'जनता की हुई जीत', जाति आधारित जनगणना पर बोले तेजस्वी यादव, साइंटिफिक डेटा के आधार पर योजनाबद्ध तरीके से कर सकेंगे काम
राजद नेता तेजस्वी यादव ने जाति आधारित गणना के सवाल पर कहा कि यह लालू यादव जी और बिहार की जनता की जीत है। सभी ने समर्थन जताया है। यह ऐतिहासिक कदम है। वंचित, शोषित और जो भी लोग अंतिम पायदान पर हैं उनको मुख्यधारा में लाने के लिए अहम था।
पटना। बिहार सरकार ने जाति आधारित जनगणना पर मुहर लगा दी है। आपको बता दें कि नीतीश कुमार मंत्रिमंडल ने प्रदेश में जाति आधारित जनगणना कराने के लिए अपनी स्वीकृति दे दी है। इसके लिए 500 करोड़ रुपए का आवंटन भी किया गया है और सर्वेक्षण पूरा करने के लिए 23 फरवरी की समय सीमा निर्धारित की गई है। इसी बीच राजद नेता तेजस्वी यादव का बयान सामने आया। जिसमें उन्होंने इसे लालू प्रसाद यादव और बिहार की जनता की जीत बताया है।
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बिहार की जनता की हुई जीत
समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, राजद नेता तेजस्वी यादव ने जाति आधारित गणना के सवाल पर कहा कि यह लालू यादव जी और बिहार की जनता की जीत है। सभी ने समर्थन जताया है। यह ऐतिहासिक कदम है। वंचित, शोषित और जो भी लोग अंतिम पायदान पर हैं उनको मुख्यधारा में लाने के लिए अहम था। हमारे पास साइंटिफिक डेटा होगा और योजनाबद्ध तरीके से काम कर सकेंगे।
It's a victory for Lalu ji & people of Bihar. This has been our cause from beginning, all of us have brought it to the final stage. All political parties agreed with our path. We thank them. It's a historic step: RJD leader Tejashwi Yadav on caste-based survey approved for Bihar pic.twitter.com/OszFkqfQDs
— ANI (@ANI) June 3, 2022
उन्होंने कहा कि साइंटिफिक डेटा के आधार पर तय किया जा सकेगा कि छूटे हुए लोग कौन हैं और किस जाति के लिए क्या करना है। इसी बीच उन्होंने बताया कि सभी राजनीतिक दल हमारे बातों से सहमत थी। दरअसल, पिछले कुछ वक्त से बिहार में जाति आधारित जनगणना को लेकर जमकर सियासत हो रही था और इस मामले को लेकर राजद और जदयू एक स्वर में अपनी आवाज को बुलंद कर रहे थे। हालांकि अब सर्वदलीय बैठक के बाद मंत्रिमंडल की भी मुहर लग चुकी है।
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गौरतलब है कि बिहार विधानमंडल के दोनों सदनों द्वारा जातीय गणना के पक्ष में साल 2018 और 2019 में दो सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किए गए थे। नीतीश कुमार और मुख्य विपक्षी पार्टी राजद का तर्क रहा है कि विभिन्न सामाजिक समूहों का एक नया अनुमान आवश्यक है क्योंकि पिछली जातीय जनगणना 1921 में हुई थी।
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