Madhavrao Sadashiv Rao Golwalkar Death Anniversary: RSS का वह नेता जिसने संघ को दी मजबूती, 'गुरुजी' के नाम से प्रसिद्ध थे माधवराव

Madhavrao Sadashiv Rao Golwalkar
Prabhasakshi

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के दूसरे सरसंघचालक माधवराव सदाशिव राव गोलवलकर एक महान विचारक के तौर पर जाने जाते हैं। बता दें कि 5 जून को माधवराव का निधन हो गया था। BHU से उन्हें 'गुरुजी' की उपाधि मिली थी।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के गुरुजी यानी माधवराव सदाशिव गोलवलकर का आज के दिन यानी की 5 जून को निधन हो गया था। बता दें कि माधवराव सदाशिव राव गोलवलकर काशी हिंदू विश्वविद्यालय में 'गुरुजी' की उपाधि मिली थी। RSS के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के निधन के बाद साल 1940 में वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के दूसरे सरसंघचालक बने थे। हालांकि माधवराव हमेशा राजनीति से दूर रहने की सहाल देते थे। क्योंकि वह राजनीतिको बहुत अच्छा नहीं मानते थे। आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सिरी के मौके पर माधवराव सदाशिव राव गोलवलकर के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

जन्म और शिक्षा

नागपुर के पास रामटेक में एक ब्राह्मण परिवार में 19 फरवरी 1906 को माधव सदाशिव गोलवलकर का जन्म हुआ था। बता दें कि 9 बच्चों में सिर्फ वह जीवित पुत्र थे। साल 1927 में उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से एमएससी की डिग्री प्राप्त की। माधवराव राष्ट्रवादी नेता और विश्वविद्यालय के संस्थापक मदन मोहन मालवीय से काफी प्रभावित थे। बाद में माधवराव ने BHU में 'जंतु शास्त्र' पढ़ाया और यहीं पर 'गुरुजी' का उपनाम भी कमाया। इसी दौरान RSS के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार को BHU के एक छात्र के द्वारा 'गुरुजी' के बारे में पता चला। साल 1932 में हेडगेवार ने गोलवलकर से मुलाकात की और उन्हें बीएचयू में संघचालक नियुक्त कर दिया।

आरएसएस पर प्रतिबंध

देश के स्वतंत्रता संग्राम में गैर-भागीदारी को लेकर एक ओर जहां RSS लगातार आलोचनाओं का सामना कर रहा था। वहीं दूसरी तरफ साल 1942 में गांधी के नेतृत्व वाले भारत छोड़ो आंदोलन में गोलवलकर ने स्वयंसेवकों हिस्सा लेने के लिए मना कर दिया था। गोलवलकर का कहना था कि अंग्रेजों के खिलाफ लड़ना RSS का मिशन नहीं है। उनका कहना था कि अपनी प्रतिज्ञा में हमने धर्म और संस्कृति की रक्षा के जरिए देश की आजादी की बात की है। हालांकि बाद में संघर्ष के दौरान RSS अपनी भूमिका बखूबी निभाती रही।

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गांधी और गोलवलकर की मुलाकात

साल 1947 में जब भारत विभाजन के दर्द से गुजर रहा था। तब महात्मा गांधी ने गोलवलकर से मुलाकात की। इस दौरान गोलवलकर से गांधीजी ने बताया कि देश में हो रहे दंगों के पीछ वह RSS की मुख्य भूमिका के बारे में सुन रहे हैं। तब गोलवलकर ने महात्मा गांधी को आश्वस्त करने हुए कहा था कि मुस्लिमों की हत्या के पीछ RSS का कोई हाथ नहीं हैं। RSS सिर्फ हिंदुस्तान की रक्षा करना चाहता है। बताया जाता है कि भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने रदार पटेल को लिखे पत्र में लिखा था कि महात्मा गांधी ने उनको बताया है कि गोलवलकर अपनी बातों को लेकर विश्वस्त नहीं लगे।

इसके बाद 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की हत्या कर दी। नाथूराम गोडसे एक कट्टरपंथी हिंदू राष्ट्रवादी होने के साथ ही RSS के सदस्य भी थे। हालांकि RSS का कहना था कि महात्मा गांधी की हत्या से पहले नाथूराम ने संघ की सदस्यता को छोड़ चुके थे। लेकिन इस घटना के बाद गोलवलकर और RSS के तमाम सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया था। वहीं उस दौरन गृह मंत्री रहे पटेल ने इस संघ पर प्रतिबंध भी लगा दिया था। जिसके बाद साल 1948 में गोलवलकर ने दिल्ली में सत्याग्रह शुरू किया और RSS पर लगाए गए प्रतिबंध को चुनौती देने का फैसला किया। वहीं साल 1949 में RSS द्वारा भारतीय संविधान के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा लेने के बाद उस पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया गया था।

मौत

1972-73 में गोलवलकर ने देश भर में एक आखिरी दौरा किया था। इस दौरान उनका स्वास्थ्य भी काफी बिगड़ने लगा था। बता दें कि उन्होंने आखिरी दौरा बांग्लादेश लिबरेशन वार में पाकिस्तान पर भारत की जीत के ठीक बाद किया था। इस जीत के बाद देश की तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी को गोलवलकर ने बधाई थी। मार्च 1973 में वह नागपुर लौट आए। जिसके बाद 5 जून 1973 को उनकी मौत हो गई। लेकिन इस दौरान तक गोलवलकर ने राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के साथ RSS को सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन के रूप मजबूती प्रदान की थी। बता दें कि वर्तमान में देश की सबसे बड़ी पार्टी भारतीय जनता पार्टी RSS की प्रशाखा है।

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