भारत चाहे तो कुछ समय के लिए श्रीलंका को गोद लेकर उसके हालात सुधार सकता है

Sri Lanka
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जनता के गुस्से का अंदाजा सत्ताधारियों को पहले ही हो चुका था। पिछले तीन महीने से श्रीलंका अपूर्व संकट में फंसा हुआ है। महंगाई और बेरोजगारी आसमान छू रही थीं। सिर्फ सवा दो करोड़ लोगों का यह देश अरबों-खरबों डालर के कर्ज में डूब रहा है।

श्रीलंका में वह हो रहा है, जो हमारे दक्षिण एशिया के किसी भी राष्ट्र में आज तक कभी नहीं हुआ। जनता के डर के मारे राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भागकर कहीं छिप जाना पड़े, ऐसा इस भारतीय उप-महाद्वीप के किसी देश में कभी हुआ है क्या? हमारे कई पड़ोसी देशों में फौजी तख्ता-पलट, अंदरूनी बगावत और संवैधानिक संकट के कारण सत्ता परिवर्तन हुए हैं लेकिन श्रीलंका में हजारों लोग राष्ट्रपति भवन में घुस गए और प्रधानमंत्री के निजी निवास को उन्होंने आग के हवाले कर दिया। राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्ष और प्रधानमंत्री रनिल विक्रमसिंघ को अपने इस्तीफों की घोषणा करनी पड़ी।

श्रीलंका की जनता तो जनता, फौज और पुलिस ने भी इन नेताओं का साथ छोड़ दिया। दोनों ने न तो प्रधानमंत्री के जलते हुए घर को बचाने के लिए गोलियां चलाईं और न ही राष्ट्रपति के जूते और चड्डियां हवा में उछालने वालों पर लाठियां बरसाईं। ये हजारों लोग राजधानी कोलंबो और उसके बाहर से भी आकर जुटे थे। जब श्रीलंका में पेट्रोल का अभाव है और निजी वाहन नहीं चल पा रहे हैं तो ये लोग आए कैसे? ये लोग दर्जनों मील पैदल चलकर राष्ट्रपति भवन पहुंचे हैं। उनके गुस्से का अंदाजा सत्ताधारियों को पहले ही हो चुका था। पिछले तीन महीने से श्रीलंका अपूर्व संकट में फंसा हुआ है। महंगाई और बेरोजगारी आसमान छू रही थीं। सिर्फ सवा दो करोड़ लोगों का यह देश अरबों-खरबों डालर के कर्ज में डूब रहा है।

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75 प्रतिशत लोगों को रोजमर्रा का खाना भी पूरा नसीब नहीं हो पा रहा है। जो भाग सकते थे, वे नावों में बैठकर भाग निकले। जो नेता याने महिंदा राजपक्षे श्रीलंका का महानायक बन चुका था, इसलिए कि उसे तमिल आतंकवाद को नष्ट करने का श्रेय था, उसे प्रधानमंत्री के पद से 9 मई को इस्तीफा देना पड़ा और अब उसके भाई गोटाबाया ने अपना इस्तीफा 13 जुलाई को देने की घोषणा की है। इस सरकार में राजपक्षे परिवार के पांच सदस्य उच्च पदों पर रहकर पारिवारिक तानाशाही चला रहे थे। ऐसी पारिवारिक तानाशाही किसी भी लोकतांत्रिक देश में सुनने में नहीं आई। उन्होंने बिना व्यापक विचार-विमर्श किए ही कई अत्यंत गंभीर आर्थिक और राजनीतिक फैसले कर डाले। विरोधियों की चेतावनियों पर भी कोई कान नहीं दिए। अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं की चेतावनियों को भी उन्होंने दरी के नीचे सरका दिया। उन्होंने प्रधानमंत्री बदला और कई मंत्री भी बदल दिए। लेकिन यह बदलाव भी किसी काम नहीं आया। अब सर्वदलीय सरकार यदि बन भी गई तो वह क्या कर लेगी? इस समय श्रीलंका को जबर्दस्त आर्थिक टेके की जरुरत है। भारत चाहे तो संकट की इस घड़ी में कुछ समय के लिए वह अपने इस पड़ोसी देश को गोद ले सकता है। यह देश भारत के किसी छोटे से प्रांत के बराबर ही है। श्रीलंका की बौद्ध और तमिल जनता भारत के इस अहसान को सदियों तक याद रखेगी। 

-डॉ. वेदप्रताप वैदिक

(डॉ. वैदिक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं)

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