कोविड-19 से लड़ाई में वैक्सीन विरोधी षड्यंत्र भी बड़ी बाधा बन कर उभर रहा है

vaccine
हरजिंदर । Sep 3 2020 11:37AM

विशेषज्ञों की धारणा है कि इस तरह के विरोध का बहुत ज्यादा असर नहीं होता, क्योंकि ऐसे लोग बहुत छोटी संख्या में होते हैं। भले ही ये लोग वैक्सीन को लेकर भय पैदा कर रहे होते हैं लेकिन बाकी समाज वैक्सीन में ही अपने स्वास्थ्य की सुरक्षा खोजता है।

एक साल पहले जब कोविड-19 की महामारी देने वाले कोरोना वायरस किसी को अता पता भी नहीं था, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक चेतावनी जारी की थी। उसका कहना था कि आने वाले समय में दुनिया को एक बड़ा खतरा उन संगठनों और उन आंदोलनों से है जो वैक्सीन के विरोध के नाम पर चल रहे हैं। खासतौर पर पश्चिमी देशों में सक्रिय ये संगठन विभिन्न कारणों और तर्कों से ये लोग ऐसा माहौल तैयार करते हैं जिनके चलते उनके प्रभाव में आए लोग वैक्सीन लेने से बचने की कोशिश करते हैं। वैक्सीन लेने से इस तरह के इनकार या उसके विरोध को सामुदायिक चिकित्सा की भाषा में वैक्सीन हेज़ीटेंसी कहा जाता है। पश्चिमी देशों में यह उस हाशिये के एक वैचारिक आंदोलन की तरह चलता रहा है जो हर चीज में एक षड्यंत्र देखता है। जबकि भारत में जैसे देशों में यह विभिन्न कारणों से समय-समय पर दिखाई दिया है।

इसे भी पढ़ें: लॉकडाउन में सिजेरियन डिलीवरी में भारी कमी, सामान्य प्रसव के मामले बढ़े

इस समय जब पूरी दुनिया कोरोना वायरस की वैक्सीन का इंतजार कर रही है और कई तरह की उम्मीद साफ नजर आने लगी है। ये संगठन सक्रिय हो गए हैं। सोशल मीडिया पर तो उनकी सक्रियता काफी तेजी से बढ़ी ही है साथ ही अमेरिका और जर्मनी में तो वे सड़कों पर भी उतरने लगे हैं। पिछले कुछ हफ्तों में उन्होंने कईं जगह प्रदर्शन भी किए हैं। वाशिंग्टन में तो उन्होंने अप्रैल महीने में उसी समय से प्रदर्शन शुरू कर दिए थे जब कोविड-19 की वैक्सीन तैयार करने का काम शुरूआती स्तर पर था। 'वैक्सीन आपकी जान ले सकती है’ जैसे पोस्टरों के साथ वे तभी से लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं। जैसे-जैसे वैक्सीन बाजार में आने का समय पास आता जा रहा है उनका इस तरह का विरोध बढ़ता जा रहा है। हमेशा की तरह वे इस बार भी अफवाहों का सहारा भी ले रहे हैं। अमेरिका में जिस स्तर का विरोध हो रहा है उससे कहीं बड़ा विरोध प्रदर्शन पिछले दिनों जर्मनी में हुआ। जर्मनी में वैक्सीन का विरोध करने वाले संगठन कुछ ज्यादा ही सक्रिय हैं। वहां तो कोविड-19 महामारी को बिल गेट्स जैसे उद्योगपतियों का षड्यंत्र कह कर ही प्रचारित किया जा रहा है।

हालांकि सामुदायिक चिकित्सा के विशेषज्ञों की धारणा है कि इस तरह के विरोध का बहुत ज्यादा असर नहीं होता, क्योंकि ऐसे लोग बहुत छोटी संख्या में होते हैं। भले ही ये लोग वैक्सीन को लेकर भय पैदा कर रहे होते हैं लेकिन बाकी समाज वैक्सीन में ही अपने स्वास्थ्य की सुरक्षा खोजता है। यह भी माना जाता है कि जब सामुदायिक स्तर पर बड़े पैमाने पर वैक्सीनेशन होता है तो समाज में एक हर्ड इम्युनिटी पैदा हो जाती है, जिसका फायदा उन लोगों को भी मिलता है वैक्सीन से परहेज करते हैं।

कम से कम अमेरिका की बड़ी चिंता इस तरह के लोग या इस तरह के संगठनों की सक्रियता नहीं है। लेकिन वहां ऐसे लोग काफी संख्या में हैं जो इस बार राजनीतिक कारणों से वैक्सीन लेने से इनकार करते दिख रहे हैं। प्रतिष्ठित अमेरिकी अखबार द वॉल स्ट्रीट जरनल की एक रिपोर्ट के अनुसार वहां अभी जो भी वैक्सीन तैयार होने की खबरे आ रही हैं उन्हें लेकर लोगों में कईं तरह की आशंकाएं हैं। पूरा माजरा यह है कि अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया दो नवंबर से शुरू होने जा रही है। कई खबरों में यह बताया गया है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चाहते हैं कि कोरोना वायरस संक्रमण की वैक्सीन किसी भी तरह से इस तारीख से पहले बाजार में आ जाए और वे इसे अपनी उपलब्धि बताते हुए चुनाव में उतरें। इसके लिए दवा कंपनियों को न सिर्फ बड़े पैमाने पर आर्थिक मदद भी दी गई है बल्कि सरकार ने खरीद के अग्रिम आर्डर भी बुक कर दिए हैं। इससे लोगों में यह डर फैल गया है कि जल्दबाजी में जो वैक्सीन बाजार में आएगी वह स्वास्थ्य के लिए खतरनाक भी हो सकती है। बहुत से लोगों ने अखबार से कहा कि अगर वैक्सीन नंवबर से पहले जारी हो जाती है तो वे उससे परहेज करेंगे। दूसरी तरफ ट्रंप समर्थक वैक्सीन के प्रचार-प्रसार के लिए पूरी तरह कमर कस रहे हैं। पहली बार ऐसा हुआ है कि किसी वैक्सीन को लेकर अमेरिकी समाज दो हिस्सों में बंटता दिखाई दे रहा है।

दुनिया के तमाम दूसरे देशों की तरह ही भारत ने भी वैक्सीन बाजार में आने के बाद की रणनीति बनानी शुरू कर दी है। बहुत बड़ी आबादी के कारण भारत में वैक्सीनेशन की चुनौती दुनिया के किसी भी दूसरे देश के मुकाबले बहुत बड़ी है। ऐसे में वैक्सीन विरोध को लेकर भी सचेत होने की जरूरत है। इस तरह का अतार्किक विरोध किस तरह की परेशानियों को खड़ा करता है इसे हम पल्स पोलियो अभियान में देख ही चुके हैं। इस अभियान के दौरान एक खास समुदाय में ऐसी अफवाहें फैलाई गईं थीं कि पोलियो ड्राप के नाम पर सरकार अगली पीढ़ी को बांझ बनाने का षड्यंत्र रच रही है। इसके कारण पोलियो उन्मूलन अभियान का खासा धक्का लगा था।

इसे भी पढ़ें: कोरोना से बचाव के निर्देश ना मानने वालों पर कड़ा जुर्माना होना ही चाहिए

दिलचस्प बात यह है कि जिस समय भारत में इस तरह की अफवाहें परेशान कर रही थीं पड़ोसी देश पाकिस्तान में पोलियो उन्मूलन अभियान सुचारू रूप से चल रहा था। लेकिन कुछ समय बाद वहां भी एक अलग तरह की समस्या खड़ी हो गई। वहां अमेरिका को जब यह सुराग मिला कि आतंकी संगठन अल कायदा का सरगना ओसामा बिन लादेन एबटाबाद में रह रहा है तो पुख्ता तथ्य जुटाने के लिए उस इलाके में एक फर्जी पोलियो ड्रॉप देने का अभियान चलाया गया। लादेन के मारे जाने के बाद जब यह तथ्य सामने आया तो पाकिस्तान के कई हिस्सों में पोलियो अभियान और पोलियो ड्रॉप पिलाने वालों के खिलाफ गुस्सा भड़क उठा। ऐसे कई लोगों को आतंकियों ने अपना निशाना बनाया और कई वैक्सीन विशेषज्ञों को तो विदेश में शरण लेनी पड़ी। यह भी कहा जाता है कि अमेरिका ने सिर्फ लादेन को ही नहीं मारा वैक्सीनेशन अभियान की बलि भी ले ली। आने वाले समय में दुनिया के देशों को सिर्फ वैक्सीन देने के बड़े अभियान ही नहीं चलाने बल्कि इस तरह के खतरों से निपटने की तैयारी भी रखनी होगी।

-हरजिंदर

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़