Kasturba Gandhi Birth Anniversary: संघर्ष, त्याग व सादगी की प्रतिमूर्ति थीं कस्तूरबा गांधी, जानिए उनके जीवन से जुड़ी कुछ बातें

Kasturba Gandhi
Prabhasakshi

देश की आजादी में कस्तूरबा गांधी का भी अहम योगदान था। वह अपने पति यानी की महात्मा गांधी के साथ हर समय मजबूती से खड़ी रहीं। हालांकि उनकी कई मुद्दों पर बहस हो जाया करती थी। बचपन में विवाह होने के कारण दोनों को वैवाहिक मामले में परिपक्व होने में समय लगा।

भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में न सिर्फ पुरुषों ने अंग्रेजों के खिलाफ जंग लड़ी, बल्कि आजादी की लड़ाई में महिलाओं ने भी अपना बढ़चढ़ कर योगदान दिया था। इन्हीं महिलाओं में एक महिला थीं कस्तूरबा गांधी। जिन्हें 'बा' के नाम से जाना जाता है। कस्तूरबा गांधी मोहनदास करमचंद गांधी यानि की महत्मा गांधी की पत्नी थीं। कस्तूरबा गांधी ने ही कई मामले में आदर्शों की ऊंचाई हासिल की थी। आज ही के दिन यानी की 11 अप्रैल को कस्तूरबा गांधी का जन्म हुआ था। आइए जानते हैं उनके बर्थ एनिवर्सिरी के मौके पर उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातों के बारे में...

जन्म और शिक्षा

पोरबंदर में 11 अप्रैल 1869 को कस्तूरबा गांधी का जन्म हुआ था। कस्तूरबा के पिता गोकुलदास कपाड़िया अनाज कपड़े और कपास के व्यापारी थे। कस्तूरबा गांधी एक संपन्न परिवार में जन्मी थीं। उस जमाने में लड़कियों की शिक्षा को इतना महत्व नहीं दिया जाता था। महज 13 साल की उम्र में ही कस्तूरबा की महात्मा गांधी से शादी कर दी गई थी। दरअसल, गांधी जी के पिता और कस्तूरबा के पिता करीबी दोस्त थे। हालांकि कस्तूरबा गांधी महात्मा गांधी से उम्र में बड़ी थीं। हालांकि बचपन में हुई शादी को जब महात्मा गांधी ने समझा तो वह बाल विरोध के खिलाफ हो गए। 

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एक-दूसरे को समझने में लगा वक्त

देश की आजादी में कस्तूरबा गांधी का भी अहम योगदान था। वह अपने पति यानी की महात्मा गांधी के साथ हर समय मजबूती से खड़ी रहीं। हालांकि उनकी कई मुद्दों पर बहस हो जाया करती थी। बचपन में विवाह होने के कारण दोनों को वैवाहिक मामले में परिपक्व होने में समय लगा। शुरूआत में तो शादी उनके लिए खेल थी। पहले तो वह दोस्त बन गए लेकिन बाद में जिम्मेदारियों को समझने में दोनों को ही काफी समय लगा। गांधी जी ने अपनी आत्मकथा में भी लिखा है कि वह शुरूआत में कस्तूरबा की ओर आकर्षित महसूस करते थे।

कस्तूरबा को शिक्षित करने का फैसला

महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा में लिखा कि वह स्कूल में भी कस्तूरबा के बारे में सोचते रहते थे। हालांकि गांधीजी को यह बात काफी चुभती थी कि कस्तूरबा गांधी पढ़ी-लिखी नहीं थीं। इसलिए उन्होंने खुद ही उन्हें पढ़ाने का जिम्मा उठाया। लेकिन कई जिम्मेदारियों के कारण 'बा' का मन पढ़ाई में नहीं लगता था। जिसके कारण दोनों को एक-दूसरे के साथ तालमेल बिठाने में समय लगा।

गांधीजी के साथ कस्तूरबा का जीवन

साल 1888 तक महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी साथ ही रहे। लेकिन जब गांधी जी इंग्लैंड से भारत लौटकर आए। इसके बाद दोनों करीब 12 सालों कर एक-दूसरे से अलग रहे। इसके बाद गांधी जी को अफ्रीका जाना पड़ा था। वहीं साल 1896 में वह भारत लौट आए और बा को भी अपने साथ लेकर चले गए। इसके बाद से वह भी गांधी जी के साथ रहने लगे थे। कस्तूरबा ने हर फैसले में महात्मा गांधी का साथ देना अपना परम कर्तव्य माना था। 

भारतियों की दशा के विरोध में दक्षिण अप्रीका में विरोध शुरू हो गया था। जब कस्तूरबा इस आंदोलन में शामिल हुई थीं। इस दौरान उनको 3 महीने के लिए गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था। वहीं साल 1915 में वह गांधी जी के साथ भारत वापस लौट आई। इस दौरान उन्होंने चंपारण सत्याग्रह के दौरान लोगों को अनुशासन, सफाई और पढ़ाई आदि के बारे में लोगों को जागरुक किया था। कस्तूरबा गांधी ने गांव-गांव में घूमकर लोगों को दवाइयां वितरित की थीं। 

साल 1922 में जब महात्मा गांधी को गिरफ्तार किया गया था तो कस्तूरबा ने गुजरात के गांवों में घूम-घूमकर गांवों का दौरा करने लगी थीं। अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण साल 1932-33 में उनका अधिकतर समय जेल में गुजरा था। राजकोट रियासत के राजा के विरोध में भी साल 1939 में कस्तूरबा गांधी ने सत्याग्रह में भाग लिया। 

निधन

अपने कार्यों से लोगों के बीच 'बा' के नाम से फेमस हुईं कस्तूरबा गांधी को दो बार दिल का दौरा पड़ा था। उनके इलाज के लिए सरकार ने आयुर्वेद के डॉक्टर का प्रबंध किया गया। हालांकि इस दौरान उन्हें कुछ समय के लिए आराम मिला था। लेकिन 22 फरवरी 1944 को एक बार फिर दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हो गई।

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