तीरथ सिंह रावत की कुर्सी पर गहराया संकट, बीजेपी के पास क्या है दूसरा विकल्प ?
उत्तराखंड में राजनीतिक संकट गहराने लगा है और इसके पीछे की वजह राज्य के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत है। दरअसल तीरथ सिंह रावत को 6 महीने के अंदर विधानसभा का निर्वाचित सदस्य चुना है लेकिन कांग्रेस का कहना है कि तीरथ सिंह रावत अब चुनाव नहीं लड़ सकते। राज्य में अब इसी बात को सियासी सरगर्मी बढ़ने लगी है।
उत्तराखंड में राजनीतिक संकट गहराने लगा है और इसके पीछे की वजह राज्य के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत हैं। दरअसल, तीरथ सिंह रावत को 6 महीने के अंदर विधानसभा का निर्वाचित सदस्य होना है लेकिन कांग्रेस का कहना है कि तीरथ सिंह रावत अब चुनाव नहीं लड़ सकते। राज्य में अब इसी बात को सियासी सरगर्मी बढ़ने लगी है।
आपको बता दें कि तीरथ सिंह रावत ने 10 मार्च को बीजेपी राज्य विधायक दल के रूप में शपथ ली थी। ऐसे में रावत के पास उपचुनाव में विधायक के रूप में चुने जाने के लिए 10 सितंबर तक का समय है लेकिन कोरोना वायरस की वजह से राज्य में होने वाले उपचुनावों को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है कि क्या उस समय सीमा के भीतर उपचुनाव कराया जा सकता है और या नहीं।
क्या कहता है सविंधान?
अब आप पहले ये जान लीजिए कि कानून इस मसले पर क्या कहता है? संविधान के अनुच्छेद 164(4) के अनुसार, "एक मंत्री जो लगातार छह महीने की अवधि के लिए राज्य के विधानमंडल का सदस्य नहीं है, उस अवधि की समाप्ति पर मंत्री नहीं रहेगा"। इसलिए, मुख्यमंत्री के रूप में बने रहने के लिए, रावत को 10 सितंबर से पहले विधायक के रूप में चुना जाना है।
वहीं उत्तराखंड में मार्च 2022 में पहले से ही चुनाव होने हैं। अब अगर जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 151ए पर नजर डालें तो इसके तहत आम चुनाव के लिए एक साल का समय होने पर ही चुनाव नहीं सकते हैं और विधानसभा का कार्यकाल पूरा होने में महज 9 महीने ही बचे हैं।
बीजेपी पद के लिए किसी और का कर सकती है चयन
आपको बता दें कि तीरथ सिंह रावत, त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह पर राज्य के मुख्यमंत्री बने थे। तीरथ सिंह रावत साल 2019 में हुए लोकसभा चुनावों में गढ़वाल से लोकसभा के लिए चुने गए थे। उन्होंने अभी तक लोकसभा से इस्तीफा नहीं दिया है और लोकसभा की वेबसाइट के अनुसार गढ़वाल के सांसद बने हुए हैं
वहीं बीजेपी के सूत्रों की मानें तो केंद्रीय नेतृत्व कानूनी और संवैधानिक विशेषज्ञों के साथ चर्चा कर रहा है। बीजेपी के एक नेता ने कहा, "एक सुझाव यह आया कि पार्टी शीर्ष पद के लिए किसी और को चुन सकती है क्योंकि उसी व्यक्ति के पद पर लौटने पर प्रतिबंध है।"
पिछले साल महाराष्ट्र में उत्पन्न हुई थी स्थिति
बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि “हाल के विधानसभा चुनावों के दौरान आलोचनाओं के बाद चुनाव आयोग और सरकार दोनों ही सावधानी बरत रहे हैं। ऐसे में स्थिति सामान्य होने के बाद ही चुनाव कराना संभव है। क्या इससे पहले भी देश के किसी राज्य में इस तरह की स्थिति उत्पन्न हुई हैं?
आपको बता दें कि पिछले साल महाराष्ट्र में इस तरह की स्थिति देखने को मिली थी। राज्य के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को राज्य विधानमंडल के लिए चुने जाने की आवश्यकता थी। महामारी की वजह से उपचुनाव को अनिश्चित बना दिया था। ठाकरे ने शुरू में एक प्रावधान का उपयोग करके खुद को विधान परिषद में नामांकित करने की कोशिश की, जो राज्यपाल को 12 सदस्यों को नामित करने की अनुमति देता है लेकिन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने इस कदम को रोक दिया था।
आखिर में ठाकरे द्वारा स्वयं को विधान परिषद के सदस्य के रूप में चुने जाने के साथ ही संकट का समाधान हो गया।
क्या कानून में कोई ऐसा अपवाद है जिसमें चुनाव कराना संभव हो?
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 चुनौतीपूर्ण स्थिति में एक और आयाम जोड़ती है। धारा 151ए संविधान के अनुच्छेद 164(4) की आवश्यकता को पूरा करने के लिए उपचुनाव कराने के लिए दो अपवादों की अनुमति देती है। इसमें कहा गया है कि उपचुनाव कराने की आवश्यकता नहीं है पहला अगर किसी रिक्ति के संबंध में सदस्य की शेष अवधि एक साल से कम है. दूसरा चुनाव आयोग केंद्र सरकार के परामर्श से प्रमाणित करता है कि उक्त अवधि के भीतर उपचुनाव कराना मुश्किल है।
वर्तमान उत्तराखंड विधानसभा का कार्यकाल, जो मार्च 2017 में शुरू हुआ था, समाप्त होने में एक वर्ष से भी कम समय है। इन दोनों विकल्पों का मतलब होगा कि रावत को बदलना होगा।
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