कैफ़ी आज़मी ने 11 साल की उम्र में लिखी थी पहली ग़ज़ल
कैफ़ी आज़मी के पिता ने उन्हें ग़ज़ल लिखने की परीक्षा दी। आज़मी ने भी चुनौती स्वीकार की और एक ग़ज़ल पूरी की। 1942 में वे एक पूर्णकालिक मार्क्सवादी बन गए और 1943 में उन्होंने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता स्वीकार कर ली।
कैफ़ी आज़मी एक क्रांतिकारी, विरोधाभासी और विद्रोही कवि के रूप में जाने जाते हैं। कैफ़ी आज़मी हिंदी फिल्म उद्योग में एक बहुत प्रसिद्ध कवि-गीतकार बन गए। वह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य थे और उन्होंने अपना जीवन मार्क्स के विचारों को बढ़ावा देने के लिए समर्पित कर दिया। उनकी पहली ग़ज़ल 'इतना तो ज़िन्दगी में किसी के ख़लल पड़े' थी जो उन्होंने ग्यारह साल की उम्र में लिखी थी। कैफ़ी आज़मी की उर्दू पर अच्छी पकड़ थी इसी कारण उन्हें एक भारतीय उर्दू कवि भी कहा जाता था। उन्हें उर्दू साहित्य को भारतीय मोशन फिल्मों में लाने वाले व्यक्ति के रूप में याद किया जाता है। पीरज़ादा कासिम, जौन एलिया और अन्य लोगों के साथ उन्होंने बीसवीं शताब्दी के कई यादगार मुशायरों में भाग लिया। उनकी पत्नी थिएटर और फिल्म अभिनेत्री शौकत कैफ़ी थीं।
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कैफ़ी आज़मी का कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति झुकाव
कैफ़ी आज़मी के पिता ने उन्हें ग़ज़ल लिखने की परीक्षा दी। आज़मी ने भी चुनौती स्वीकार की और एक ग़ज़ल पूरी की। 1942 में वे एक पूर्णकालिक मार्क्सवादी बन गए और 1943 में उन्होंने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता स्वीकार कर ली। लखनऊ के अन्य प्रगतिशील लेखकों ने उनकी प्रशंसा की। वे भारत के प्रगतिशील लेखक आंदोलन के सदस्य बने। चौबीस साल की उम्र में उन्होंने कानपुर के कपड़ा मिल क्षेत्रों में काम करना शुरू किया और बाद में पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गए। वह मुंबई शिफ्ट हो गए और कार्यकर्ताओं के बीच काम किया और पार्टी के लिए भी काम किया।
शबाना आज़मी अपने पिता के विचारो से हैं प्रभावित
1960 के दशक में भाकपा और सीपीएम के विभाजन के समय उन्होंने आवारा सजदे (वागाबॉन्ड ओबेसेन्स) लिखी। उन्होंने अभिनेता शौकत आज़मी से शादी की थी और उनके दो बच्चे एक्ट्रेस शबाना आज़मी और छायाकार बाबा आज़मी थे। शबाना आज़मी जो बॉलीवुड की मशहूर एक्ट्रेस हैं वह अकसर सोशल मीडिया पर अपने पिता के बारे में बात करती हैं। कई बार उनकी विचारधारा अपने पिता से प्रभावित नजर आती हैं।
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यूपी सरकार ने कैफ़ी आज़मी को किया था सम्मानित
कैफ़ी आज़मी का जन्म उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के मिज़वान गाँव में एक शिया मुस्लिम परिवार में हुआ था। लंबे समय तक पार्टी के लिए काम करने के बाद वह मिजवान में अपने घर लौट आये और वहां एक आदर्श गांव बनाने के लिए काम किया। यूपी सरकार ने मिजवान की ओर जाने वाली सड़क के साथ-साथ सुल्तानपुर-फूलपुर राजमार्ग का नाम उनके नाम पर रखा। दिल्ली से आजमगढ़ जाने वाली एक ट्रेन का नाम भी उन्हीं के नाम पर कैफियत एक्सप्रेस रखा गया है। 1993 में उन्होंने ग्रामीण भारत में बालिकाओं और महिलाओं के लिए मिजवान वेलफेयर सोसाइटी की स्थापना की। 10 मई 2002 को 83 साल की उम्र में कैफ़ी आज़मी का निधन हो गया।
- रेनू तिवारी
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