2023 के विधानसभा चुनावों में सामूहिक नेतृत्व और मोदी फैक्टर पर जोर दे रही भाजपा
राजस्थान में भी भाजपा ने इस बात के संकेत दे दिए हैं कि वह सामूहिक नेतृत्व में ही चुनाव लड़ेगी। इससे वसुंधरा राजे की उम्मीदों पर एक पानी फिरता दिखाई दे रहा है। वसुंधरा राजे दो बार राजस्थान में भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री रह चुकी हैं।
2024 में लोकसभा चुनाव होने हैं। हालांकि, 2023 के आखिर में पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव हैं। इसे 2024 का सेमीफाइनल माना जा रहा है। इन पांच राज्यों में से भाजपा अपने दम पर एक मध्य प्रदेश में शासन में है। वहीं, मिजोरम में गठबंधन में है। इसके अलावा कांग्रेस राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सत्ता में है। जबकि तेलंगाना में भारत राष्ट्रीय समिति का शासन है। हालांकि, इन पांचो राज्यों में भाजपा कहीं ना कहीं पूरी ताकत लगाने की कोशिश में जुटी हुई है और अभी से ही अपनी रणनीति जमीन पर उतर रही है। इसका असर मध्य प्रदेश में जो अब तक उम्मीदवार घोषित किए गए हैं उसमें दिख भी रहा है। इसके अलावा भाजपा ने जो रणनीति अपनाई है, उसमें मुख्यमंत्री के चेहरे की बजाय सामूहिक नेतृत्व और मोदी फैक्टर पर जोर दिया गया है।
इसका बड़ा कारण यह भी है कि भाजपा इस बात को भली-भांति समझती हैं कि अगर उसकी ओर से मुख्यमंत्री उम्मीदवार का ऐलान किया गया तो चुनाव से पहले हिंदी भाषी राज्यों में पार्टी के भीतर गुटबाजी मजबूत हो सकती है। इससे उम्मीदवारों के समक्ष चुनौतियां आएंगी। मध्य प्रदेश की बात करें तो वहां भाजपा बड़े नाम को भी चुनावी मैदान में उतर रही है। इसका मतलब साफ है कि पार्टी ज्यादा से ज्यादा सीटों को सुरक्षित करना चाहती है। साथ ही जो कमजोर सीट हैं, वहां अभी से ही तैयारी शुरू की जा रही है। इसके अलावा अगर इन राज्यों में सीएम का चेहरा नहीं दिया जाता है तो क्षेत्रीय नेताओं को ज्यादा महत्व मिलेगा। भाजपा की ओर से भाई-भतीजावाद वाली राजनीति पर अंकुश लगाने पर भी कहीं ना कहीं खास ध्यान दिया जा रहा है।
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भाजपा सभी नेताओं को यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि आप अपने-अपने क्षेत्र में दम लगाइए और पार्टी की जीत सुनिश्चित करिए। आपको उसके अनुरूप सरकार बनने पर मौका दिया जाएगा। मध्य प्रदेश में केंद्रीय मंत्रियों को विधानसभा चुनाव में उतारना कहीं ना कहीं यह संदेश देने की कोशिश है कि पार्टी सामूहिक नेतृत्व में विश्वास करती है और उसी के आधार पर चुनावी मैदान में उतर रही है। आश्चर्य की बात यह भी है कि अब तक मध्य प्रदेश में भाजपा की ओर से चेहरा रहे शिवराज सिंह चौहान के टिकट का ऐलान नहीं हुआ है। इसको राजनीतिक पंडित अलग-अलग चश्मे से भी देख रहे हैं। साथ ही साथ अब तक संगठन की जिम्मेदारी संभाल रहे कैलाश विजयवर्गीय को भी इस बार चुनावी मैदान में उतरकर भाजपा ने शिवराज सिंह चौहान को भी संदेश देने की कोशिश की है।
राजस्थान में भी भाजपा ने इस बात के संकेत दे दिए हैं कि वह सामूहिक नेतृत्व में ही चुनाव लड़ेगी। इससे वसुंधरा राजे की उम्मीदों पर एक पानी फिरता दिखाई दे रहा है। वसुंधरा राजे दो बार राजस्थान में भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। लेकिन इस बार कहीं ना कहीं उनके नाम को लेकर पार्टी के भीतर ही असमंजस की स्थिति है। बड़ा सवाल यह भी है कि क्या अगर भाजपा की सरकार मध्य प्रदेश में बनती हैं तो वह किसी अन्य के नीचे काम करना पसंद करेंगी। इसको फिलहाल राजनीतिक पंडित बचते दिखाई दे रहे हैं। लेकिन राजस्थान की सारी चीजें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी प्रमुख जेपी नड्डा के ही इर्द-गिर्द घूम रही है। वहीं, छत्तीसगढ़ में पार्टी की ओर से नए नेतृत्व पर जोर दिया जा रहा है। रमन सिंह को लेकर अभी भी पार्टी में कोई दिलचस्पी दिखाई नहीं दे रही है।
- अंकित सिंह
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