हार तय है, मगर फिर भी क्यों मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ले आया विपक्ष?
हम आपको बता दें कि विपक्षी दलों के प्रस्तावित अविश्वास प्रस्ताव का संख्याबल के लिहाज से विफल होना तय है लेकिन उनकी दलील है कि वे चर्चा के दौरान मणिपुर मुद्दे पर सरकार को घेरकर ‘अवधारणा’ बनाने की लड़ाई जीत जाएंगे।
क्या विपक्ष प्रधानमंत्री की बात मानता है? यह सवाल इसलिए उठा है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2018 में विपक्ष को शुभकामना दी थी कि वह 2023 में भी उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाये। इसलिए अब जब विपक्ष केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया है तो प्रधानमंत्री का पुराना भाषण वायरल हो रहा है। हम आपको बता दें कि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कांग्रेस सदस्य गौरव गोगोई द्वारा सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को चर्चा के लिए स्वीकृति दे दी है। विपक्षी गठबंधन (इंडिया) के घटक दलों की मंगलवार को हुई बैठक में केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के बारे में फैसला हुआ था। बुधवार को जब लोकसभा का सत्र आरंभ हुआ तो स्पीकर ओम बिरला ने कहा कि प्रस्ताव को स्वीकृति दी जाती है। उन्होंने कहा कि सभी पक्षों से बातचीत के बाद अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा का समय तय किया जायेगा। हम आपको बता दें कि कांग्रेस के अलावा तेलंगाना की सत्तारुढ़ पार्टी बीआरएस ने भी अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया था।
इस बीच, केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की विपक्षी दलों की योजना के बीच 2018 में इस तरह के प्रस्ताव पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जवाब सोशल मीडिया पर खूब प्रसारित हो रहा है जिसमें उन्होंने विपक्ष का उपहास करते हुए कहा था कि उन्हें 2023 में भी ऐसा ही प्रस्ताव लाने की तैयारी करनी चाहिए। उन्होंने लोकसभा में 2018 में लाए गए अविश्वास प्रस्ताव का जवाब देते हुए कहा था, ‘‘मैं आपको अपनी शुभकामनाएं देना चाहता हूं कि आप इतनी तैयारी करें कि 2023 में फिर से अविश्वास प्रस्ताव लाने का आपको मौका मिले।’’
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अस्थिरता फैलाती है कांग्रेस!
इसके अलावा कांग्रेस किस तरह अविश्वास प्रस्ताव के जरिये देश में अस्थिरता फैलाने का प्रयास करती है। इस बारे में प्रधानमंत्री मोदी का एक भाषण भी खूब वायरल हो रहा है। प्रधानमंत्री ने कहा था कि कांग्रेस ने हमेशा से अविश्वास प्रस्ताव की संवैधानिक व्यवस्था का दुरुपयोग किया है। उन्होंने चौधरी चरण सिंह, चंद्रशेखर, इंद्र कुमार गुजराल, एचडी देवेगौड़ा तथा कई अन्य पूर्व प्रधानमंत्रियों का उदाहरण देते हुए कहा था कि कैसे कांग्रेस ने सरकारों को गिराकर देश में अस्थिरता का वातावरण पैदा किया।
हारी हुई लड़ाई क्यों लड़ रहा है विपक्ष?
हम आपको बता दें कि विपक्षी दलों के प्रस्तावित अविश्वास प्रस्ताव का संख्याबल के लिहाज से विफल होना तय है लेकिन उनकी दलील है कि वे चर्चा के दौरान मणिपुर मुद्दे पर सरकार को घेरकर ‘अवधारणा’ बनाने की लड़ाई जीत जाएंगे। विपक्षी दलों ने दलील दी है कि यह मणिपुर मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को संसद में बोलने के लिए विवश करने की रणनीति भी है। दरअसल सरकार इस बात पर जोर दे रही है कि मणिपुर की स्थिति पर चर्चा का जवाब केवल केंद्रीय गृह मंत्री देंगे। मणिपुर के मुद्दे को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर संसद के भीतर बयान देने का दबाव बनाने के कई विकल्पों पर विचार करने के बाद यह फैसला किया गया कि अविश्वास प्रस्ताव ही सबसे कारगर रास्ता होगा, जिसके जरिये सरकार को इस मुद्दे पर चर्चा के लिए विवश किया जा सकेगा।
कांग्रेस का कहना है कि पूरे देश का ध्यान मणिपुर पर ‘‘अविश्वास प्रस्ताव’’ पर होगा और इससे अवधारणा के खेल में विपक्ष को मदद मिल सकती है। हालांकि देखा जाये तो अविश्वास प्रस्ताव का भविष्य पहले से तय है क्योंकि संख्याबल स्पष्ट रूप से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पक्ष में है और विपक्षी समूह के निचले सदन में 150 से कम सदस्य हैं।
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