क्या वाकई रिश्वत को वैध बनाने का जरिया बन गये थे चुनावी बॉन्ड?

Supreme Court
ANI

हम आपको याद दिला दें कि चुनावी बॉन्ड योजना को मोदी सरकार ने दो जनवरी 2018 को अधिसूचित किया था। इसे राजनीतिक वित्तपोषण में पारदर्शिता लाने के प्रयासों के तहत राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले दान के विकल्प के रूप में पेश किया गया था।

उच्चतम न्यायालय ने मोदी सरकार को बड़ा झटका देते हुए चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया है और कहा है कि यह संविधान प्रदत्त सूचना के अधिकार और बोलने तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करती है। हम आपको बता दें कि प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने योजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर दो अलग-अलग लेकिन सर्वसम्मत फैसले सुनाए। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत बोलने तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है। पीठ ने कहा कि नागरिकों की निजता के मौलिक अधिकार में राजनीतिक गोपनीयता और संबद्धता का अधिकार भी शामिल है।

हम आपको याद दिला दें कि चुनावी बॉन्ड योजना को मोदी सरकार ने दो जनवरी 2018 को अधिसूचित किया था। इसे राजनीतिक वित्तपोषण में पारदर्शिता लाने के प्रयासों के तहत राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले दान के विकल्प के रूप में पेश किया गया था। योजना के प्रावधानों के अनुसार, चुनावी बॉन्ड भारत के किसी भी नागरिक या देश में निगमित या स्थापित इकाई द्वारा खरीदा जा सकता है। कोई भी व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से चुनावी बॉन्ड खरीद सकता है।

इसे भी पढ़ें: Supreme Court on Electoral Bond: आखिर क्‍या है चुनावी बांड? सुप्रीम कोर्ट के फैसले को 5 प्वाइंट में समझें

वैसे देखा जाये तो मार्च 2018 में जब इस बॉन्ड की पहली बार बिक्री हुई थी तबसे लेकर आज तक किसी घपले घोटाले की खबर नहीं आई क्योंकि पूरी व्यवस्था को पारदर्शी बताया जा रहा था। हालांकि कांग्रेस इस व्यवस्था का विरोध करती रही है और पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम ने तो चुनावी बॉन्ड को वैध रिश्वत तक करार दे दिया था। कांग्रेस समेत एक वर्ग का यह भी कहना था कि जब से चुनावी बॉन्ड से राजनीतिक दलों को चंदा देने का प्रचलन शुरू हुआ, तबसे राजनीतिक दलों को मिलने वाली राशि में सिर्फ भाजपा के खाते में ही इजाफा हुआ है। आलोचकों का कहना था कि चुनावी बॉन्ड से किसने किस दल को कितनी रकम दी है, इसका खुलासा करने का प्रावधान नहीं होना गलत है। सवाल उठा था कि जब चुनावी बॉन्ड व्यवस्था का उद्देश्य राजनीति में भ्रष्टाचार को समाप्त करना था तो राजनीतिक दलों को चंदों में पारदर्शिता से दूर रखने की व्यवस्था क्यों की गई थी? 

आलोचकों का यह भी कहना था कि चुनावी बॉण्ड से राजनीति को चंदे के जरिए प्रभावित करने की कॉरपोरेट जगत की ताकत और बढ़ी थी। आलोचकों का कहना था कि यह व्यवस्था आने के बाद से राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे में कॉरपोरेट जगत का हिस्सा बढ़ता गया। आलोचकों का कहना था कि पूर्व में कंपनियों के लिए राजनीतिक चंदा दे सकने की एक कानूनी सीमा तय थी, लेकिन अब उन्हें चुनावी बॉन्ड के रूप में असीमित चंदा दे सकने की छूट है और इसका ब्योरा छिपाए रखने की इजाजत भी, तो राजनीतिक दलों पर किसका अंकुश होगा- जनता और कार्यकर्ताओं का, या धनकुबेरों का?

दूसरी ओर, अदालत के फैसले के बाद कांग्रेस ने कहा है कि यह निर्णय नोट के मुकाबले वोट की ताकत को और मजबूत करेगा। पार्टी ने चुनावी बॉन्ड को असंवैधानिक ठहराने के उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत किया है। कांग्रेस ने दावा किया है कि चुनावी बॉन्ड ने भ्रष्टाचार को बढ़ाने का काम किया है और इसने राजनीतिक चंदे की पारदर्शिता को खत्म किया और सत्ताधारी पार्टी भाजपा को सीधे लाभ पहुंचाया।

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़