योगी आदित्यनाथ के शिक्षा सलाहकार ने कहा- उप्र की शिक्षा प्रणाली को एनईपी के अनुरूप व्यवस्थित किया जाएगा
उत्तर प्रदेश की शिक्षा प्रणाली को राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 (एनईपी-2020) के अनुरूप व्यवस्थित किया जाएगा और विद्यार्थियों को रोजगार परक समग्र शिक्षा प्रदान की जाएगी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शिक्षा सलाहकार प्रोफेसर धीरेंद्र पाल सिंह ने रविवार को पीटीआई- से बातचीत में यह जानकारी दी।
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की शिक्षा प्रणाली को राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 (एनईपी-2020) के अनुरूप व्यवस्थित किया जाएगा और विद्यार्थियों को रोजगार परक समग्र शिक्षा प्रदान की जाएगी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शिक्षा सलाहकार प्रोफेसर धीरेंद्र पाल सिंह ने रविवार को पीटीआई- से बातचीत में यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के क्रियान्वयन से विभिन्न शिक्षण संस्थानों के बीच बेहतर तालमेल स्थापित हो सकेगा, जो शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए जरूरी है।
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विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर सिंह ने कहा, “मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश में शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने को लेकर प्रयासरत हैं। वह चाहते हैं कि राज्य के सभी विद्यार्थियों को गुणवत्ता परक शिक्षा प्राप्त हो। मुख्यमंत्री का मानना है कि विद्यार्थियों के चरित्र के विकास पर ध्यान दिए बगैर और उनमें शुरुआत से ही राष्ट्रवाद की भावना विकसित किए बिना देश का विकास नहीं हो सकता।” उन्होंने कहा, “राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 मुख्य रूप से समग्र शिक्षा पर केंद्रित है और इसमें प्राविधिक तथा रुचि आधारित विषयों को शामिल किया गया है। इन विषयों का अध्ययन करने से छात्रों को रोजगार बाजार की मांग के अनुरूप अपना कौशल विकसित करने में निश्चित रूप से मदद मिलेगी।” प्रोफेसर सिंह ने बताया कि छात्रों को विज्ञान, वाणिज्य और कला से जुड़े विषयों के साथ-साथ अपनी रुचि के हिसाब से कोई दूसरा विषय चुनने का भी विकल्प मिलेगा।
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उन्होंने कहा, उदाहरण के तौर पर अगर कोई छात्र भौतिक विज्ञान के साथ गणित की पढ़ाई कर रहा है तो वह संगीत या दर्शनशास्त्र जैसे विषयों को भी अपने एक विषय के तौर पर चुन सकता है। प्रोफेसर सिंह ने हालांकि यह भी कहा कि इससे छात्रों को ज्यादा विषय चुनने का अवसर प्राप्त होगा, लेकिन शिक्षण संस्थाओं के सामने चुनौती भी खड़ी होगी। उन्होंने कहा कि राज्य के उच्च शिक्षण संस्थानों को राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 की आवश्यकताओं के अनुरूप अपनी प्रणालियों में बदलाव लाने की जरूरत है। प्रोफेसर सिंह ने कहा, “शैक्षणिक संस्थानों को स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय स्तर पर विभाजित किया गया है, जिससे ज्ञान का आदान-प्रदान रुकता है और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मुहैया कराने की संभावनाएं सीमित हो जाती हैं। इस समस्या को राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 की मदद से संस्थानों के बीच संबंधों और तालमेल में सुधार लाकर दूर किया जा सकता है।”
प्रोफेसर सिंह का मानना है कि शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए उच्च शिक्षण संस्थानों को शिक्षा मंत्रालय की राष्ट्रीय आकलन एवं प्रत्यायन परिषद (एनएएसी) और नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) की रैंकिंग के लिए आवेदन करना चाहिए। उन्होंने दावा किया कि इन दोनों इकाइयों की रैंकिंग से शिक्षण संस्थानों को अपना आकलन करने और सुधार के लिए जरूरी बदलाव लाने का अवसर मिलेगा। प्रोफेसर सिंह ने कहा, “हमारा लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि आगामी तीन वर्षों में राज्य के सभी उच्च शिक्षण संस्थान एनएएसी और एनआईआरएफ रैंकिंग के लिए आवेदन करें। अच्छी रैंकिंग प्राप्त करने वाले संस्थान अन्य संस्थानों को बेहतर बनाने में उनकी मदद करेंगे।”
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के तहत शिक्षकों को विभिन्न जिम्मेदारियां पूरी करनी होंगी, जिनके लिए उन्हें प्रशिक्षण देना और क्षमता निर्माण करना जरूरी होगा। मुख्यमंत्री के शिक्षा सलाहकार ने कहा कि उनका लक्ष्य राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के क्रियान्वयन की प्रक्रिया को व्यवस्थित करने के लिए प्राथमिक शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा, उच्च शिक्षा और प्राविधिक शिक्षा तक पहुंच बनाना है। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के अनेक लक्ष्य हैं, जिनमें स्कूलों और उच्च शिक्षण संस्थानों में सकल नामांकन अनुपात को बढ़ाना तथा हर जिले में एक-एक विश्वस्तरीय बहु-अनुशासनिक शिक्षण एवं शोध विश्वविद्यालय स्थापित करना शामिल है।
प्रोफेसर सिंह ने कहा, “मुख्यमंत्री का मानना है कि उच्च शिक्षा में उस राज्य या क्षेत्र से जुड़े मुद्दे भी शामिल किए जाने चाहिए, जहां संबंधित शिक्षण संस्थान मौजूद है। फिलहाल यह पहलू शिक्षा व्यवस्था से गायब है या फिर इसकी अनदेखी की गई है।” उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालयों को शिक्षण संस्थानों और प्रयोगशालाओं से जोड़ने की भी योजना है, ताकि संवाद बेहतर हो सके और ज्ञान का आदान-प्रदान भी संभव हो पाए। प्रोफेसर सिंह ने कहा कि पहले चरण में विश्वविद्यालयों को प्रदेश में जगह-जगह स्थित वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के संस्थानों से जोड़ा जाएगा।
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