बहादुर शाह जफर के बुलंद हौसलों से खौफ में थी अंग्रेजों की सेना
अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को इतिहास का अहम हिस्सा है, जिन्होंने हिंदुओं व मुसलमानों क्रांतिकारियों के साथ मिलकर अंग्रेजों में खौफ पैदा कर दिया था। उन्हें उर्दू की भी अच्छी समझ थी और वो उर्दू के शायर भी माने जाते थे। उन्होंने 1857 की क्रांति का नेतृत्व भी किया था।
बहादुर शाह जफर मुगल शासन के अंतिम शासक थे, जिन्हें इतिहास में कम जगह मिली है। माना जाता है कि बहादुर शाह जफर सूफी संत, उर्दू भाषा के बेहतरीन कवि और शासक थे। वो एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जो ईस्ट इंडिया कंपनी के पेंशनभोगी थे। भारतीय इतिहास के अहम व्यक्तियों में उनका नाम शुमार किया जाता है। वो ऐसे शासक थे जिनकी एकता को देखकर अंग्रेजों का हौसला भी पस्त पड़ गया था और अंग्रेज खौफ में आ गए थे।
जानकारी के मुताबिक उन्होंने 1857 की क्रांति में विद्रोहियों और देश के सभी राजाओं का एक सम्राट के तौर पर नेतृत्व किया। इसके लिए उन्हें अंग्रेजी सेना ने गिरफ्तार किया था और उन्हें ऐसी मौत दी थी कि उनकी कब्र के बारे में 132 सालों तक कोई जानकारी नहीं मिली थी।
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अकबर की मौत के बाद बैठे थे गद्दी पर
जानकारी के मुताबिक मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर का जन्म 24 अक्टूबर 1775 को हुआ था। जफर का असली नाम अबू जफर सिराज उद दीन मुहम्मद था। वर्ष 1837 में उनके पिता की मृत्यु के बाद वो गद्दी पर बैठी। इतिहासकारों का कहना है कि उनके पिता बहादुर शाह को गद्दी नहीं सौंपना चाहते थे क्योंकि वो नर्म दिल और कवि थे। इतना ही नहीं युवावस्था के दौरान उनकी राजनीतिक मामलों में दिलचस्पी भी काफी कम थी।
अंग्रेजों के खिलाफ उन्होंने वर्ष 1857 की क्रांति में नेतृत्व किया था। अंग्रेजों के आक्रमण को देखते हुए राजा महाराजा एकजुट होने लगे, जिसके बाद उनकी कमान को बहादुर शाह जफर ने संभाला। उन्होंने 82 वर्ष की उम्र में उस क्रांति का नेतृत्व किया, लेकिन इस क्रांति में उन्हें जीत हासिल नहीं हुई। अपने जीवन के अंतिम वर्ष बहादुर शाह जफर को अंग्रेजों की कैद में गुजारने पड़े।
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अंग्रेजों ने मौत के बाद छुपाई कब्र
अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर की मौत 7 नवंबर 1862 को हुई थी। उनकी मौत के पीछे लकवा को कारण बताया गया था। मौत के बाद रंगून में उसी दिन शाम 4 बजे 87 साल के इस मुगल शासक को दफनाया गया था। जानकारी के मुताबिक मौत के बाद उनकी कब्र उसी घर के पीछे बनाई गई जहां उन्हें कैद किया हुआ था। दफनाए जाने के बाद जमीन को समतल कर दिया गया। ब्रिटेन के अधिकारियों ने ये सुनिश्चित किया कि उनकी कब्र को पहचाना ना जा सके। उनकी कब्र के बारे में जानकारी तब मिली जब 132 वर्षों बाद खुदाई की गई। जब कब्र के अवशेषों की जांच की गई तब ये पुष्टि हुई की कब्र जफर की ही है।
बनाई गई दरगाह
जफर की कब्र की पुष्टि होने के बाद उनकी दरगाह वर्ष 1994 में बनाई गई। इस दरगाह में पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग अलग प्रार्थना करने की जगह बनी है।
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