आचार्य कृपलानी बहुत अनुशासित तथा आदर्शों के पक्के व्यक्ति थे

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जेबी कृपलानी के गांधी से सम्बन्ध अच्छे थे लेकिन कभी-कभी दोनों के रिश्तों में विरोधाभास भी दिखायी देता है। वह चम्पारन सत्याग्रह में गांधी के साथ रहे लेकिन असहयोग आंदोलन में पीछे हट गए। उसके बाद जेबी कृपलानी 1920 से 1927 तक ''गुजरात विद्यापीठ'' में प्राचार्य बने तभी से उन्हें ''आचार्य़ कृपलानी'' कहा जाता है।

जेबी कृपलानी राजनीतिक, सामाजिक कार्यकर्ता और पर्यावरणविद थे। वे महात्मा गांधी को आदर्श मानते थे और उनके बताये गए मार्ग का अनुसरण करते थे। आज उस महान व्यक्तित्व का जन्मदिन है तो आइए हम आपको उनके जीवन के विविध पहलूओं से परिचित कराते हैं।

जेबी कृपलानी का निजी जीवन

जेबी कृपलानी का पूरा नाम जीवतराम भगवानदास कृपलानी था। उनका जन्म 11 नवम्बर 1888 में हिन्दू परिवार में हैदराबाद के सिंध इलाके में हुआ था। उनके पिता का नाम काका भगवानदास था। उनके पिताजी एक राजस्व और न्यायिक अधिकारी थे। जेबी कृपलानी आठ भाई-बहन थे उनमे आचार्य जी छठें नंबर पर थे। सन 1936 में उनकी शादी सुचेता कृपलानी से हुई थी। वे बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के महिला महाविद्यालय में शिक्षक थी। उनकी पत्नी हमेशा कांग्रेस पार्टी के साथ रही। राजनीतिक कॅरियर में मंत्री पद भी रहीं और उत्तर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री भी बनीं।

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उनकी शिक्षा 

कृपलानी ने अपनी शिक्षा सिंध से पूरी करने के बाद वह बॉम्बे चले गए फिर उन्हें अंग्रेजी की कविताओं में बहुत रूचि थी। उसके बाद वह कराची के डी जे सिंध कॉलेज चले गए। उसके बाद उन्होंने पूना के फर्ग्युसन कॉलेज से 1908 में स्नातक हुए। आगे उन्होंने इतिहास और अर्थशास्त्र में एमए पास किया।

जेबी कृपलानी का कॅरियर

पढ़ाई पूरी के बाद जेबी कृपलानी मुजफ्फरपुर में प्रोफेसर बन गए। उसके बाद 1917 में गांधी जी प्रभावित होकर गांधी के साथ काम करने लगे। इसके बाद उन्होंने गुजरात विद्यापीठ में प्रिंसिपल के रूप में काम किया और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में शिक्षक के रूप में कार्य करते रहे। आजादी की लड़ाई के दौरान गांधी जी द्वारा चलाए गए सभी बड़े आंदोलनों में हिस्सा लिया। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के महासचिव भी रहे तथा भारतीय संविधान के निर्माण में उन्होंने प्रमुख भूमिका निभायी। 1950 में चुनाव हारने के बाद उन्होंने प्रजा समाजवादी पार्टी बनायी। कुछ दिनों बाद उन्होंने प्रजा समाजवादी पार्टी से इस्तीफा देकर स्वतंत्र नेता के रूप में कार्य किया। उसके बाद 1977 में भारत में आपातकालीन सरकार का विरोध किया और जेल भी गए। 

गांधी के साथ सम्बन्ध

जेबी कृपलानी के गांधी से सम्बन्ध अच्छे थे लेकिन कभी-कभी दोनों के रिश्तों में विरोधाभास भी दिखायी देता है। वह चम्पारन सत्याग्रह में गांधी के साथ रहे लेकिन असहयोग आंदोलन में पीछे हट गए। उसके बाद जेबी कृपलानी 1920 से 1927 तक 'गुजरात विद्यापीठ' में प्राचार्य बने तभी से उन्हें 'आचार्य़ कृपलानी' कहा जाता है।

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जेबी कृपलानी और सुचेता कृपलानी

जेबी कृपलानी तथा सुचेता कृपलानी एक दूसरे के गांधी के आश्रम में मिले वहीं से उनके बीच नजदीकियां बढ़ी। उसके बाद बनारस हिन्दू विश्विवद्यालय में एक दूसरे के साथ प्रेम सम्बन्ध बन गए। वैसे तो दोनों ही कांग्रेस के दिग्गज नेता थे लेकिन बाद वह दोनों ही अलग-अलग दलों में शामिल हो गए। दोनों के बीच वैचारिक होने के भी वह साथ रहे। वह हैदारबाद के अच्छे परिवार में पले-बढ़े थे। साथ ही बहुत अनुशासित तथा कुशाग्र बुद्धि के थे। वह लम्बे समय तक कांग्रेस के महासचिव रहे फिर भी पार्टी से अलग हो गए। इसे विपरीत सुचेता कांग्रेस में रहते हुए ऊंचे पदों पर आसीन रहीं।

प्रज्ञा पाण्डेय

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