Aruna Asaf Ali Death Anniversary: अरुणा आसफ ने देश की आजादी में दिया था अहम योगदान
आज ही के दिन यानी की 29 जुलाई को शिक्षिका, राजनीतिक कार्यकर्ता और प्रकाशक और स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाली अरुणा आसफ अली का निधन हो गया था। अरूणा व्यक्तिगत सत्याग्रह के दौरान साल 1930, 1932 और 1941 में जेल गईं।
वर्तमान समय में महिलाएं हर क्षेत्र में अपना परचम लहरा रही हैं। महिलाओं की भागदारी सिर्फ घर की चारदीवारी तक ही नहीं, बल्कि शिक्षा, मनोरंजन, खेल, रक्षा और स्वास्थ्य समेत हर क्षेत्र में बढ़ रही है। महिलाओं को भी समान शिक्षा और नौकरी के अवसर मिल रहे हैं। अब महिलाएं आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित हो रही हैं। लेकिन जहां देश की आजादी से पहले भारत को अंग्रेजों से स्वतंत्र कराने के लिए देशवासी संघर्ष कर रहे थे। तब भी महिलाएं सहभागिता में अहम भूमिका निभा रही थीं।
अरुणा आसफ अली शिक्षिका, राजनीतिक कार्यकर्ता और प्रकाशक थीं। उन्होंने देश के स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन में मुख्य भूमिका निभाने वाली महिलाओं में एक अरुणा आसफ अली भी थीं। बता दें कि आज ही के दिन यानी की 29 जुलाई को कोलकाता में अरूणा असफ अली का निधन हो गया था। आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर अरूणा आसफ अली के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और शिक्षा
तात्कालिक पंजाब के कालका (वर्तमान हरियाणा) नाम के स्थान पर एक बंगाली परिवार में 16 जुलाई 1909 को अरुणा आसफ अली का जन्म हुआ था। ब्राह्मण परिवार में जन्मी इस बच्ची का नाम आरुणा गांगुली रखा गया था। अरुणा ने अपनी शुरूआती शिक्षा नैनीताल से पूरी की और आगे की शिक्षा के लिए वह लाहौर चली गईं। वह बचपन से ही पढ़ाई में तेज और कुशाग्र बुद्धि की थी। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद वह शिक्षिका बन गईं और कोलकाता के गोखते मेमोरियल कॉलेज में पढ़ाने लगीं।
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स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
इसी दौरान साल 1921 में अरुणा गांगुली ने इलाहाबाद कांग्रेस पार्टी के नेता आसफ अली से प्रेम विवाह कर लिया। आसफ अली अरूणा से उम्र में करीब 21 साल बड़े थे। इसके बाद उन्होंने देश के स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया। साल 1930, 1932 और 1941 में अरूणा व्यक्तिगत सत्याग्रह के दौरान जेल गईं। वहीं साल 1942 में जब 'भारत छोड़ो आंदोलन' के दौराम नेहरू, महात्मा गांधी और तमाम कांग्रेस नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया तो अरुणा आसफ अली ने कांग्रेस के मुंबई अधिवेशन में भाग लिया।
जिसके अगले दिन गोवालिया टैंक मैदान (आजाद मैदान) में अरुणा ने कांग्रेस का झंडा फहराया था। इस दौरान उन्होंने तीन साल तक भूमिगत रहते हुए आंदोलन किया। लेकिन जब ब्रिटिश पुलिल उन्हें गिरफ्तार करने में नाकाम रही तो उनकी संपत्ति जब्त कर बेच दी गई। देश की आजादी के बाद अरूणा राजनीति में पूरी तरह से सक्रिय हो गईं और साल 1958 में वह दिल्ली की मेयर नियुक्त की गईं।
इस दौरान उन्होंने एक मीडिया पब्लिशिंग हाउस की भी स्थापना की। अरूणा का एक परिचय यह भी है कि वह अमेरिका में भारत के प्रथम राजदूत की पत्नी थीं। इसके बाद उन्होंने लोहिया के साथ कांग्रेस की मासिक पत्रिका 'इंकलाब' का संपादन शुरू किया। वहीं ऊषा मेहता के साथ कांग्रेस के एक गुप्त रेडियो स्टेशन प्रसारण करने की शुरूआत की। अरुणा को अंतरराष्ट्रीय लेनिन पुरस्कार से नवाजा गया। इसके अलावा ऑर्डर ऑफ लेनिन और जवाहर लाल नेहरु पुरस्कार, पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।
निधन
कोलकाता में 87 साल की उम्र में 29 जुलाई 1996 को अरुणा आसफ अली का निधन हो गया। उनके निधन के बार अरुणा को भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया।
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