्षा के क्षेत्र में भी आमूल-चूल परिवर्तन देखने को मिलेंगे। देश से निर्यात के क्षेत्र पर भी विपरीत प्रभाव पड़ने की सम्भावना है। हैंडीक्राफ़्ट क्षेत्र पर तो 70 लाख लोगों का रोज़गार निर्भर है। इस क्षेत्र को सामान्य स्तर पर आने में कम से कम एक अथवा दो वर्षों का वक़्त लग सकता है। बेरोज़गारी की समस्या भी गम्भीर होने वाली है। 

भारत में परिस्थितियाँ, अन्य विकासशील देशों की तुलना में थोड़ी अलग हैं। भारत में एक बहुत बड़ा बाज़ार उपलब्ध है। स्थानीय स्तर पर निर्मित किए जाने वाले विभिन्न उत्पादों को आसानी से भारत में ही खपाया जा सकता है। भारत को आर्थिक विकास के सम्बंध में बहुत अधिक चिंता करने की शायद आवश्यकता नहीं है। भारत लॉकडाउन खुलने एवं उत्पादन शुरू होने के बाद तेज़ी से आर्थिक विकास की दर को हासिल कर सकता है। एक तो भारत में बहुत बड़ा बाज़ार उपलब्ध है, हमें हमारे देश में निर्मित वस्तुओं को खपाने के लिए निर्यात पर निर्भर रहने की कोई आवश्यकता नहीं है, परंतु फिर भी कई विकसित देशों का भारत में उत्पादित वस्तुओं की गुणवत्ता पर बहुत अधिक विश्वास है। जैसे- हैंडीक्राफ़्ट, डायमंड, जेम्स एवं ज्वेलरी आदि। एक बार अमेरिका एवं यूरोपीयन देशों की अर्थव्यवस्था स्थिर हो जाए इसके बाद भारतीय उत्पादों की माँग इन देशों में फिर से बढ़ना शुरू हो जाएगी। परंतु, अब समय आ गया है कि भारतीय नागरिकों को भी अपनी सोच को बदलना चाहिए एवं विदेशों में निर्मित वस्तुओं के उपयोग के मोह को त्याग कर केवल देश में निर्मित वस्तुओं के उपयोग को बढ़ाना चाहिए। हम सभी यह जानते हैं कि चीन में निर्मित वस्तुओं की गुणवत्ता अच्छी नहीं मानी जाती है परंतु फिर भी केवल सस्ती दरों पर उपलब्ध होने के कारण हम इन वस्तुओं की ओर आकर्षित हो जाते हैं। अब हमें यह मोह त्यागकर केवल और केवल भारत में ही उत्पादित वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए। इससे न केवल देशी उद्योग धंधों को बढ़ावा मिलेगा बल्कि देश के लिए अमूल्य विदेशी मुद्रा भी बचाई जा सकेगी। आज की इस घड़ी में यह त्याग हमें देश के लिए करना ही होगा। भारत सरकार को भी आज की परस्थितियों में इस ओर ध्यान देने की ज़रूरत है कि आवश्यक वस्तुओं के विदेशों से आयात पर प्रतिबंध लगाया जाये। जब इस प्रकार की वस्तुएँ भारत में ही निर्मित की जा सकती हैं तो इनका विदेशों से आयात क्यों किया जाना चाहिए। यहाँ व्यापारी वर्ग एवं उत्पादकों को भी यह ध्यान देना होगा कि आगे आने वाले समय में अपने उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार करते हुए उन्हें सस्ती दरों पर देश के नागरिकों को उपलब्ध कराएँ एवं विदेश में निर्मित वस्तुओं का व्यापार नहीं करें। ऐसा करने से यदि एक साल व्यापारियों एवं उत्पादकों को कम लाभ का अर्जन करना पड़े तो देश हित में इस त्याग को सभी वर्गों को करना चाहिए।  

इसे भी पढ़ें: कहा जाता था भारत में जान सस्ती है, मोदी ने दर्शाया भारतीयों की जान सबसे कीमती है

भारत में माइनिंग का क्षेत्र भी एक ऐसा क्षेत्र हैं जहाँ उत्पादन बढ़ाकर न केवल रोज़गार के नए अवसर निर्मित किए जा सकते हैं बल्कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को भी बहुत भारी मात्रा में आकर्षित किया जा सकता है। कई विकसित देशों के लिए विदेशी निवेश की दृष्टि से, भारत एक आकर्षक गंतव्य स्थान बना रहेगा। क्योंकि, भारत अपने आप में एक बहुत बड़ा बाज़ार है। विश्व में भारत एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था है। भारत एक युवा देश है अर्थात् यहाँ युवाओं की आबादी विश्व में सबसे अधिक है। देश की मौद्रिक नीति को बहुत आसान बना दिया गया है। वैसे भी विभिन्न देश कोरोना वायरस की महामारी के बाद बहुत अधिक मात्रा में सरकारी ख़र्चों में वृद्धि करेंगे तब यह राशि वित्तीय प्रणाली में तरलता बढ़ाएगी। ऐसी स्थिति में मुद्रा को निवेश के लिए आकर्षक स्थान की तलाश रहेगी, इसलिए भी भारत एक आकर्षक गंतव्य स्थान बना रह सकता है। 

साथ ही भारत सरकार, थाईलैंड, वियतनाम, इंडोनेशिया, बंगलादेश आदि देशों में उत्पादित वस्तुओं से भारत में निर्मित उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में प्रतिस्पर्धी बनाने के उद्देश्य से भारतीय कम्पनियों को कई प्रकार के प्रोत्साहनों की घोषणा कर सकती है। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने पहले सार्क (SAARC) के सदस्य देशों एवं बाद में G-20 के सदस्य देशों के साथ एक बैठक करते हुए कोरोना वायरस की महामारी से एक साथ लड़ने का संकल्प व्यक्त किया था। इसी प्रकार, वैश्विक अर्थव्यवस्था को गति देने के उद्देश्य से भी ये सभी देश आपस में मिलकर कार्य कर सकते हैं। ये देश, आपस में एक दूसरे के साथ विदेशी व्यापार को बढ़ावा दे सकते हैं। 

केंद्र सरकार ने इस सम्बंध में अलग-अलग उद्योगों के लिए विभिन्न कार्यदलों का गठन कर लिया है ताकि प्रत्येक उद्योग विशेष की समस्याओं का समाधान तुरंत किया जा सके एवं ये उद्योग तेज़ी से अपना उत्पादन बढ़ा सकें। भारत सरकार वैसे भी आजकल पूरी सक्रियता से कार्य कर रही है एवं विपरीत रूप से प्रभावित होने वाले विभिन्न उद्योगों के लिए आर्थिक पैकेज की घोषणा भी सही समय पर भारत सरकार द्वारा की जा सकती है। 

इसे भी पढ़ें: चीन समझ नहीं रहा है, उसने दुनियाभर से बहुत बड़ी दुश्मनी मोल ले ली है

भारत सरकार ने हालाँकि बजटीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 3.8 प्रतिशत तक बढ़ाने का फ़ैसला किया है परंतु आज की स्थितियों को देखते हुए यह वर्ष 2020-21 में इससे भी काफ़ी अधिक हो सकता है। क्योंकि, केंद्र एवं राज्य सरकारों को विभिन्न करों से आय बहुत कम होने की सम्भावना है वहीं दूसरी ओर कोरोना वायरस की महामारी के कारण ख़र्चों में अत्यधिक वृद्धि होने की सम्भावना है। आय एवं व्यय के अंतर को पाटने के दो ही रास्ते केंद्र सरकार के पास हैं। एक तो बाज़ार से और अधिक ऋण ले एवं दूसरे नई मुद्रा की छपाई की जाये। यदि देश के पूँजी बाज़ार से और अधिक ऋण लिया जाता है तो अन्य क्षेत्रों के लिए बाज़ार में पूँजी की उपलब्धता कम हो जाएगी और यदि ऋण को डॉलर में विदेशी संस्थानों से लिया जाता है और ऋण अवधि के दौरान यदि रुपए का अवमूल्यन हो जाता है तो यह ऋण देश को बहुत महँगा पड़ सकता है। इसी प्रकार, यदि देश में नई मुद्रा की छपाई की जाती है तो इससे मुद्रा स्फीति बढ़ने की सम्भावना होगी। अधिक मुद्रा स्फीति यानी ग़रीबों की क्रय शक्ति में भारी कमी। अर्थात् ग़रीब वर्ग और अधिक ग़रीब हो जाएगा। यदि बजटीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद से और भी अधिक रखने की आवश्यकता महसूस की जाती है तो इस सम्बंध में राजकोषीय ज़िम्मेदारी एवं बजट प्रबंधन क़ानून (FRBM Act) में भी संशोधन करने की आवश्यकता होगी। अतः केंद्र सरकार को इस बारे में बहुत ही सोच विचार कर कोई निर्णय लेने की ज़रूरत होगी।          

-प्रह्लाद सबनानी

सेवानिवृत्त उप-महाप्रबंधक

भारतीय स्टेट बैंक

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़