संगीत एवं नृत्य परंपरा का सितारा थे बिरजू महाराज
बिरजू महाराज का जन्म 4 फरवरी, 1938 को कत्थक नृत्य के लिये प्रसिद्ध जगन्नाथ महाराज के घर हुआ था, जिन्हें लखनऊ घराने के अच्छन महाराज कहा जाता था। ये रायगढ़ रजवाड़े में दरबारी नर्तक हुआ करते थे।
कत्थक के सरताज पंडित बिरजू महाराज नहीं रहे। उनके निधन से आज भारतीय संगीत की लय थम गई, सुर मौन हो गए, भाव शून्य हो गए। वे शास्त्रीय कथक नृत्य के लखनऊ कालिका-बिन्दादिन घराने के विश्वप्रसिद्ध अग्रणी नर्तक थे, जिन्होंने इस गौरवशाली परंपरा की सुगंध विश्व भर में प्रसारित की। बिरजू महाराज के अनंत में विलीन होने से गहन सन्नाटा छा गया है। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत एवं कथक नृत्य का दुनिया में विशिष्ट स्थान है, क्योंकि यह सत्यं, शिवं और सौन्दर्य की युगपत् उपासना की सिद्ध एवं चमत्कारी अभिव्यक्ति है।
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बिरजू महाराज का जन्म 4 फरवरी, 1938 को कत्थक नृत्य के लिये प्रसिद्ध जगन्नाथ महाराज के घर हुआ था, जिन्हें लखनऊ घराने के अच्छन महाराज कहा जाता था। ये रायगढ़ रजवाड़े में दरबारी नर्तक हुआ करते थे। बिरजू का नाम पहले दुखहरण रखा गया था, क्योंकि ये जिस अस्पताल पैदा हुए थे, उस दिन वहाँ उनके अलावा बाकी सब कन्याओं का ही जन्म हुआ था, यानी गोपियों के बीच श्रीकृष्ण, उसी कारण उनका नाम बृजमोहन रख दिया गया। यही नाम आगे चलकर ‘बिरजू’ और ‘बिरजू महाराज’ हो गया। वे भारतीय संगीत जगत का एक उज्जवल नक्षत्र थे। पारम्परिक कौशल, रचनात्मकता एवं संवेदनशीलता से युक्त कालिका-बिन्दादिन घराने के प्रतिनिधि गायक एवं नर्तक पद्मविभूषण बिरजू महाराज गायन एवं कथक नर्तन में कल्पनाशील विस्तार, गहन अलौकिकता और अचूक कलात्मक संयम एवं वैभव के लिये विख्यात हैं। हिन्दुस्तान के कथक नृत्य एवं गायन में सात दशकों के अनुभव के आधार पर कहा जा सकता है कि वे अपनी कला के अकेले महारथि थे। उन्होंने शास्त्रीय संगीत एवं कला को लोकरंजन का साधन बनाने के लिये क्लिष्टता को दूर उसे सुगम बनाया। ईश्वर को आलोकपुंज मानते हुए उससे एकाकार होकर अपनी कला को प्रस्तुति देते हुए बिरजु महाराज ऐसा प्रतीत कराते थे, मानो उनका ईश्वर से सीधा साक्षात्कार हो रहा है। यही कारण है कि उनकी नृत्यकला एवं संगीत साधना से रू-ब-रू होने वाले असंख्य लोग उनकी साधना में गौता लगाते हुए मंत्रमुग्ध हो जाते थे। ऐसे गुणों के भंडार पंडित बिरजू महाराज के जीवन का वर्णन करना संभव नहीं। हम सभी जानते हैं कि बिरजू महाराज कथक नृत्य के एक मुर्धन्य कलाकार थे। परंतु इसके इलावा भी जो उनके अलग विषयों में भी दखल था जिनमें उनका तबला वादन भी अनूठा एवं बेजोड़ था। और उनकी ठुमरी गायकी पर जो दखल था वह हम सभी भली भांति जानते हैं। कुछ फिल्मों में भी उन्होंने अपना गायकी का परिचय दिया हैं। उनके कथक नृत्य के तो सभी दीवाने थे पर उनका यह चौमुखी विद्या गुण उन्हें सबसे अलग रखता था। जैसे संयम नटराज हमारे बीच से आज विदा लेकर चले गए। उनका यह स्थान कोई पूरा नहीं कर सकता। कत्थक संसार की एक पाठशाला आज वीरान हो गई।
पंडित बिरजूजी कथक नर्तकों के महाराज परिवार के वंशज थे जिसमें अन्य प्रमुख विभूतियों में इनके दो चाचा व ताऊ, शंभु महाराज एवं लच्छू महाराज तथा इनके स्वयं के पिता एवं गुरु अच्छन महाराज भी आते हैं। हालांकि इनका प्रथम जुड़ाव नृत्य से ही है, फिर भी इनकी गायकी पर भी अच्छी पकड़ थी, तथा ये एक अच्छे शास्त्रीय गायक भी थे। इन्होंने कत्थक नृत्य में नये आयाम नृत्य-नाटिकाओं को जोड़कर उसे नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। इन्होंने कत्थक हेतु ‘कलाश्रम’ की स्थापना भी की है। इसके अलावा इन्होंने विश्वपर्यन्त भ्रमण कर सहस्रों नृत्य कार्यक्रम करने के साथ-साथ कत्थक शिक्षार्थियों हेतु सैंकड़ों कार्यशालाएं भी आयोजित की। उन्होंने कत्थक के साथ कई प्रयोग किए और फिल्मों के लिए कोरिओग्राफ भी किया। उनकी तीन बेटियाँ और दो बेटे हैं। अपने चाचा, शम्भू महाराज के साथ नई दिल्ली स्थित भारतीय कला केन्द्र, जिसे बाद में कत्थक केन्द्र कहा जाने लगा, उसमें काम करने के बाद इस केन्द्र के अध्यक्ष पद पर भी कई वर्षों तक आसीन रहे। तत्पश्चात 1998 में वहां से सेवानिवृत्त होने पर अपना नृत्य विद्यालय कलाश्रम भी दिल्ली में ही खोला। इनको उनके चाचाओं लच्छू महाराज एवं शंभु महाराज से प्रशिक्षण मिला, तथा अपने जीवन का प्रथम गायन इन्होंने सात वर्ष की आयु में दिया। 20 मई, 1947 को जब ये मात्र 9 वर्ष के ही थे, इनके पिता का स्वर्गवास हो गया। परिश्रम के कुछ वर्षोपरान्त इनका परिवार दिल्ली में रहने लगा। बिरजू महाराज ने मात्र 13 वर्ष की आयु में ही नई दिल्ली के संगीत भारती में नृत्य की शिक्षा देना आरम्भ कर दिया था। उसके बाद उन्होंने दिल्ली में ही भारतीय कला केन्द्र में सिखाना आरम्भ किया।
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बिरजू महाराज की ख्याति फिल्मी दुनिया तक भी पहुंची और इन्होंने सत्यजीत राय की फिल्म शतरंज के खिलाड़ी की संगीत रचना की, तथा उसके दो गानों पर नृत्य के लिये गायन भी किया। इसके अलावा वर्ष 2002 में बनी हिन्दी फिल्म देवदास में एक गाने ‘काहे छेड़ छेड़ मोहे’ का नृत्य संयोजन भी किया। इसके अलावा अन्य कई हिन्दी फिल्मों जैसे डेढ़ इश्किया, उमराव जान तथा संजय लीला भंसाली निर्देशित बाजी राव मस्तानी में भी कत्थक नृत्य के संयोजन किये। दिल तो पागल है, गदर एक प्रेम कथा जैसी हिट फिल्मों में अपने गायन और अपने नृत्य से इन फिल्मों में अपनी छाप छोड़ी। बिरजू महाराज को अपने क्षेत्र में आरम्भ से ही काफी प्रशंसा एवं सम्मान मिले, जिनमें 1986 में पद्म विभूषण, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार तथा कालिदास सम्मान प्रमुख हैं। इनके साथ ही इन्हें काशी हिन्दू विश्वविद्यालय एवं खैरागढ़ विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की मानद उपाधि मिली। 2016 में हिन्दी फिल्म बाजीराव मस्तानी में ‘मोहे रंग दो लाल’ गाने पर नृत्य-निर्देशन के लिये फिल्मफेयर पुरस्कार मिला, 2002 में लता मंगेश्कर पुरस्कार से भी नवाजा गया।
पंडित बिरजू महाराज का सृजन, नृत्य एवं संगीत मनोरंजन एवं व्यावसायिकता के साथ आध्यात्मिकता एवं सृजनात्मकता का आभामंडल निर्मित करने वाला है। उनका संगीत, नृत्य एवं गायन का उद्देश्य आत्माभिव्यक्ति, प्रशंसा या किसी को प्रभावित करना नहीं, अपितु स्वान्तः सुखाय, पर-कल्याण एवं ईश्वर भक्ति की भावना है। इसी कारण उनका शास्त्रीय गायन, नर्तन एवं स्वरों की साधना सीमा को लांघकर असीम की ओर गति करती हुई दृष्टिगोचर होती है। उनका गायन एवं नृत्य हृदयग्राही एवं प्रेरक है क्योंकि वह सहज एवं हर इंसान को आत्ममुग्ध करने, झकझोरने एवं आनन्द-विभोर करने में सक्षम है। भगवान श्रीकृष्ण की जीवंतता को साकार करने वाला यह महान् कलाकार सदियों तक अपनी शास्त्रीय-संगीत साधना एवं कथक नृत्य के बल पर हिन्दुस्तान की जनता पर अपनी अमिट छाप कायम रखेगा।
पंडित बिरजू महाराज की आवाज एवं नृत्य की तासीर ही है कि उन्हें सुनते एवं देखते हुए कोई शख्स तनावों की भीड़ में शांति महसूस करता तो किसी के अशांत मन के लिये वह समाधि का नाद होता है। उनका संगीत एवं नर्तन चंचल चित्त के लिये एकाग्रता की प्रेरणा होता तो संघर्ष के क्षणों में संतुलन का उपदेश। वह एक दिव्य एवं विलक्षण चेतना थी जो स्वयं संगीत एवं नृत्य रस में जागृत रहती और असंख्य श्रोताओं के भीतर ज्योति जलाने का प्रयास करती। हर जगह यह बेजोड़ गायक एवं कथक नर्तक शास्त्रीयता की राह पर चलते हुए भक्ति का एक लोकपथ सृजित करता था, धरती से ब्रह्माण्ड तक, संगीतप्रेमियों से वैज्ञानिकों तक, राजनीतिज्ञों से साधकों तक सबकी नजरें इस अलौकिक एवं विलक्षण संगीतज्ञ एवं कथक नृतक के गायन एवं नृत्य पर लगी रहती थी। आधुनिक संदर्भों में शास्त्रीय गायन कथक नृत्य के मूर्धन्य एवं सिद्ध उपासकों की कड़ी में पंडित बिरजू महाराज का देवलोकगमन होना एक महान संगीत एवं नृत्य परंपरा में गहरी रिक्तता एवं एक बड़े खालीपन का सबब है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने श्रद्धांजलि स्वर में कहा है कि भारतीय नृत्य कला को विश्वभर में विशिष्ट पहचान दिलाने वाले पंडित बिरजू महाराजजी के निधन से अत्यंत दुख हुआ है। उनका जाना संपूर्ण कला जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है।’ अपनी संजीदा संगीत साधना, मधुरोपासना गायिकी, घराने की कठिन कंठ-साधना, भक्ति का विहंगम आकाश रचने की उदात्त जिजीविषा, कथक नृत्य और वैष्णवता के आंगन में शरणागति वाली पुकार के लिए पंडित बिरजू महाराज हमेशा याद किए जाएंगे। भले ही मृत्यु उन्हें छिपा ले और महत्तर मौन उन्हें घेर ले, फिर भी उनके स्वर, नृत्य एवं संगीत का नाद इस धरती को सुकोमलता का अहसास कराता रहेगा। प्रेषकः
- ललित गर्ग
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