Birthday Special। भाजपा के संकट मोचक थे अरुण जेटली, मोदी सरकार के कई फैसलों में रही थी अहम भूमिका
राजनीतिक जीवन में अरुण जेटली के कद का इस बात से भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब इंदिरा गांधी के खिलाफ जेपी आंदोलन शुरू हुआ तो उन्हें कमिटी फॉर यूथ एंड स्टूडेंट ऑर्गेनाइजेशन का संयोजक बनाया गया। वह एबीवीपी के सक्रिय राजनीतिक चेहरा बनकर उभर चुके थे।
केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार है। नरेंद्र मोदी किस सरकार ने सरकार ने कई बड़े फैसले लिए हैं। 2014 से 2019 के बीच मोदी सरकार के बड़े फैसलों में जिस इंसान की भूमिका सबसे ज्यादा मानी जाती रही, वह नाम अरुण जेटली का था। अरुण जेटली जितने अच्छे वक्ता थे, उतना ही बेहतर राजनीति को भी समझते थे। राजनीति की बारीकियों पर उनकी हमेशा पैनी नजर रहती थी और यही उन्हें सबसे अलग बनाती थी। भाजपा की बात करें तो पार्टी ने फिलहाल 2 युग को देखा है। एक युग अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी का था तो दूसरा नरेंद्र मोदी और अमित शाह का। दोनों ही युग में एक व्यक्ति जो सबसे कॉमन रहा, वह अरुण जेटली ही थे। जितनी स्वीकार्यता अटल-आडवाणी के युग में थी, उतनी ही स्वीकार्यता मोदी-शाह के युग में ही रही। मास लीडर नहीं होने के बावजूद भी सरकार की नीतियों को आम लोगों तक कैसे पहुंचाया जाए, इसमें अरुण जेटली की भूमिका हमेशा महत्वपूर्ण रही। अरुण जेटली जब राज्यसभा में विपक्ष के नेता थे तब भी उन्होंने आम लोगों मुद्दे उठाए और सरकार को जबरदस्त तरीके से घेरा।
अरुण जेटली अपने हाजिर जवाबी से भी विरोधियों को मात देने में कामयाब रहते थे। उनके तर्क भी ऐसे होते थे जिसका काट निकाल पाना विरोधियों के बस में भी नहीं था। भाजपा में होने के बाद भी उनकी दूसरे पार्टी के नेताओं से दोस्ती के चर्चे लुटियंस दिल्ली में खूब सुने जा सकते हैं। भाजपा में रहकर भाजपा के पक्ष को मजबूती से लोगों के बीच कैसे रखना है, शायद अरुण जेटली ने इसको भी बखूबी निभाया। यही कारण है कि वह पार्टी के लिए हमेशा संकटमोचक की भूमिका में बने रहे। पार्टी के समक्ष जब भी कोई चुनौतियां आई, अरुण जेटली ने उसे अपनी सूझबूझ से सुलझाया। अरुण जेटली की कहानी पाकिस्तान से भारत में आकर बसे एक परिवार से शुरू होती है। उनका परिवारिक बैकग्राउंड राजनीतिक नहीं था लेकिन उन्होंने अपने दम पर राजनीति में बड़े मुकाम हासिल किए। जेटली का जन्म 28 दिसंबर 1952 को दिल्ली में हुआ था। उनके पिता का नाम किशन जेटली था जो बड़े वकील थे। ऐसे में अरुण जेटली को वकालत विरासत में मिली थे।
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जेटली की शिक्षा दीक्षा दिल्ली में ही हुई। जेटली पढ़ाई में तो औसत थे लेकिन भाषण देने की कला उनमें कूट-कूट कर भरी हुई थी। शुरू में जेटली इंजीनियर बनना चाहते थे लेकिन बाद में उनका इरादा बदल गया। जेटली ने अपनी उच्च शिक्षा दिल्ली के ही श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से पूरी की जहां उनकी पहचान एक बेहतरीन डिबेटर के तौर पर भी थी। दिल्ली विश्वविद्यालय से ही उन्होंने अपनी वकालत की पढ़ाई पूरी की। पिता वकील थे इसलिए उनमें भी वकालत के गुण भरे हुए थे।
अरुण जेटली की राजनीतिक यात्रा
सही मायनों मे अरुण जेटली की राजनीतिक यात्रा 1974 मे शुरू हुई, जब उन्होंने देश की सबसे शक्तिशाली राजनीतिक पार्टी कांग्रेस और उसके छात्र संगठन नेशनल स्टूडेंट यूनियन ऑफ इंडिया के वर्चस्व के दौर में कॉलेज में भारतीय जनता पार्टी के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के बैनर तले चुनाव लड़ा, और जीत हासिल की। शुरू में जेटली का झुकाव वामपंथ की तरफ जरूर था पर बाद में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से प्रभावित होने के बाद वह इस से जुड़ गए। उन्होंने अपने कॉलेज में एनएसयूआई का वर्चस्व तोड़ा। वे इस दौर में भारतीय राजनीति के कद्दावर नेता जय प्रकाश नारायण से खासे प्रभावित रहे। उन्होंने पांच दशक तक सक्रिय राजनीति की, अनेक पदों पर रहे, पर वे सदा दूसरों से भिन्न रहे। घाल-मेल से दूर। भ्रष्ट राजनीति में बेदाग। विचारों में निडर। टूटते मूल्यों में अडिग। घेरे तोड़कर निकलती भीड़ में मर्यादित। उनके जीवन से जुड़ी विधायक धारणा और यथार्थपरक सोच ऐसे शक्तिशाली हथियार थे जिसका वार कभी खाली नहीं गया। वे जितने राजनीतिक थे, उससे अधिक मानवीय एवं सामाजिक थे।
राजनीतिक जीवन में अरुण जेटली के कद का इस बात से भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब इंदिरा गांधी के खिलाफ जेपी आंदोलन शुरू हुआ तो उन्हें कमिटी फॉर यूथ एंड स्टूडेंट ऑर्गेनाइजेशन का संयोजक बनाया गया। वह एबीवीपी के सक्रिय राजनीतिक चेहरा बनकर उभर चुके थे। आपातकाल के दौरान अरुण जेटली ने अपनी गिरफ्तारी भी दी और खूब सुर्खियां भी बटोरी। वह करीब 19 महीने तक अंबाला और तिहाड़ जेल में रहे। जेल में रहने के दौरान ही उनकी मुलाकात बड़े-बड़े नेताओं से हुई। इन नेताओं में उनके राजनीतिक गुरु अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और संघ के बड़े नेता नानाजी देशमुख भी शामिल थे। जेल से रिहा होने के बाद उन्हें एबीवीपी का राष्ट्रीय सचिव बना दिया गया। 1979 में उन्होंने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गिरधारी लाल डोगरा की बेटी संगीता से शादी की। तब जेटली राजनीति में खुद को स्थापित करने के लिए संघर्ष कर रहे थे। फिर भी उनका कद राष्ट्रीय राजनीति में बड़ा हो गया था। उनकी शादी में अटल बिहारी वाजपेयी, इंदिरा गांधी, लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेता शामिल हुए थे। अरुण जेटली भाजपा के दूसरी पीढ़ी के नेता थे। शुरुआत में वह राम जेठमलानी के सहायक बनकर वकालत कर रहे थे। उनकी सभी पार्टियों में अच्छी दोस्ती थी। वह बीजेपी के लिए भी मुकदमे लड़ते थे। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के प्रचार अभियान का भी जिम्मा संभाला था। वीपी सिंह की सरकार ने उन्हें महज 37 साल की उम्र में अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल बना दिया था।
माना जाता है कि बाबरी विध्वंस के समय वह बीजेपी में जरूर थे पर सार्वजनिक रूप से इस मुद्दे पर पार्टी का बचाव नहीं करते थे। कुछ लोग यह भी कहते है कि उन्होंने भाजपा से दूरी बना ली थी। हालांकि अदालत के अंदर वह आडवाणी के वकील थे और पूरी निष्ठा के साथ उनका बचाव करते थे। यही कारण था कि वह आडवाणी के करीब हो गए और उन्हें बाद में पार्टी का महासचिव बना दिया गया। 1999 के आम चुनाव में अरुण जेटली को बीजेपी का प्रवक्ता बनाया गया। यह वह दौर था जब टीवी चैनलों के बहस की शुरूआत हुई थी और जेटली मजबूती से पार्टी का पक्ष रखते थे। जेटली टीवी चैनलों के जरिए लोकप्रिय होने लगे। उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी सरकार में पहले सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री बनाया। जब राम जेठमलानी ने इस्तीफा दे दिया तो जेटली कानून मंत्री भी बन गए। जेटली को आडवाणी का करीबी माना जाता है पर वाजपेयी के साथ भी उनके रिश्ते सहज थे। वह 2000 से 2018 तक में गुजरात से राज्यसभा के सांसद रहे। 2018 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के सांसद चुने गए।
2014 में उन्होंने पहली बार अमृतसर से लोकसभा का चुनाव लड़ने का फैसला किया था। पार्टी ने उन्हें टिकट भी दिया पर सफलता नहीं मिल पाई। वे मोदी लहर के बावजूद भी 1 लाख वोटों से हार गए। वह क्रिकेट से भी जुड़े रहे और डीडीसीए के कई सालों तक अध्यक्ष रहे। जेटली खाने के बेहद शौकीन थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके राजनीतिक कद को देखते हुए 2014 में वित्त मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय जैसे बड़े मंत्रालयों की जिम्मेदारी सौंपी। माना जाता है कि अरुण जेटली के वित्त मंत्री रहते हुए कई ऐतिहासिक फैसले हुए जिसमें नोटबंदी हुआ, कालेधन पर नकेल कसने की कोशिश की गई, देश में जीएसटी लागू किया गया। अरुण जेटली 2009 से 2014 तक राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष में रहे। राजनीतिक जानकार यह मानते है कि अगर देश में नेता प्रतिपक्ष के कार्य को देखना है तो सुषमा स्वराज और अरुण जेटली से सीखा जा सकता है। लंबे राजनीतिक सफर के दौरान जेटली पर कई आरोप भी लगे तो जेटली ने कई मुद्दों पर वाहवाही भी लूटी। अपनी पार्टी के वो एक समर्पित कार्यकर्ता थे जिनकी लगन और तपस्या ने पार्टी को शिखर तक पहुंचाया।
- अंकित सिंह
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