26 सालों के बाद अयोध्या नगरी में फिर हिन्दुत्व की जबरदस्त लहर है

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अजय कुमार । Nov 22 2018 5:41PM

6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस के 26 वर्षों बाद यह पहला मौका है जब अयोध्या में इतनी बड़ी तादाद में लोग इकट्ठा होंगे। इस जमावड़े के पीछे संगठन भी करीबन वही हैं जो 1992 में विवादित ढांचा गिराये जाने के समय अयोध्या में मौजूद थे।

मीठी−कड़वी यादें समेटे 06 दिसंबर एक बार फिर दस्तक देने वाला है, लेकिन इससे पहले 25 नंवबर की आहट गहरी होती जा रही है। इस दिन अयोध्या में होने वाली 'धर्मसभा' ने हिन्दुत्व का पारा बढ़ा दिया है। धर्म सभा में बड़ी संख्या में साधु−संत एवं राम भक्त हिंदू हिस्सा लेने के लिये अयोध्या पहुंचने लगे हैं। संतों की अपील पर बुलाई गई इस धर्मसभा में तमाम हिंदूवादी संगठन भी शामिल हो रहे हैं जिसमें विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल प्रमुख हैं। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे भी 25 नवंबर को अयोध्या जा रहे हैं। दावा है कि इस धर्मसभा में 2 लाख से ज्यादा लोग इकट्ठा हो सकते हैं। 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस के 26 वर्षों बाद यह पहला मौका है जब अयोध्या में इतनी बड़ी तादाद में लोग इकट्ठा होंगे। इस जमावड़े के पीछे संगठन भी करीबन वही हैं जो 1992 में विवादित ढांचा गिराये जाने के समय अयोध्या में मौजूद थे। सरकार भी बीजेपी की है बस फर्क इतना है कि अबकी बार कल्याण सिंह से भी बड़ा हिन्दुत्व का चेहरा मुख्यमंत्री के रूप में सत्तासीन है। सीएम योगी कह भी चुके हैं कि उन्हें इस जमावड़े से कोई परेशानी नहीं है।

बहरहाल, कहने को तो इसे धर्मसभा कहा जा रहा है, लेकिन जानकारों का कहना है कि इस सभा के जरिये हिंदूवादी संगठन राम मंदिर निर्माण पर मोदी सरकार पर दबाव तो बनाना ही चाहते हैं, साथ ही 92 जैसी किसी घटना से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। स्वयं भाजपा नेता इसका संकेत देते रहे हैं। 25 नवंबर को शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे भी अयोध्या जा रहे हैं। इसके सियासी मायने भी हैं। शिवसेना, अयोध्या में राम मंदिर निर्माण मुद्दे के जरिये अपनी खोई हुई जमीन वापस पाना चाहती है। 1992 में बाबरी विध्वंस के बाद शिवसेना की छवि कट्टर हिंदूवादी दल की बनी और पार्टी को इसका फायदा भी मिला, लेकिन धीरे−धीरे इसका असर कम होने लगा। महाराष्ट्र में इसका असर दिखा और राज्य की सियासत में पार्टी की पकड़ कमजोर हुई।

उधर, धर्मसभा को लेकर विरोध के स्वर भी सुनाई दे रहे हैं। अयोध्या मामले में पक्षकार निर्मोही अखाड़े ने इस पर आपत्ति जताई है। निर्मोही अखाड़ा चाहता है कि मंदिर जबरदस्ती नहीं बल्कि समझौते से बने। निर्मोही अखाड़े के महंत और राम मंदिर के पक्षकार दिनेंद्र दास ने कहा कि मालिकाना हक निर्मोही अखाड़े का है। विश्व हिंदू परिषद वालों को हमेशा निर्मोही अखाड़े का सहयोग करना चाहिए, लेकिन वे सहयोग नहीं करेंगे, यह तो हमेशा लूटने का प्रयास करेंगे और दंगा करने का प्रयास करेंगे। एक और पैरोकार धर्मदास भी कहते हैं कि धर्म के नाम पर जो धंधा करेगा, उसका नुकसान ही होता है। दूसरी तरफ, अयोध्या मामले में याचिकाकर्ता इकबाल अंसारी ने तमाम उठा−पटक के बीच जो बयान दिया है, उस पर भी एक वर्ग में विरोध शुरू हो गया है।

बात 06 दिसंबर की कि जाये तो इस दिन को 1992 के बाद से हिन्दूवादी संगठनों द्वारा शौर्य दिवस और मुस्लिम संगठनों की ओर से काला दिवस के रूप में मनाया जाता है। 06 दिसंबर 1992 को अयोध्या में राम भक्त कारसेवकों ने विवादित ढांचा जिसे मुसलमान बाबरी मस्जिद कहते हैं, को जमींदोज कर दिया था। उस समय प्रदेश में भाजपा की सरकार थी और कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे। केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी और पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री थे। कल्याण सिंह ने कोर्ट में शपथ−पत्र दिया था कि उनकी सरकार विवादित ढांचे को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचने देगी। कहा जाता है कि जिस समय अयोध्या में कारसेवकों का हुजूम विवादित ढांचे की तरफ बढ़ रहा था, उस समय कल्याण सिंह अपने दो मंत्रिमंडल सहयोगियों- लालजी टंडन और ओम प्रकाश सिंह के साथ 05, कालीदास मार्ग स्थित अपने आवास पर ही मौजूद थे।

तत्कालीन मुख्य सचिव योगेन्द्र नारायण ने उस समय एक पत्रिका को दिए इंटरव्यू में बताया था, 'मैं भी इन तीनों नेताओं के साथ मौजूद था। दोपहर का समय था, तीनों नेता समाचार देख रहे थे। उसी समय तत्कालीन पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) एस.एम. त्रिपाठी मुख्यमंत्री आवास पर भागते हुए आए। वह सीएम कल्याण सिंह से जल्द से जल्द मौजूदा हालात पर दिशा−निर्देश लेना चाहते थे। श्री त्रिपाठी का संदेश अंदर सीएम तक पहुंचाया गया। कल्याण सिंह ने डीजीपी को भोजन समाप्त होने तक इंतजार करने को कहा। भोजन खत्म होने के बाद हुई मुलाकात में डीजीपी ने कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश मांगा। इस पर सीएम ने उलटा सवाल किया इससे कारसेवक मर सकते हैं। डीजीपी ने उनकी बात पर हामी भर दी, तब कल्याण ने लाठीचार्ज और आंसू गैस जैसे कदम उठाने को कहा, लेकिन तब तक ढांचा पूरी तरह से गिर चुका था। जगह−जगह साम्प्रदायिक हिंसा फैल गई।

विवादित ढांचा गिरते ही केन्द्र की नरसिम्हा सरकार पर यूपी की कल्याण सरकार को बर्खास्त करने का दबाव पड़ने लगा। आखिर यह कांग्रेस के वोट बैंक का भी मसला था। मुसलमान तब तक कांग्रेस का मजबूत वोट बैंक माना जाता था। आज की तरह हिन्दुत्व कांग्रेस के किसी भी एजेंडे में नहीं हुआ करता था। बल्कि हिन्दुत्व की बात करना कांग्रेस में अपराध समझा जाता था। फिर भी उसके प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव पर आरोप लग रहा था कि अगर समय रहते राव ने उचित कदम उठा लिया होता तो ढांचा बच जाता। सबसे पहले बात करते हैं राव की उस दिन की दिनचर्या की जो काफी कुछ कहती है।

घटना वाले दिन यानी 6 दिसंबर 1992 को नरसिम्हा राव सुबह सात बजे सोकर उठे थे, जबकि आमतौर पर प्रधानमंत्री इससे पहले ही उठ जाया करते थे। राव दिल के मरीज थे। नित्य की भांति डॉक्टर रेड्डी उस दिन भी उनकी जांच करने राव के घर आए थे। कुछ देर बाद डॉ. रेड्डी वहां से चले गए। दोपहर 12 बजे रेड्डी ने जब अपने घर का टेलीविजन खोला तो उन्होंने देखा की कई कारसेवक बाबरी मस्जिद के गुंबदों पर चढ़े हुए हैं। कुछ ही देर बाद पहले गुंबद को नीचे गिरा दिया गया था। रेड्डी को पीएम राव की चिंता होने लगी। क्योंकि पीएम का हाल ही में दिल का ऑपरेशन हुआ था। रेड्डी दोबारा प्रधानमंत्री निवास पर गए। तब तक मस्जिद का एक ओर गुंबद भी गिरा दिया गया था। रेड्डी को देखकर राव गुस्से में आ गए। राव का ब्लड प्रेशर बढ़ा हुआ था। इसके बाद शाम 6 बजे राव ने अपने निवास स्थान पर मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई। इस बात का जिक्र पूर्व मंत्री और दस जनपथ के करीबी अर्जुन सिंह ने अपनी आत्मकथा 'ए ग्रेन ऑफ सैंड इन द आर ग्लास ऑफ टाइम' में लिखा है। पूरी बैठक में राव ने एक शब्द तक नहीं बोला। इस बैठक में कांग्रेस के दिग्गज नेता जाफर शरीफ ने कहा कि इस घटना की देश, सरकार और कांग्रेस पार्टी को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। इतना सुनते ही कांग्रेस के नेता माखनलाल फोतेदार ने रोना शुरू कर दिया इसके बाद भी राव चुप ही बैठे रहे।

  

माखनलाल फोतेदार ने अपनी आत्मकथा 'द चिनार कीव्स' में लिखा कि उन्होंने राव से फोन कर आग्रह किया था कि वो वायुसेना से कहें कि वो फैजाबाद में तैनात चेतक हैलिकॉप्टरों से अयोध्या में मौजूद कारसेवकों को हटाने के लिए आंसू गैस के गोले चलवाएं। फोतेदार ने आगे लिखा कि राव ने कहा मैं ऐसा कैसे कर सकता हूं। हालांकि फोतेदार ने कहा कि ऐसा स्थिति में केंद्र सरकार के पास पूरा हक होता है कि वो जो भी फैसला उसे सही लगता है वो ले सकती है। फोतेदार ने राव से आग्रह किया कि राव जी एक गुंबद तो बचा लिजिए, ताकि बाद में उसे शीशे के केबिन में रख सके, और जनता को बता सकें कि हमने मस्जिद को ढाहने से रोकने के लिए प्रयास किया था। इसक बाद राव ने फोतेदार से कहा कि मैं आपको बाद में फोन करता हूं। फोतेदार ने आगे लिखा कि प्रधानमंत्री के इस व्यवहार से में बहुत आहत हुआ। इसके बाद फोतेदार ने राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा को फोन कर उनसे मिलने की इच्छा जताई। उन्होंने चार बजे का समय दिया। जब फोतेदार उनसे मिलने के लिए पहुंचे तो राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा उन्हें देखकर रोने लगे और बोले कि पीवी ने ये क्या कर दिया।

प्रधानमंत्री ने इसके बाद एक और बैठक बुलाई। जब फोतेदार बैठक में पहुंचे तो सब चुप थे, फोतेदार ने कटाक्ष करते हुए कहा- क्या हुआ सबकी बोलती क्यों बंद है। इतने बोलते ही माधवराव सिंधिया ने कहा फोतेदारजी आपको पता नहीं है ? बाबरी मस्जिद गिरा दी गई है। तब फोतेदार ने प्रधानमंत्री से कहा कि राव जी क्या ये सही है। राव ने इस पर कोई जवाब नहीं दिया। तब कैबिनेट सचिव ने कहा कि हां ये सही है। फोतेदार ने सारे कैबिनेट मंत्रियों के सामने राव से कहा कि इसके लिए वो ही जिम्मेदार हैं। उतने पर भी प्रधानमंत्री चुप ही रहे। कांग्रेसी और राव सरकार के मंत्री आपस में उलझे हुए थे। कल्याण सरकार को तुरंत बर्खास्त किए जाने की मांग कांग्रेस के भीतर जोर पकड़े हुए थी, तो दूसरी तरफ बीजेपी में भी विवादित ढांचा गिरने के बाद की स्थितियों पर मंथन चल रहा था।

उधर, कल्याण सिंह जिन्हें विवादित ढांचा गिराये जाने के लिये सबसे बड़ा गुनहागार माना जा रहा था, ने मौके की नजाकत को भांपते हुए नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देने में देरी नहीं की। कल्याण सिंह राम भक्तों की नजर में हीरो बन चुके थे। कल्याण सिंह से जब पूछा जाता कि आपने तो कोर्ट में शपथ−पत्र दिया था कि विवादित ढांचे को कोई नुकसान नहीं होने दिया जायेगा, तो वह बोले कि बीजेपी के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी आदि पूरे घटनाक्रम से अचंभित थे। उन्हें लगने लगा था कि ढांचा गिरते ही हिन्दुत्व का मुद्दा उनके हाथ से निकल जायेगा। कल्याण सिंह का शपथ−पत्र झूठा साबित हो गया था। उन पर साजिश रचने और कोर्ट को गुमराह करने का आरोप लग रहा था। इस पर कल्याण कहते थे कि कोई साजिश नहीं थी। सुरक्षा के पूरे इंतजाम थे। अपनी बात को पुख्ता साबित करने के लिये  कल्याण सिंह तीन उदाहरण देते हैं- अमेरिका के राष्ट्रपति जॉन केनेडी की सुरक्षा के पूरे इंतजाम थे, लेकिन वह मार दिए गये। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की सुरक्षा के पूरे इंतजाम थे, लेकिन घटना घट गई। इसी प्रकार विवादित ढांचे की सुरक्षा के पूरे इंतजाम किए गये थे, लेकिन घटना घट गई।

भारतीय जनता पार्टी बैकफुट पर नजर आ रही थी, मगर तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के एक बयान ने पूरी बाजी पलट दी। मुसलमानों की नाराजगी को कम करने के लिये राव ने घोषणा कर दी कि बाबरी मस्जिद का पुनर्निर्माण किया जायेगा। इसके बाद तो बैकफुट पर नजर आ रही बीजेपी आक्रामक हो गई। उसने कांग्रेस और राव सरकार पर हमला बोलना शुरू कर दिया। तब से पिछले 25 वर्षों में अयोध्या को लेकर सियासत तो खूब हुई, लेकिन पहली बार ऐसा मौका नजर आ रहा है जब नेताओं के साथ−साथ आम जनता को भी लग रहा है कि अयोध्या के लिये हालात काफी बेहतर हैं। इसी के चलते अयोध्या मुददा गरमाया हुआ है।

-अजय कुमार

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