Jyotiba Phule Jayanti 2023: समाज में फैली कुरीतियों को समाप्त करने के लिए जीवनभर कार्य करते रहे महात्मा ज्योतिबा फुले
महात्मा ज्योतिबा फुले का परिवार कई पीढ़ी पहले सतारा से पुणे आकर रहने लगा था। इस दौरान परिवार के भरण-पोषण के लिए फूलों के गजरे आदि को बनाने का करने लगे थे। माली के काम में लगे होने के कारण इन्हें 'फुले' के नाम से जाना जाने लगा।
ज्योतिराव गोविंदराव फुले 19वीं सदी के एक महान समाज सुधारक थे। इसके अलावा वह समाजसेवी, लेखक, विचारक, दार्शनिक तथा क्रान्तिकारी कार्यकर्ता थे। इनको महात्मा फूले और ज्योतिबा फुले के नाम से भी जाना जाता है। इन्होंने अपना पूरा जीवन समाज के लिए समर्पित कर दिया था। महात्मा ज्योतिबा फुले ने अपना पूरा जीवन समाज में फैली कुरीतियों को बंद करने, स्त्रियों को शिक्षा का अधिकार दिलाने, बाल विवाह को बंद कराने में लगा दिया था। फूले समाज की कुप्रथा और अंधश्रद्धा की जाल से समाज को मुक्त करवाना चाहते थे। आज ही के दिन यानी की 11 अप्रैल को ज्योतिबा फुले का जन्म हुआ था। आइए जानते हैं उनके जन्मदिन के मौके पर ज्योतिबा फूले के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातों के बारे में...
जन्म और शिक्षा
महात्मा ज्योतिबा फुले का परिवार कई पीढ़ी पहले सतारा से पुणे आकर रहने लगा था। इस दौरान परिवार के भरण-पोषण के लिए फूलों के गजरे आदि को बनाने का करने लगे थे। माली के काम में लगे होने के कारण इन्हें 'फुले' के नाम से जाना जाने लगा। ज्योतिबा फूले का जन्म 11 अप्रैल 1827 को हुआ था। 1 साल की उम्र इनके सिर से मां का साया उठ गया था। जिसके कारण ज्योतिबा को बायी ने पाला था। ज्योतिबा ने मराठी में कुछ समय के लिए अध्ययन किया था। हालांकि बीच में उनकी पढ़ाई छूट गई थी। बता दें कि ज्योतिबा ने 21 साल की उम्र में अंग्रेजी की 7वीं कक्षा की पढ़ाई पूरी की थी।
शादी
ज्योतिबा फुले का विवाह साल 1840 में सावित्री बाई से हुआ था। बाद में सावित्री बाई फेमस समाजसेवी बनीं। सावित्री फुले और ज्योतिबा फुले ने दलित और महिलाओं की शिक्षा के क्षेत्र में कई महान कार्य किए। वह दोनों एक कर्मठ और समाजसेवी की भावना रखने वाले व्यक्ति थे।
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महात्मा ज्योतिबा फुले के कार्य
साल 1848 में महात्मा ज्योतिबा फूले ने लड़कियों की शिक्षा के लिए देश का पहला महिला स्कूल खोला था। पूणे में उनके द्वारा खोले गए इस स्कूल में ज्योतिबा फूले की पत्नी सावित्रीबाई फुले पहली महिला शिक्षक बनी थीं। उस दौरान समाज के एक हिस्से ने उनका काफी विरोध किया था। जिसके कारण ज्योतिबा फुले को अपना स्कूल बंद करना पड़ा था। इसके बाद इसी ने स्कूल खोलने के लिए अपनी जगह मुहैया करवाई थी।
दलितों और वंचितों को न्याय दिलाने के लिए ज्योतिबा फूले ने सत्यशोधक समाज की स्थापना की थी। 24 सितंबर 1873 को समाज परिवर्तन के आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए सत्यशोधक समाज की स्थापना की गई थी। सत्यशोधक समाज की स्थापना का मुख्य उद्देश्य शूद्रों-अतिशूद्रों को न्याय दिलाना, उत्पीड़न से मुक्ति दिलाना, वंचित वर्ग के युवाओं के लिए प्रशासनिक क्षेत्र में रोजगार के अवसर दिलाना, और शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करना शामिल था। साल 1888 में ज्योतिबा फूले की समाजसेवा से प्रभावित होकर उनको मुबंई की एक सभा में महात्मा की उपाधि से नवाजा गया था।
ज्योतिबा फुले की रोचक बातें
ज्योतिबा फुले ने अपने जीवन काल में उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखीं थीं। जिसमें छत्रपति शिवाजी, राजा भोसला का पखड़ा, किसान का कोड़ा, गुलामगिरी, तृतीय रत्न, अछूतों की कैफियत शामिल हैं। उनके संघर्षों के कारण सरकार ने 'एग्रीकल्चर एक्ट' पास किया था।
ब्राह्मण-पुरोहित के बिना ही ज्योतिबा ने विवाह-संस्कार आरम्भ कराया। जिसे मुंबई के उच्च न्यायलाय से भी मान्यता मिली थी। वह बाल विवाह के विरोधी और विधवा विवाह का समर्थन किया था।
जब ज्योतिबा फुले को स्कूल में पढ़ाने के लिए कोई योग्य शिक्षिका नहीं मिली। तब इस काम के लिए उन्होंने अपनी पत्नी सावित्री बाई फूले को शिक्षित करने का कार्य किया।
उच्च वर्ग के लोगों ने ज्योतिबा के समाज सेवा के काम में बाधा डालना शुरू किया। इसके बाद भी जब वह आगे बढ़ते चले गए तो उनके पिता ने ज्योतिबा और सावित्री को घर से निकाल दिया था। इससे कुछ समय के लिए शिक्षण कार्य प्रभावित हुआ था। लेकिन बाद में ज्योतिबा ने एक के बाद एक बालिकाओं के लिए 3 स्कूल खोले।
साल 1873 में दलितों और निर्बल वर्ग को न्याय दिलाने के लिए 'सत्यशोधक समाज' की स्थापना की गई।
साल 1888 में उनकी समाज सेवा के कार्यों और भावनाओं को देखते हुए उन्हें एक सभा में 'महात्मा' की उपाधि से नवाजा गया था।
साल 1848 में ब्राह्मण मित्र की शादी में भाग लेने पर ज्योतिबा फूले को निम्न जाति के कारण उन्हें काफी जलील किया गया था। जिस कारण उन्होंने सामाजिक असमानता को जड़ से उखाड़ फेंकने की कसम खाई थी।
शिक्षा के साथ ही साथ ज्योतिबा फुले ने विधवा पुनर्विवाह, नवजात शिशुओं के लिए आश्रम, विधवा के लिए आश्रम, कन्या शिशु हत्या के खिलाफ भी आवाज बुलंद किया।
ज्योतिबाराव फुले द्वारा ही पहली बार 'दलित' शब्द का इस्तेमाल किया गया था।
महात्मा ज्योतिबा और उनके संगठन के संघर्ष के कारण सरकार ने ‘ऐग्रिकल्चर ऐक्ट’ पास किया।
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