हिन्दू होने का गर्व करो, विश्व में बढ़ रही है हिन्दुत्व की स्वीकार्यता
वैसे हिन्दुओं पर आक्षेप लगाना कांग्रेस की पुरानी आदत है। सदन में राहुल गांधी ने स्पष्ट कहा है कि जो लोग अपने आपको हिंदू कहते हैं वो 24 घंटे हिंसा-हिंसा-हिंसा, नफरत-नफरत-नफरत, असत्य-असत्य-असत्य की बात करते हैं।
जब कोई व्यक्ति अपने पूर्वजों के बारे में लज्जित होने लगे तब समझ लो कि उसका अंत आ गया। सबको अपने पूर्वजों पर गर्व होना ही चाहिए। हिन्दू तो उन महान ऋषियों के वंशज हैं जो संसाद में अद्धितीय रहे हैं। इसलिए उन्हें हिन्दू होने का गर्व है और होना भी चाहिए। सम्पूर्ण विश्व पर हिन्दू समाज का महान ऋण है। सम्पूर्ण विश्व में हिन्दू ही एक ऐसी जाति है जिसने कभी किसी पर आक्रमण नहीं किया। हम दुनिया में शांति व सौहार्द का संदेश लेकर गये। हमने किसी को अपना गुलाम नहीं बनाया। दुनिया की पीड़ित मानवता को हिन्दुओं ने ही गले लगाया। ऐसे सर्वे भवन्तु सुखिना: सर्वे सन्तु निरामय: और वसुधैव कुटुम्बकम की भावना रखने वाले हिन्दू समाज को हिंसक बताया जा रहा है। हिन्दू समाज भी इतना उदार व सहनशील है कि वह भी अपने ऊपर लगने वाले आरोपों को सहन करता जा रहा है। यह स्थिति वास्तव में हिन्दू समाज के लिए आत्मघाती है।
स्वामी विवेकानन्द जी कहते थे कि तभी और केवल तब ही तुम हिन्दू कहलाने के अधिकारी हो जब इस नाम को सुनते ही तुम्हारी रगों में शक्ति की विद्युत तरंग दौड़ जाये। हम अहिंसा के पुजारी जरूर हैं लेकिन हमारे शास्त्रों का यह भी आदेश है कि यदि कोई तुम्हारे गाल पर थप्पड़ मारे और तुम उसका जवाब दस थप्पड़ों से न दो तो तुम पाप करते हो। हिन्दुस्थान का प्राण हिन्दू धर्म है। यदि हिन्दू धर्म पर आघात होगा तो वह राष्ट्र पर आघात माना जायेगा। इसलिए हिन्दुओं को अपने शौर्य को प्रकट करने की जरूरत है।
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राहुल गांधी का नेता प्रतिपक्ष के तौर पर पहला भाषण झूठ, निराशा और तथ्यहीन बातों से भरा हुआ था। राहुल गांधी ने अपने भाषण में न केवल संसदीय गरिमा को तार—तार किया बल्कि हिंदुओं को हिंसक, नफरती और झूठा बताकर हिन्दू समाज को अपमानित करने का काम किया है। इसकी जितनी भी निंदा की जाय, कम है। इस कृत्य के लिए राहुल गांधी को अविलंब माफी मांगनी चाहिए।
वैसे इसके लिए राहुल गांधी को दोष देना ठीक नहीं है। क्योंकि उनको वही संस्कार ही मिला है। भारत की प्रकृति संस्कृति का उन्हें ज्ञान हीं नहीं है। राहुल गांधी के पास स्वयं की चिंतन प्रतिभा कुछ है नहीं। कम्युनिस्ट व मैकाले पुत्रों की बुद्धि के आधार पर वह बोलते व आचरण करते हैं। कांग्रेस की संस्कृति शुरू से विघटनकारी रही हैं। वह हमेशा समाज को बांटने में विश्वास करती है। कांग्रेस कई बार टूटी, कई दल बने लेकिन उनका मूल स्वभाव यथावत है। भारत विभाजन से लेकर आज तक कांग्रेस की कार्य संस्कृति में बदलाव नहीं आया है। महात्मा गांधी की चलती तो कांग्रेस समाप्त हो गयी होती। लेकिन गांधी के नाम का उपयोग करने वाले राहुल गांधी महात्मा गांधी का भी अपमान कर रहे हैं जिन्होंने कहा था हिन्दुत्व सत्य की अनवरत खोज का ही दूसरा नाम है। 24 जनवरी 1948 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि हमें अपनी उस विरासत और अपने उन पूर्वजों पर गर्व है जिन्होंने भारत को बौद्धिक एवं सांस्कृतिक श्रेष्ठता प्रदान की।
वैसे हिन्दुओं पर आक्षेप लगाना कांग्रेस की पुरानी आदत है। सदन में राहुल गांधी ने स्पष्ट कहा है कि जो लोग अपने आपको हिंदू कहते हैं वो 24 घंटे हिंसा-हिंसा-हिंसा, नफरत-नफरत-नफरत, असत्य-असत्य-असत्य की बात करते हैं। इससे राहुल गांधी की मंशा जाहिर होती है। जबकि सच्चाई सबको पता है कि 1984 में सिखों का नरसंहार किसने किया था। 1975 में आपातकाल किसने लगाया था। सच्चाई ये है कि संतों पर गोलियां किसने चलवाई थी? 2010 में तत्कालीन गृहमंत्री पी चिदंबरम ने हिंदुओं को आतंकवादी कहा था। 2013 में पूर्व गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने भी हिंदुओं को आतंकवादी बताया था। 2021 में राहुल गांधी ने हिन्दुत्ववादियों को देश से बाहर निकालने को कहा था और आज सम्पूर्ण हिंदुओं को असत्यवादी और हिंसक कहा। राहुल गांधी ने पहले भी कहा था कि मंदिर जाने वाले लड़कियों को छेड़ते हैं। संसद की बहस के दौरान ईश्वर के चित्रों को सामने रखना और राजनीति को इससे जोड़ना एक नेता प्रतिपक्ष को शोभा नहीं देता।
हिन्दू संस्कृति विजय की उपासक है, पराजय की नहीं। हमारे यहां किसी धर्म संस्थापक को फांसी देने का उदाहरण नहीं है। क्या हमारे प्रभु श्रीरामचन्द्र जी या योगेश्वर श्रीकृष्ण का पराभव किसी ने देखा या सुना है। जिनकी हम पूजा करते हैं वह कभी पराभूत नहीं हुए।
यह हिन्दू धर्म पर आक्षेप है। इसे सहन नहीं बल्कि अपने धर्म की रक्षा के लिए डट जाने का समय है। धर्म के प्रति हमारे हिन्दू भाईयों की श्रद्धा कहां चली गयी। संसद में खड़े होकर राहुल गांधी हिन्दू धर्म को हिंसक कहते रहे और हमारे सांसदों ने उन्हें बोलने दिया। वहीं दूसरे दिन जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भाषण करने खड़े हुए तो पूरे भाषण के दौरान विपक्षी सांसदों ने हंगामा किया। विपक्ष की यह संस्कृति किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए ठीक नहीं है। अगर अभी हम नहीं चेते तो हमारी आगे आने वाला समय और भयावह होने वाला है। हिन्दू शांतिप्रिय है। इसका मतलब यह नहीं है कि वह चुपचाप गाली सहन करता रहेगा। सहने की भी एक सीमा होती है। हिन्दुओं ने हिंसा फैलाने का काम कभी किया ही नहीं। हिन्दू समाज जिस दिन हिंसक हो जायेगा उस दिन भारत में राहुल गांधी जैसे दोगले नेताओं को पैर रखने की भी जगह नहीं मिलेगी। अनेक आपत्ति-विपत्तियों को सहकर भी हिन्दू जाति आज भी जीवित है। भगिनी निवेदिता ने कहा कि हिन्दू धर्म एक ऐसे समाज का धर्म है जो कभी बर्बर नहीं बना। ज्ञान एवं शिक्षा के साथ कभी विरोध नहीं रहा।
यदि नेता का आचरण और व्यवहार ठीक नहीं है तो उसे स्वीकार्यता नहीं मिल सकती। नेता की विशेषता होती है कि वह भिन्न मत रूचि व विचार और प्रवृत्ति के लोगों को उनकी भावनाओं के आधार पर एकत्र रख सके। वह व्यक्ति नेता कभी नहीं बन सकता जिसके मन में हिन्दुओं के प्रति ईर्ष्या है। अगर हिन्दू समाज हिंसक होता तो राहुल गांधी जैसे नेता हिन्दुओं को हिंसक बोलने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाते। यह हिन्दुओं को उत्तेजित करने और समाज को बांटने का प्रयास है। हिन्दू समाज उनके मंसूबों से वाकिफ है। हम सब एक हैं। सभी हिन्दू भाई—भाई हैं। वैसे राहुल गांधी के इस बयान से यह स्पष्ट हो गया है कि वह विपक्ष के नेता बनने की काबिलियत नहीं रखते। बात शांति से नहीं बनी तो कुरूक्षेत्र भी झेला है। शिव हैं हम लेकिन शंकर बन, रौद्र रूप भी धारा है।
जिन्हें भारत की एकता अखण्डता व समृद्धि नहीं सुहाती। वह हमारी राष्ट्रीय एकता और आपपसी सदभााव बिगाड़ने का प्रयत्न करते हैं। इस प्रकार का कृत्य स्वामी विवेकानन्द, महर्षि अरविन्द व लोकमान्य तिलक का अपमान किया है। धर्म आधारित राजनीति का ही भारत में सम्मान था। निष्ठाहीन राजनीति समाज का भला नहीं कर सकती। कांग्रेस के नेता भारत माता की जय और वंदे मातरम बोलने से भी परहेज करते हैं। भूमि को माता के समान देखने की दृष्टि हमें वेदों से मिली है। जिन्होंने कहा माता भूमि पुत्रोहम पृथिव्याः।
आज विश्व में हिन्दुत्व की स्वीकार्यता बढ़ रही है। लेकिन भारत की संसद में आक्रोश दिखता है। हिन्दू शब्द सुनते ही कुछ लोगों को बेचैनी होने लगती है। वह हिन्दू होने का अर्थ नहीं जानते। आज हिन्दू और हिन्दुत्व को लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है। विविधता में एकता हिन्दू की विशेषता है।
हिन्दू किसी से द्वैष, वैर अथवा घृणा नहीं करता। ईश्वर अंश जीव अविनाशी। गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं कि अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करूणा एव च। अर्थात जब सभी के अंदर ईश्वरानुभूति होती है तब सभी प्राणियों के प्रति द्वेषभाव समाप्त होकर मित्रता, करूणा तथा प्रेम विकसित होता है। परोपकारायः पुण्याय पापाय परपीड़नम्। गोस्वामी तुलसीदास ने भी कहा है कि परहित सरिस धर्म नहिं भाई। एकं सत विप्रा बहुधा वदन्ति। ऐसा जो मानते हैं वह हिन्दू हैं। इसलिए सर्वग्राही हिन्दू समाज पर लांछन लगाना पाप है।
- बृजनन्दन राजू
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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