दबाव में आया पाक कहीं जाधव का हश्र भी सरबजीत जैसा ना कर दे

in Kulbhushan Jadhav case, India should maintain pressure on Pakistan
आशीष वशिष्ठ । Dec 30 2017 12:49PM

गत दिवस उसने जिस तरह का हल्कापन या उससे भी बढ़कर कहें तो टुच्चापन दिखाया उसके बाद किसी सदाशयता की उम्मीद करना व्यर्थ है। दिनों दिन इस बात की आशंका गहरा रही है कि कहीं जाधव का हश्र सरबजीत जैसा न हो। भगवान जाधव की रक्षा करें।

कथित जासूसी के आरोप में पाकिस्तान की जेल में बंद भारतीय नौसेना के पूर्व कमांडर कुलभूषण जाधव की पत्नी और मां की बीते सोमवार को पाकिस्तान में मुलाकात के दौरान पाक के अमानवीय रवैये की जितनी भर्त्सना की जाए वो कम है। जाधव के परिवार की मुलाकात के बाद भारत के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी करते हुए कहा कि पाकिस्तान ने इस मुलाकात के दौरान भारतीय संस्कृति और धार्मिक भावनाओं का ख्याल नहीं किया। मुलाकात से पहले कुलभूषण जाधव की पत्नी और मां की चूड़ियां, बिंदी और मंगलसूत्र उतरवाए गए, उनके कपड़े बदलवाए गए और उनके जूते भी वापस नहीं हुए। हिंदू औरत के लिए बिंदी, चूड़ियां और मंगलसूत्र का बहुत महत्त्व है। कल्पना कीजिए कि जब जाधव की पत्नी और मां उस स्थिति में मिलने गई होंगी, तो उन पर क्या बीती होगी। इस हरकत के बाद समझना मुश्किल है कि आखिर पाकिस्तान और किस हद तक गिरेगा।

कुलभूषण जाधव से उनकी माँ और पत्नी की भेंट करवाकर पाकिस्तान ने अपनी जिस मानवतावादी छवि को वैश्विक स्तर पर प्रचारित करना चाहा वह और खराब हो गई। जाधव की उनकी मां और पत्नी से शीशे की दीवार खड़ी कर इंटरकॉम से बात करायी गयी। कांच की दीवार के पीछे बैठे कुलभूषण का फोन के जरिये माँ और पत्नी से बात करना एक तरह से इंटरनेट पर विदेश में बैठे किसी परिजन से होने वाली बातचीत जैसी ही है जिसमें एक दूसरे को देखा सुना तो जा सकता है किंतु छूना सम्भव नहीं हो पाता। जरा सोचिए उस माँ और पत्नी के दिल पर क्या गुजर रही होगी जो दुश्मन के कब्जे में फंसे अपने बेटे और पति से चंद इंचों के फासले पर होकर भी न उससे अंतरंग बातचीत कर सकीं और न ही उसे छूकर जान सकीं कि उसकी शारीरिक स्थिति कैसी थी? पाकिस्तान मानवता का दुश्मन कैसे है, यह दुनिया को इस मुलाकात के तरीके से अब अच्छी तरह से पता चल गया है। जो मानवता के दुश्मन हैं, उनसे मानवता की अपेक्षा करना ही भूल है।

पाकिस्तान ने अपने संस्थापक मो. अली जिन्ना की जयंती पर कुलभूषण के परिवारजनों को उससे मिलवाने की जो व्यवस्था की वह अपने आप में एक विवाद का विषय बन गई। ऐसी अवस्था में जब हमारी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज आए दिन किसी पाकिस्तानी को भारत में इलाज हेतु वीजा जारी करने की उदारता दिखाया करती हैं तब पड़ोसी मुल्क का ये व्यवहार न सिर्फ कचोटने वाला अपितु अपमानजनक भी है। इस बारे में भारत सरकार की मजबूरी ये है कि वह कुलभूषण की खैरियत की चिंता में उस स्तर पर जाकर कूटनीतिक दबाव नहीं बना पा रही जो अपेक्षित है। अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय से कुलभूषण की फांसी रुकवाकर भले ही भारत ने बड़ी कामयाबी हासिल कर ली हो लेकिन उससे उसकी प्राणरक्षा पूरी तरह सुनिश्चित नहीं मानी जा सकती। पाकिस्तान ने इस मामले को इतना पेचीदा बना दिया है कि कुलभूषण की रिहाई बहुत मुश्किल होगी क्योंकि ऐसा होने पर उसके झूठ का पुलिंदा पूरी दुनिया के सामने खुल जायेगा। भारत सरकार के हाथ इस प्रकरण में काफी बंधे हुए हैं। वह ज्यादा से ज्यादा इतना कर सकती है कि कुलभूषण की फांसी को लम्बे कारावास में बदलवा ले। बावजूद उसके कुलभूषण 10-20 साल जिंदा रहेगा ये गारंटी नहीं दी है सकती। किसी शत्रु राष्ट्र के व्यक्ति को जासूस बताकर पकड़ने के बाद कोई देश आसानी से नहीं छोड़ता, फिर पाकिस्तान का रिकार्ड ऐसे मामलों में बहुत ही दागदार रहा है। उसे देखते हुए गत दिवस कुलभूषण की माँ और पत्नी से मुलाकात में जो घटिया हरकत उसने की वह आपत्तिजनक जरूर थी किन्तु अनपेक्षित कदापि नहीं। 

वहीं अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय में भारत ने जिस तरह का दबाव बनाया उससे पाकिस्तान काफी भन्नाया हुआ है। उसके बाद यद्यपि उसे कुलभूषण की फांसी तो रोकनी पड़ी किन्तु ये मान लेना कि वह अपने रुख में नरमी लाएगा, गलत है। उसे अपनी छवि सुधारने की भी बहुत ज्यादा फिक्र नहीं रहती वरना वैश्विक दबाव और आलोचना के बाद भी वह हाफिज सईद सरीखे घोषित आतंकवादी को इस तरह छुट्टा न छोड़ता। गत दिवस जो कुछ भी हुआ उससे पूरे भारत में गुस्सा है लेकिन ऐसे मामलों में केवल भावनात्मक ज्वार काम नहीं करता क्योंकि जरा सी असावधानी में हमारे एक बेकसूर नागरिक की जान जा सकती है। पाकिस्तान भले ही विश्व बिरादरी का सदस्य हो लेकिन उसका आचरण किसी सभ्य देश के अनुरूप नहीं होने से वह किसी भी मामले में न तो विश्वसनीय है और न ही ईमानदार।

10 अप्रैल, 2017 को पाकिस्तानी सैन्य अदालत (एफजीसीएम) ने जिस तरह से कुलभूषण जाधव को मौत की सजा सुनाई, और हेग स्थित अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने 18 मई 2017 को स्टे दिया है, वह पाक क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम के दोहरे रवैये पर कई सवाल खड़े करता है। पाकिस्तान की हालत तब पस्त हो जाती है, जब अमेरिका का कोई जासूस उसके यहां पकड़ा जाता है। 2011 में अमेरिकी नागरिक मैथ्यू क्रैग बैरेट बेनजीर भुट्टो अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पकड़ा गया था। उसे कुछ दिन गेस्ट हाउस में रखने, ‘खातिर तवज्जो’ के बाद वापस अमेरिका भेज दिया गया। मैथ्यू क्रैग बैरेट इस घटना से पूर्व एक बार और पाकिस्तान में गिरफ्तार हुआ था। एक और अमेरिकी नागरिक रेमंड डेविस ने 27 जनवरी, 2011 को लाहौर में दो पाकिस्तानियों को पीछा करते समय उन्हें गोलियों से उड़ा दिया था। उसे ‘विएना कन्वेंशन’ के तहत डिप्लोमेटिक छूट का मामला बनाकर ससम्मान अमेरिका भेज दिया गया। रेमंड डेविस सीआईए का जासूस था। उसके विरुद्ध पाकिस्तान में कोर्ट मार्शल क्यों नहीं हुआ? इस प्रश्न को पूछा जाना चाहिए। जब पश्चिमी देशों के जासूस इनकी नजर में आते हैं, तब पाक सेना और खुफिया के लोग किस तरह चुप्पी साध लेते हैं, ऐसे कई मामले प्रकाश में आ चुके हैं।

यह ध्यान देने की बात है कि जितने भी भारतीय पाकिस्तान में पकड़े गये, उन पर मुकदमा असैनिक अदालत में ही चलाया गया। कुलभूषण जाधव का केस सैनिक अदालत में, वह भी गुपचुप चलाया जाना अपने-आप में अनोखा है। इसके हवाले से एक सवाल तो बनता है कि हमारी खुफिया एजेंसियों को इस बारे में खबर क्यों नहीं लगी? भारतीय को मृत्युदंड देने का काम पाकिस्तान पहले भी कर चुका है। पाकिस्तान ने सबसे पहले एक भारतीय नागरिक शेख शमीम को 1999 में फांसी पर लटका दिया था। 1988 में वाघा सीमा पार उसे पकड़ कर जासूसी का आरोप लगा दिया गया था। वर्ष 2008 में तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल मुशर्रफ ने दरियादिली दिखाते हुये 35 साल तक कैद में रहे कश्मीर सिंह को रिहा करने का आदेश दिया था। 1973 में पकड़े गये कश्मीर सिंह जब भारत लौटे तो उनका स्वागत हीरो की तरह हुआ। कश्मीर सिंह ने पीटीआई को दिये इंटरव्यू में स्वीकार भी किया था कि वे जासूस थे, और अपने देश के वास्ते ड्यूटी कर रहे थे। एक और भारतीय रवीन्द्र कौशिक, जासूसी के आरोप में मुलतान जेल में सोलह साल से बंद थे, जिनकी मौत 2001 में टीबी से हो गई।

सरबजीत सिंह का केस सबसे बहुचर्चित था। उसे कोट लखपत जेल में 26 अप्रैल, 2013 को उसके साथ रह रहे कैदियों ने इतना पीटा कि हफ्ते भर बाद उसकी मौत 2 मई, 2013 को हो गई। सरबजीत को मुलतान, फैसलाबाद, और लाहौर में विस्फोटों के मामले में फंसाया गया था, जिसमें 14 पाकिस्तानियों की मौत हो गई थी। जिस तरह जेल में सरबजीत को पीट-पीट कर मारा गया था। सरबजीत के मौत से चंद महीने पूर्व उसके पाकिस्तान वकील अवैस शेख, बहन व बेटी से मेरी मुलाकात उस पर लिखित पुस्तक के विमोचन के अवसर पर हुई थी। उसकी बहन ने बातचीत में बताया था कि पाकिस्तान पर चारों ओर से सरबजीत की रिहाई का दबाव बन रहा है, उसे इस बात की आशंका है कि कहीं पाकिस्तान सरकार उसकी जेल में हत्या न करवा दे। और ये आशंका आखिरकर सच साबित हुई। 

कुलभूषण की रिहाई तो दूर की कौड़ी है क्योंकि जब तक कोई असाधारण अंतराष्ट्रीय दबाव न आए या कुलभूषण के बदले भारत भी किसी पाकिस्तानी कैदी को रिहा न करे तब तक उसकी सुरक्षित वापसी की उम्मीद नहीं की जा सकेगी। जाधव मामले पर जिस तरह अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में भारत ने पाकिस्तान पर दबाव बनाया है, भारतीय संसद से लेकर अंतरराष्ट्रीय मीडिया तक जिस तरह से इस मामले का तवज्जो दे रहा है, इनसे सबसे चिढ़कर कही पाकिस्तान सरकार सरबजीत की भांति कुलभूषण की हत्या का कोई षड्यंत्र न रच दे। फिलहाल तो भारत सरकार के सारे प्रयास कुलभूषण को किसी तरह जीवित रखने पर केंद्रित होने चाहिए क्योंकि पाकिस्तान जरा सी मोहलत मिलते ही उसे सूली पर लटकाने में नहीं हिचकेगा। गत दिवस उसने जिस तरह का हल्कापन या उससे भी बढ़कर कहें तो टुच्चापन दिखाया उसके बाद किसी सदाशयता की उम्मीद करना व्यर्थ है। दिनों दिन इस बात की आशंका गहरा रही है कि कहीं जाधव का हश्र सरबजीत जैसा न हो। भगवान जाधव की रक्षा करें। 

- आशीष वशिष्ठ

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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