जातियों में बांटकर सनातन धर्म को कमजोर करने की साज़िश!
हालांकि लोगों का मानना है कि जिस तरह से पिछले कुछ वर्षों में भारत वैश्विक स्तर पर एक बेहद मजबूत ताकत बन कर के उभरा है, जिस तरह से उसने दुनिया के हर क्षेत्र में अपना लोहा मनवाने का कार्य बखूबी किया है।
देश में पिछले कुछ वर्षों से कुछ लोगों के द्वारा अपने क्षणिक स्वार्थों को पूरा करने के लिए विश्व के सबसे प्राचीन धर्म व महान धर्म 'सनातन धर्म' को जातियों में विभाजित करके उसको कमजोर करने का ज़हरीला एजेंडा निरंतर चलाया जा रहा है। यह चंद लोग दिन-रात इस बात के लिए व्यस्त हैं कि किस तरह से सनातन धर्म के अनुयायियों को जल्द से जल्द जातियों में बांटकर अपना स्वार्थ जल्द से जल्द पूर्ण किया जाए। इसलिए इन चतुर लोगों का गैंग हिन्दुस्तान की आत्मा हिन्दुओं को बिना सिर-पैर के मुद्दों पर आपस में लड़ाकर के जातियों के नाम पर बांटकर के हिन्दुओं की ताकत को कमजोर करने की साज़िश रचने में लगा हुआ है। ऐसा करके यह चंद लोग एक तरफ तो सनातन धर्म के अनुयायियों की एकता को बेहद चालाकी से चोट पहुंचाने का कार्य कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ यह लोग देश के विकास में बाधक बन करके भारत को विश्वगुरु बनने से रोकने का षड्यंत्र भी रच रहे हैं। यह चंद लोग बड़ी ही चतुराई के साथ 'फूट डालो राज करो' के अंग्रेजों की बनाई नीति पर सनातन धर्म के अनुयायियों के बीच जाकर के दिन-रात काम कर रहे हैं। धरातल के हालात देखकर लगता है कि सरकार भी इन चंद लोगों के जातिवाद के ज़हरीले एजेंडे को समझ करके उस पर अंकुश लगाने में अब तक तो पूरी तरह से विफल रही है, वह इन लोगों की अभी तक तो कोई ठोस काट ढूंढ नहीं पाई हैं।
देश में बहुत सारे लोगों का मानना है कि जिस भारतीय जनता पार्टी ने वर्ष 2014 व 2019 के चुनावों में मोदी मैजिक के दम पर देश में जातियों की बेड़ियों को तोड़कर के हिन्दुओं को एक करके दो बार केन्द्र में स्पष्ट बहुमत हासिल कर के सरकार बनायी थी, उस मोदी सरकार के निर्माण में हिन्दुओं को एकजुट करने वाले फार्मूले का बहुत बड़ा योगदान था। वहीं तीसरी बार वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों में जाने से पहले ही विपक्ष के बहुत सारे नेताओं के साथ-साथ खुद सत्ता पक्ष के कुछ नेताओं ने अपने क्षणिक स्वार्थों को पूरा करने के लिए हिन्दुओं की एकजुटता की बात ना करके उन्हें जातियों में बांटकर बात करनी शुरू कर दी थी, जिसके चलते इस बार के लोकसभा चुनावों में मतदान के समय हिन्दू मतदाता एकबार फिर से जातियों में पूरी तरह से बंट गया था, जिसके परिणामस्वरूप भाजपा केन्द्र में स्पष्ट बहुमत की सरकार बनाने से चूक गयी। लेकिन चुनाव बीत जाने के बाद अब भी देश में जातिवाद की राजनीति विपक्ष व सत्ता पक्ष के कुछ लोगों के द्वारा निरंतर जारी है, जोकि हिन्दुओं को जातियों में तोड़कर के देश व हिन्दुओं को कमजोर करने का कार्य कर रही है। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में जातिवाद की राजनीति के दम पर विपक्षी दलों को मिली भारी सफलता के चलते ही आज पूरे देश में एकबार फिर से हिन्दुओं को जातियों में बांटने के लिए जातियों के नाम पर तरह तरह से बरगलाने वाले लोगों व नेताओं की एक पूरी फौज धरातल पर जोशो-खरोश के साथ दिन-रात कार्य कर रही है, देश व सनातन धर्म के हित में इस स्थिति को जल्द से जल्द रोकना होगा।
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हालांकि लोगों का मानना है कि जिस तरह से पिछले कुछ वर्षों में भारत वैश्विक स्तर पर एक बेहद मजबूत ताकत बन कर के उभरा है, जिस तरह से उसने दुनिया के हर क्षेत्र में अपना लोहा मनवाने का कार्य बखूबी किया है। उस स्थिति के चलते भारत के नये दोस्त व नये दुश्मन भी बने हैं, जिसमें दुश्मन देश चाहते हैं कि भारत में कोई ऐसा विवाद खड़ा किया जाये, जो भारत के विकास की गति को रोकने का कार्य कर सकें और आज देश में जातिवाद का ज़हर एक ऐसा ही जहरीला ज्वलंत मुद्दा बन गया है, जिसने भारत के मौजूदा नेतृत्व को परेशान कर रखा है और दुनिया के साथ-साथ देश के हर वर्ग का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित कर रखा है। वैसे भी धरातल का हाल देखा जाए तो हमारे प्यारे देश में कुछ लोग सनातन धर्म के अनुयायियों को जातियों में बांटकर के सनातन धर्म के अनुयायियों में फूट डालने का कार्य दशकों से करते आ रहे हैं। इन लोगों का गैंग देश में लंबे समय से ही बहुत सारे नासमझ लोगों के सहयोग से जातिवाद के विभिन्न मुद्दों से जुड़ी बात का बहुत ही तेजी के साथ बतंगड़ बनाने का कार्य करता आया है। जिसके चलते ही समय-समय पर हमारे देश के बहुत सारे माननीय अपनी 'कांठ की हांडी' को बार-बार चढ़ाने में सफल होते रहते हैं। संविधान ख़तरे में है, आरक्षण समाप्त हो जायेगा, उत्तर प्रदेश में शिक्षक भर्ती विवाद, केन्द्र सरकार की लेटरल एंट्री भर्ती पर विवाद खड़ा करना आदि इसका हाल के दिनों के चंद उदाहरण हैं, जिन मुद्दों पर देश में संसद से लेकर सड़क तक खूब आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति जमकर हो रही है।
इक्कीसवीं सदी के हमारे प्यारे आधुनिक भारत में पक्ष-विपक्ष के चंद राजनेताओं ने अपने स्वार्थों की खातिर पहले तो देश के आम जनमानस के बीच धर्म के आधार पर एक बहुत गहरी खाई खोद कर के लोगों को बांटने का कार्य किया था। जब उससे काम नहीं चला तो फिर इन लोगों ने देश के आम जनमानस को क्षेत्रवाद, भाषावाद व जातिवाद आदि के नाम पर बांटने का कार्य भी बेहद बखूबी के साथ किया है। लेकिन फिर भी सनातन धर्म के अनुयायियों के एक बड़े वर्ग ने वर्ष 2014 व वर्ष 2019 में नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनता हुआ देखने के लिए एकजुट होकर के जाति का भेद मिटाकर के मोदी को एकजुट होकर वोट देने का कार्य किया था। इन चंद लोगों ने मोदी की उस मेहनत को खत्म करने का कार्य अब 2024 में कर दिया है, क्योंकि वर्ष 2014 व 2019 के हालात को देखकर के लगता था कि देश से जल्द ही जातिवाद की राजनीति की अब पूरी तरह से विदाई हो जायेगी, लेकिन वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले ही इन जातिवाद की राजनीति करने वाले क्षणिक स्वार्थी लोगों ने धरातल पर ऐसा जातिवाद का ताना-बाना बुनकर जहरीला माहौल बनाना शुरू कर दिया था, जिसने हिन्दुओं को पूरी तरह से जातियों में बांटकर के बिखेरने का कार्य कर दिया। जबकि उस वक्त अयोध्या में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के मंदिर निर्माण के नाम एकजुट हुए सनातन धर्म के सभी अनुयायियों की ताकत के दम पर लोकसभा के चुनावों में एकबार फिर से भाजपा को स्पष्ट प्रचंड बहुमत मिलता हुआ नज़र आ रहा था। क्योंकि देश में उस वक्त सनातन धर्म के अधिकांश अनुयायी जातियों के बंधन को भूलकर के सिर्फ हिन्दू बनकर के एकजुट होकर के भाजपा को प्रचंड बहुमत से जिताने के लिए बेहद आतुर थे। लेकिन फिर भी ना जाने क्यों और कैसे भाजपा के शीर्ष रणनीतिकारों ने चुनाव से पहले अपने पूर्व के चुनावों की भांति हिन्दुओं की एकजुटता व हितों की रक्षा की बात ना करके विपक्षियों की राह पर चलते हुए हिन्दू वोटरों को अलग-अलग जातियों में बांटने का राग निरंतर अलापना जारी रखा था, जिसका परिणाम यह हुआ कि वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों में हिन्दू वोटरों का एक बड़ा वर्ग जातियों में अलग-अलग होकर के पूरी तरह से जातियों में बंट गया था, जिसके चलते ही केन्द्र में भाजपा को उम्मीद के अनुरूप लोकसभा की सीटें प्राप्त नहीं हुई। देश में अचानक से बदले इस माहौल के फलस्वरूप भाजपा को केंद्र की सत्ता बचाने के लिए अब एक ऐसे गठबंधन के भरोसे रहना पड़ रहा है, जिसमें जातिवाद से ओत-प्रोत राजनेता भी शामिल हैं, जो मोदी सरकार में एक सहयोगी होने के बावजूद भी जातिगत मुद्दों पर आये दिन मोदी सरकार की टांग खिंचाई करने से बाज़ नहीं आते हैं।
हालांकि लोकसभा चुनावों के बाद हिन्दू धर्म के अधिकांश लोगों को लगता था कि जातिवाद की यह गहरी खाई चुनावों के बाद अब जल्द ही पूरी तरह से भर जायेगी। लेकिन अफसोस आज भी देश में जातिवाद का बहुत ही चिंताजनक अजीबोगरीब माहौल बना हुआ है। धरातल के हालात देखकर लगता है कि चंद नेताओं की कृपा से जातिवाद का ज़हर अब तो हिन्दुओं में बड़े पैमाने पर फैल गया है। जातिवाद के इस ज्वलंत मुद्दे पर अब तो हमारे बहुत सारे पक्ष-विपक्ष के सम्मानित माननीय राजनेतागण आग में घी डालकर के अपनी क्षणिक राजनीतिक रोटियां सेंकने का कार्य कर रहे हैं। जिस सनातन धर्म के अनुयायियों ने नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री चुनने के लिए देश में दो बार जातिवाद के बैरियर को तोड़कर के उन्हें चुनने का कार्य किया था, आज उस भाजपा की भी यह मजबूरी हो गयी है कि वह भी जातिवाद का राग अलापने वाले लोगों के सहयोग से केन्द्र की सरकार चलाने में व्यस्त हैं। वहीं हाल ही के दिनों में न्यायालय के दो अहम निर्णय आये हैं, जिसमें आरक्षण में वर्गीकरण व उत्तर प्रदेश में आरक्षण में अनियमितता के चलते शिक्षक भर्ती की मेरिट लिस्ट दोबारा तैयार करने की बात कही गयी है, लेकिन जातिवाद की राजनीति करने वाले हमारे देश के बहुत सारे राजनेताओं के लिए यह आदेश एक 'संजीवनी बूटी' की तरह बन गये हैं, वह इन आदेशों को आम जनता के बीच तोड़-मरोड़कर के प्रस्तुत करते हुए उनका उपयोग देश में हिन्दुओं को जातियों में बांटने के लिए 'आग में घी डालने' के रूप में करते हुए हिन्दुओं को जातियों में विभाजित करके कमजोर बनाने के लिए कर रहे हैं। खैर जो भी हो लेकिन अब वह समय आ गया है कि जब देशहित व सनातन धर्म के हित में हिन्दुओं को समझना होगा कि उन्हें किसी दुसरे धर्म से अधिक जातिवाद के इस घातक ज़हर से बहुत ज्यादा ख़तरा है, वहीं अब वह समय आ गया जब देश में हिन्दू धर्म के सभी पूजनीय धर्म गुरुओं को जातिवाद की गहरी होती जड़ों को खत्म करने के लिए धरातल पर ठोस पहल अपने मार्गदर्शन में करनी होगी। क्योंकि अब देश के किसी भी राजनीतिक दल के छोटे या बड़े राजनेता से जातिवाद के ज़हर को खत्म करने की उम्मीद करना पूरी तरह से बेमानी है और सनातन धर्म व उसके अनुयायियों की रक्षा व एकजुटता को बरकरार रखने की उम्मीद करना बेमानी है।
- दीपक कुमार त्यागी
स्वतंत्र पत्रकार, स्तंभकार व राजनीतिक विश्लेषक
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