आदर्शों में यक़ीन करने वाले लेखक नहीं थे विजय तेंदुलकर, हमेशा उठाए समाज से जुड़े गंभीर मुद्दे
अंग्रेजों के खिलाफ 1942 में महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया तो विजय तेंदुलकर 14 वर्ष की छोटी की उम्र में पढ़ाई छोड़कर आजादी के इस आंदोलन में कूद पड़े। शुरुआत में तेंदुलकर ने जो कुछ भी लिखा वह उनकी अपनी संतुष्टि के लिए था− प्रकाशन के लिए नहीं।
विजय धोंडोपंत तेंदुलकर (Vijay Dhondopant Tendulkar) एक प्रमुख भारतीय नाटककार, फिल्म और टेलीविजन लेखक थे। अपने लेखन के कॅरियर में उन्होंने साहित्यिक निबंधकार, राजनीतिक पत्रकार और मुख्य रूप से मराठी में सामाजिक टिप्पणीकार भी माना जाता है। विजय तेंदुलकर भारत के सबसे महान नाटककारों में से एक हैं। विजय तेंदुलकर ने भारतीय रंगमंच को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान दिलाई। उनके लिखे नाटक को दुनियाभर के लोगों ने पसंद किया था। समाज के संवदेनशील और विवादित माने जाने वाले विषयों को अपनी लेखनी का आधार बना कर विजय ढोंढोपंत तेंदुलकर ने 1950 के दशक में आधुनिक मराठी रंगमंच को एक नई दिशा दी और शहरी मध्यम वर्ग की छटपटाहट को बड़ी तीखी जुबान में व्यक्त किया। वह अपने नाटकों शांतता के लिए सबसे ज्यादा जाने जाते थे। कोर्ट चालू आहे (1967), घासीराम कोतवाल (1972), और सखाराम बाइंडर (1972) जैसे नाटक उनके प्रमुख नाटको में से एक हैं।
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विजय तेंदुलकर ने 6 साल की उम्र में लिख दी थी अपनी पहली कहनी
6 जनवरी 1928 को महाराष्ट्र के कोल्हापुर में एक भलवालिकर सारस्वत ब्राह्मण परिवार में जन्में विजय को घर में ही साहित्यिक माहौल मिला। उनके पिता का एक छोटा सा प्रकाशन व्यवसाय था और इसी का नतीजा था कि नन्हा विजय छह वर्ष की उम्र में पहली कहानी लिख बैठा और 11 वर्ष की उम्र में उन्होंने पहला नाटक लिखा, उसमें अभिनय किया और उसका निर्देशन भी किया। तेंदुलकर के कई नाटक वास्तविक जीवन की घटनाओं या सामाजिक उथल-पुथल से प्रेरणा लेते हैं, जो कठोर वास्तविकताओं पर स्पष्ट प्रकाश प्रदान करते हैं। उन्होंने अमेरिकी विश्वविद्यालयों में "नाटक लेखन" का अध्ययन करने वाले छात्रों को मार्गदर्शन प्रदान किया है। तेंदुलकर पांच दशकों से अधिक समय तक महाराष्ट्र में एक अत्यधिक प्रभावशाली नाटककार और रंगमंच व्यक्तित्व रहे हैं।
पढ़ाई छोड़कर आजादी के आंदोलन में शामिल हो गये थे विजय तेंदुलकर
अंग्रेजों के खिलाफ 1942 में महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया तो विजय तेंदुलकर 14 वर्ष की छोटी की उम्र में पढ़ाई छोड़कर आजादी के इस आंदोलन में कूद पड़े। शुरुआत में तेंदुलकर ने जो कुछ भी लिखा वह उनकी अपनी संतुष्टि के लिए था− प्रकाशन के लिए नहीं। शुरुआती दिनों में मुंबई के चाल में रहते हुए विजय तेंदुलकर ने लेखन के क्षेत्र में अपने कॅरियर की शुरुआत समाचार पत्रों के लिए लेख लिखने से की और यहां से जो सिलसिला शुरू हुआ वह वर्ष 1984 में उन्हें पद्म भूषण मिलने तक ही नहीं रुका। वर्ष 1993 में उन्हें सरस्वती सम्मान, 1998 में संगीत नाटक अकादमी फेलोशिप और 1999 में कालिदास सम्मान से नवाजा गया और इस दौरान साहित्य के क्षेत्र में उनके कदम मजबूती से जमते चले गए।
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अपने लेखन से जोखिम उठाकर हमेशा नये विचारों को तरजीह दी
विजय तेंदुलकर ने 20 वर्ष की उम्र में गृहस्थ नाटक लिखा लेकिन इसे बहुत ज्यादा मकबूलियत हासिल नहीं हुई। इस बात से लेखक का दिल टूट गया और उन्होंने फिर कभी कलम न उठाने का फैसला किया लेकिन अपने आसपास के हालात से उद्वेलित लेखक मन अधिक दिन शांत नहीं रहा। वर्ष 1956 में उन्होंने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ते हुए श्रीमंत लिखी। इस नाटक ने उन्हें एक लेखक के रूप में स्थापित कर दिया। उन्होंने श्रीमंत के माध्यम से उस समय के रूढि़वादी समाज के सामने आइना रख दिया। इस नाटक के जरिए उन्होंने दिखाया कि किस प्रकार एक बिन ब्याही मां अपने अजन्मे बच्चे को जन्म देना चाहती है लेकिन उसका धनाढ्य पिता समाज में अपनी इज्जत बनाए रखने के लिए उसकी खातिर एक पति खरीदने का प्रयास कर रहा है।
19 मई 2008 को विजय तेंदुलकर का निधन
दुर्लभ ऑटोइम्यून बीमारी मायस्थेनिया ग्रेविस के प्रभावों से जूझते हुए तेंदुलकर का 19 मई 2008 को पुणे में निधन हो गया। इससे पहले तेंदुलकर के बेटे राजा और पत्नी निर्मला का 2001 में निधन हो गया था। उनकी बेटी प्रिया तेंदुलकर की स्तन कैंसर से लंबी लड़ाई के बाद अगले साल (2002) दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। विजय तेंदुलकर अपने परिवार में अकेले ही बचे थे।
- रेनू तिवारी
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