अपनों की महफिल में बेगाने क्यों हैं कन्हैया कुमार? सवाल कई पर अभी जवाब नहीं
भले ही कारण जो भी रही हो, पर यह तो सच है कि उनकी अपनी पार्टी के नेताओं के साथ अनबन की खबरें लगातार आती रही है। यह विवाद उस समय सार्वजनिक हो गया जब कन्हैया के खिलाफ उनकी पार्टी ने निंदा प्रस्ताव पास कर दिया।
छात्र राजनीति से मुख्यधारा की राजनीति में आने वाले कन्हैया कुमार के लिए हाल फिलहाल में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। कभी अपनी पार्टी और उसकी विचारधारा को लेकर सुर्खियों में रहने वाले कन्हैया आजकल अपनी ही पार्टी में हाशिए पर चल रहे हैं। आलम यह हो गया है कि कन्हैया का बार-बार अपनी ही पार्टी के नेताओं के साथ उनका विवाद होने लगा है। सवाल यही उठता है कि आखिर इस विवाद की जड़ क्या है? क्या कन्हैया खुद को पार्टी से भी बड़ा मानने लगे हैं? या कन्हैया कुमार के बढ़ते कद को लेकर पार्टी के अन्य नेता खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं? भले ही कारण जो भी रही हो, पर यह तो सच है कि उनकी अपनी पार्टी के नेताओं के साथ अनबन की खबरें लगातार आती रही है। यह विवाद उस समय सार्वजनिक हो गया जब कन्हैया के खिलाफ उनकी पार्टी ने निंदा प्रस्ताव पास कर दिया।
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इन विवादों के बीच कन्हैया की जदयू नेताओं से मुलाकात आग में घी डालने का काम कर दिया। हालांकि जदयू और फिर कन्हैया कुमार की भी तरफ से इस बात को लेकर दावा किया गया कि यह मुलाकात राजनीतिक नहीं थी बल्कि क्षेत्र से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की गई थी। सीपीआई नेता डी राजा ने भी इस मुलाकात को सामान्य ही बताया। जेएनयू के छात्र आंदोलन से सुर्खियां बटोरने के बाद कन्हैया कुमार मुख्यधारा की राजनीति में आएं। अपनी पार्टी की ओर से लोकसभा चुनाव में बेगूसराय से मैदान में उतरे। हालांकि उन्हें भाजपा के वरिष्ठ नेता गिरिराज सिंह से करारी शिकस्त मिली। जब कन्हैया के खिलाफ पार्टी में निंदा प्रस्ताव आया तो उस समय यह कहा गया कि कन्हैया पार्टी के अंदर सिर्फ अपना प्रभुत्व चाहते हैं। बिहार विधानसभा चुनाव के समय भी पार्टी कार्यकर्ताओं से कन्हैया की तीखी बहस की खबर आई थी।
एक बात और है कि बिहार चुनाव में कन्हैया की पार्टी महागठबंधन का हिस्सा थी। लेकिन कन्हैया कभी चुनाव प्रचार में नहीं दिखे। इससे पहले कन्हैया लगातार अपनी पार्टी के लिए प्रचार प्रसार करते रहे हैं। कन्हैया का अपनी पार्टी से नाराजगी का आलम यह है कि उन्होंने अपनी ही पार्टी को कन्फ्यूजन पार्टी ऑफ इंडिया करार दिया। बिहार में गठबंधन धर्म के हिसाब से देखें तो सीपीआई के लिए कन्हैया कुमार कुछ ज्यादा फायदेमंद नहीं है। कन्हैया का आरजेडी के साथ अच्छा रिश्ता नहीं है। आरजेडी की ओर से भी कहीं ना कहीं यह संकेत भी दिया जा चुका है कन्हैया कुमार को लेकर उनकी पार्टी कभी भी सहज नहीं है।
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इसका कारण यह भी है कि की आरजेडी को लगता है कि कहीं तेजस्वी यादव की तुलना में कन्हैया कुमार का कद बड़ा ना हो जाए। वहीं, कन्हैया कुमार की पार्टी की ओर से यह दावा किया गया कि वह लगातार आदेशों का उल्लंघन कर रहे थे और पार्टी के अंदर अपनी मनमानी कर रहे थे। पार्टी ने कहा कि झारखंड विधानसभा चुनाव में प्रचार करने के लिए भेजा जा रहा था तो उन्होंने इससे इनकार कर दिया। जब सीएए के खिलाफ आंदोलन चल रहा था तब कन्हैया लगातार बिहार में सक्रिय थे। लेकिन विधानसभा चुनाव के वक्त वह इससे दूर ही रहें। सवाल ये है कि आखिर कन्हैया का कद यहां से बढ़ेगा या घटेगा? क्या कन्हैया अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए किसी और पार्टी के शरण में तो नहीं जा रहे हैं? क्या भाजपा के ऊपर अतिरिक्त दबाव बनाने के लिए कहीं जदयू कन्हैया को अपने खेमे में तो लाने की कोशिश नहीं कर रही? सवाल कई हैं पर इसका जवाब सिर्फ कन्हैया ही दे सकते हैं।
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