नाटकों में अभिनय करने के कारण लोग उन्हें काका कहने लगे
काका हाथरसी का कवियों में खास महत्व था। बहुत से कवि सम्मेलनों में हास्य कवि ने अपनी कविताएं पढ़ी और लोगों के चकित कर दिया। काका को दिल्ली के लाल किले पर 1957 में कवि सम्मेलन में बुलाया गया तो वहां लोग उनकी कविताओं से प्रभावित हुए।
हास्य सम्राट के नाम से मशहूर काका हाथरसी न केवल देश में बल्कि विदेश में भी अपनी कविताओं के लिए जाने जाते हैं। काका हाथरसी के बारे में खास बात यह है कि उनका जन्मदिवस और अवसान एक ही दिन हुआ था। तो आइए उनके जन्मदिन 18 सितम्बर के अवसर पर महान हास्य कवि के बारे में कुछ रोचक बातें बताते हैं।
शुरूआती जीवन
काका हाथरसी का जन्म 18 सितम्बर 1906 को हुआ था। उस समय प्लेग का कहर जारी था। प्लेग के कारण गांव और शहर उजड़ जाते थे। उसी समय काका जब केवल 15 दिन के बच्चे थे तभी उनके पिता का देहांत हो गया। पिता के निधन से उनकी मां टूट गयी। उस समय काका के परिवार में मात्र चार लोग काका, उनकी मां, बड़े भाई और बड़ी बहन। सभी को लेकर उनकी मां अपने मायके इगलास चली गयीं। इस तरह काका का बचपन इगलास में बीता। उन्हें बचपन में बहुत कठिनाइयां उठानी पड़ी। उन्होंने अपना जीवन चलाने के लिए चाट-पकौड़े भी बेचे लेकिन कविता के प्रति उनका लगाव कम नहीं हुआ।
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सम्मान
काका हाथरसी का कवियों में खास महत्व था। बहुत से कवि सम्मेलनों में हास्य कवि ने अपनी कविताएं पढ़ी और लोगों के चकित कर दिया। काका को दिल्ली के लाल किले पर 1957 में कवि सम्मेलन में बुलाया गया तो वहां लोग उनकी कविताओं से प्रभावित हुए। काका को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। काका हाथरसी को 'कला रत्न' की उपाधि भी दी गयी थी। इसके अलावा 1985 में उन्हें पदम श्री से सम्मानित किया गया। विदेशों में भी वह काव्य पाठ करने जाते थे। अमेरिका में 1989 में उन्हें वाल्टीमौर में 'आनरेरी सिटीजन' पुरस्कार मिला। इसके अलावा काका ने 'जमुना किनारे' नाम की फ़िल्म में एक्टिंग भी की।
हाथरसी को नाम से जोड़ने की कहानी
काका हाथरसी के बेटे लक्ष्मीनारायण गर्ग ने बताया कि नाटक में काका का किरदार निभाने के लोग पिता जी को काका कहने लगे। उस समय उनके बेटे लक्ष्मीनारायण गर्ग 8 साल के थे। उन्होंने अपने पिता जी से कहा कि वह अपने नाम में हाथरसी शब्द भी जोड़ लें। पिता काका को यह बात बहुत पसंद आयी और उन्होंने अपना नाम काका हाथरसी रख लिया।
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प्रभु से बने काका
काका हाथरसी के नाम से मशहूर कवि का असली नाम न होकर काका 'प्रभुलाल गर्ग' था। लेकिन नाटक में काम करने के शौक के कारण वह नाटक में भी भाग लेते थे। एक बार किसी नाटक में उन्होंने 'काका' का किरदार निभाया तब से लोग प्रभूलाल गर्ग के बजाय 'काका' कहने लगे। उन्होंने कुछ समय तक 'मुनीम' की नौकरी भी की थी। काका के नाम से मशहूर होने के कारण इनकी पत्नी काकी के नाम से जानी जाती थीं।
रचनाएं
काका हाथरसी के मुख्य कविताओं में से काका के प्रहसन, खिलखिलाहट, काका की फुलझड़ियां, जय बोलो बेईमान की, काका तरंग, काका के व्यंग्य बाण काका के चुटकुले और लूटनीति मंथन करि प्रमुख हैं। काका हाथरसी ने हास्य कविताओं के साथ-साथ संगीत पर भी किताबें लिखीं। उन्होंने संगीत पर एक पत्रिका का सम्पादन भी किया। 'काका के कारतूस' और 'काका की फुलझडियां' जैसे स्तम्भों से पाठकों के प्रश्नों का जवाब देते थे।
प्रज्ञा पाण्डेय
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