One Nation One Election से भारत को फायदा होगा या नुकसान, वरिष्ठ अधिवक्ता Ashwini Upadhyay से समझिये
मोदी सरकार ने इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए पूर्व राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन कर दिया है। कमेटी कैसे इस मुद्दे का हल निकालेगी यह देखने वाली बात होगी क्योंकि लोकसभा चुनावों में अब छह-सात महीनों का ही समय बचा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार कह चुके हैं कि देश में हर समय कहीं ना कहीं चुनाव चलते रहने की वजह से देश का बड़ा नुकसान होता है इसलिए उनका जोर एक देश एक चुनाव के सिद्धांत पर रहा है। देखा जाये तो प्रधानमंत्री का सोचना एकदम सही है क्योंकि अक्सर आदर्श चुनाव आचार संहिता लगने की वजह से फैसले लटक जाते हैं तो कई बार ऐसा भी देखने में आता है कि राजनीतिक दलों के नेताओं को चुनावी दौरों से ही फुर्सत नहीं मिल पाती है कि वह विकास कार्यों पर ठीक से ध्यान दे पायें। इसके अलावा भारत प्रगति पथ पर जिस तेजी से कदम बढ़ा रहा है उसको देखते हुए यह और भी जरूरी हो जाता है कि हम चुनावों के चक्करों में ही उलझे रहने की बजाय इस लोकतांत्रिक दायित्व को पांच साल में एक बार निभाएं और फिर काम पर लग जायें।
लेकिन सवाल यह है कि क्या यह काम इतना आसान है? मोदी सरकार ने इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए पूर्व राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन कर दिया है। कमेटी कैसे इस मुद्दे का हल निकालेगी यह देखने वाली बात होगी क्योंकि लोकसभा चुनावों में अब छह-सात महीनों का ही समय बचा है। इसके अलावा पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव भी जल्द ही कराये जाने हैं। लेकिन यहां यह भी ध्यान रखना होगा कि औपचारिक रूप से कमेटी का गठन अभी हुआ है लेकिन सरकार यह प्रस्ताव देश के समक्ष रख चुकी है। 2019 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोबारा जीत कर आये तो उन्होंने उसी समय एक देश, एक चुनाव की बात पर आगे बढ़ने का दृष्टिकोण प्रस्तुत किया था। माना जाता है कि इस मुद्दे पर चुनाव आयोग, नीति आयोग और विधि आयोग ने पूर्व में चर्चा भी की है, सत्तारुढ़ भाजपा समेत कई राजनीतिक दल भी इसके पक्ष में हैं, हालांकि बहुत से विपक्षी दल 'एक देश, एक चुनाव' नहीं चाहते।
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वैसे जो लोग इस प्रस्ताव का विरोध कर रहे हैं उन्हें यह समझना चाहिए कि मोदी ऐसा कोई काम नहीं करने जा रहे हैं जोकि देश में पहले नहीं होता था। एक देश, एक चुनाव के प्रस्ताव के फायदे समझने की बजाय इसका विरोध कर रहे लोगों को समझना चाहिए कि साल 1952, 1957, 1962 और 1967 में देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव होते थे। एक साथ चुनाव का यह सिलसिला तब टूटा था जब 1968-69 में कुछ राज्यों की विधानसभाएं समय से पहले भंग कर दी गयी थीं।
बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि एक देश एक चुनाव से देश को फायदे ही फायदे होंगे। उन्होंने कहा कि दुनिया के जितने भी विकसित देश हैं वह हमेशा चुनावी प्रक्रिया में ही नहीं उलझे रहते बल्कि एक बार में सरकार चुन कर देश को आगे बढ़ाने में लग जाते हैं।
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