मोदी के जीवन संघर्ष, सफलता और कर्तव्य बोध से बहुत कुछ सीखा जा सकता है
कोरोना जैसी महामारी जिसने यूरोप के विकसित देशों से लेकर अमेरिका तक को हिला दिया वहाँ भारत के गांव-गांव तक कोरोना से बचने के लिए मास्क का उपयोग और हाथ धोने को लेकर आमजन की जागरूकता देखते ही बनती है।
आज भारत विश्व में अपनी नई पहचान के साथ आगे बढ़ रहा है। वो भारत जो कल तक गाँधी का भारत था जिसकी पहचान उसकी सहनशीलता थी, आज मोदी का भारत है जो खुद पहल करता नहीं, किसी को छेड़ता नहीं लेकिन अगर कोई उसे छेड़े तो छोड़ता भी नहीं। गाँधी के भारत से शायद ही किसी ने सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक जैसे प्रतिउत्तर की अपेक्षा की होगी। उसके बाद अब डोकलाम विवाद और फिर गलवान घाटी में चीन को अपने जवाब से भारत ने विश्व में अपनी इस बदली हुई पहचान की मुहर लगा दी है। उससे बड़ी बात यह है भारत की इस नई पहचान को विश्व बिरादरी सहजता के साथ स्वीकार भी कर चुकी है। जोकि वैश्विक राजनीति में भारत की कूटनीतिक एवं रणनीतिक विजय की परिचायक है। भारत की यह नई पहचान इसलिए भी विशेष हो जाती है क्योंकि उसे यह पहचान दी है एक ऐसे नेता ने जिसके जीवन की शुरुआत बेहद साधारण रही। जिसका जन्म किसी राजनैतिक परिवार में नहीं हुआ। जिसका केवल बचपन ही नहीं पूरा राजनैतिक जीवन ही संघर्षपूर्ण रहा।
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एक चाय वाले से एक प्रचारक, एक प्रचारक से एक मुख्यमंत्री और एक मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री बनने तक का उनका यह सफर बहुतों के लिए प्रेरणादायक है खास तौर पर युवाओं के लिए। शायद वो भी अपनी इस ताकत को जानते हैं इसलिए भले ही अपनी वर्तमान योजनाओं के केंद्र में वो गरीबों और वंचितों को रखें लेकिन उनकी भविष्य की योजनाओं का केंद्र तो देश के युवा ही होते हैं। युवाओं और बच्चों से साल भर वो भिन्न-भिन्न माध्यमों से जुड़े रहते हैं। चाहे परीक्षा पे चर्चा हो या चंद्रयान छोड़े जाने के कार्यक्रम में बच्चों की भागीदारी। इन बच्चों में वो देश का भविष्य देखते हैं तो इन बच्चों को उनमें अपना एक अभिभावक नज़र आता है। यही कारण है कि देश की नई शिक्षा नीति के जरिए मोदी इन बच्चों में छुपे वैज्ञानिक और इंजीनियर ही नहीं बल्कि इनमें छुपे चित्रकार और गीतकार को भी जगाना चाहते हैं। ताकि वे जितनी गहराई से विषय को समझें उतनी ही शिद्दत से मानवीय संवेदनाओं को भी महसूस करें। क्योंकि वो जानते हैं कि भारत को आज जिन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है उन सब का मूल भ्रष्टाचार है और भ्रष्टाचार का मूल दूसरों के अधिकारों तथा अपने दायित्वों के प्रति संवेदनहीनता है। शायद इसलिए एक तरफ वो युवा आईएएस अधिकारियों एवं पुलिस कर्मियों से व्यक्तिगत संवाद करके उन्हें आमजन के प्रति अपने कर्तव्यों का एहसास कराते हैं तो दूसरी तरफ "मन की बात" से आम जनता से रूबरू होकर उन्हें देश और देशवासियों के प्रति उनके दायित्वों का बोध कराते हैं। विशेष बात यह है कि उनकी इन साधारण-सी लगने वाली महत्वपूर्ण बातों को देशभर के लोगों का भारी समर्थन देखने को भी मिलता है। चाहे नोटबन्दी हो या स्वच्छता अभियान। राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें मिलने वाले समर्थन के आगे विपक्ष का राजनैतिक विरोध ध्वस्त हो जाता है। कोरोना काल में जनता कर्फ्यू से लेकर उनकी एक अपील पर देश भर में घंटियों की गूंज ने विश्व के शक्तिशाली से शक्तिशाली नेताओं की नींद उड़ा दी। यही कारण है कि चाहे विश्व के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका के राष्ट्रपति हों वह चुनावों से पहले अमेरिका में बसे भारतीयों को आकर्षित करने के लिए "हाऊडी मोदी" कार्यक्रम करवाते हैं तो इजराइल जैसे देश के प्रधानमंत्री चुनावों से पहले मोदी के साथ अपनी मित्रता के बैनर लगवाते हैं।
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कोरोना जैसी महामारी जिसने यूरोप के विकसित देशों से लेकर अमेरिका तक को हिला दिया वहाँ भारत के गांव-गांव तक कोरोना से बचने के लिए मास्क का उपयोग और हाथ धोने को लेकर आमजन की जागरूकता देखते ही बनती है। कोरोना से भारत जैसा गरीब देश इस प्रकार से लड़ लेगा इसकी विश्व में किसी ने अपेक्षा नहीं की थी। ऐसा लगता है कि इतनी सहजता और सरलता से असंभव को संभव बनाने में मोदी को जैसे महारथ हासिल है। तभी तो संविधान से धारा 370 का हटना हो या राम मंदिर का ऐतिहासिक फैसला, सरकार के इन कदमों से नरेंद्र मोदी ने देशवासियों के दिलों में वो जगह बना ली जो कल्पना से परे है। वडनगर के एक साधारण से स्कूल से शिक्षा अर्जित करने वाला विद्यार्थी विदेशों के बड़े-बड़े विश्वविद्यालयों से बड़ी-बड़ी डिग्री धारी नेताओं के लिए इतनी लंबी लकीर खींच देगा, यह किसने सोचा था। राजनैतिक परिवार में पैदा होने वाले एवं राजनैतिक वातावरण में पल कर बड़े होने वाले ऐसे नेता जो राजनीति में टिके रहने के लिए इसे ही अपनी सबसे बड़ी शक्ति मानते थे उनके लिए नरेंद्र मोदी जैसे व्यक्तित्व का प्रधानमंत्री बनना एक सबक है।
खुद मोदी के शब्दों में, मैं मुख्यमंत्री बनने से पहले मुख्यमंत्री के दफ्तर नहीं गया। मैं सांसद बनने से पहले संसद भवन नहीं गया। और प्रधानमंत्री बनने से पहले प्रधानमंत्री कार्यालय नहीं गया।
जब ऐसा नेता मुख्यमंत्री बनता है और तमाम राजनैतिक विरोध के बावजूद भारी जनसमर्थन से लगातार तीन चुनाव जीतता है। "चौकीदार चोर है' के नारों के बावजूद पहली बार से भी अधिक बहुमत से प्रधानमंत्री बनता है तो यह यात्रा उसकी सफलता से अधिक उसके संघर्ष को बयान करती है। वो संघर्ष जो उनके व्यक्तित्व को बयान करता है। वो व्यक्तित्व जो इन शब्दों से परिभाषित होता है कि "एक सफल व्यक्ति वह है जो औरों द्वारा अपने ऊपर फेंके गए ईंटों से एक मजबूत नींव डाल ले।''
-डॉ. नीलम महेंद्र
(लेखिका वरिष्ठ स्तंभकार हैं।)
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