Gujarat Elections 2022: जब चुनावी लहरों ने पलट दी थी गुजरात की सियासी बाजी, राउंड वन में आया 'रावण', क्या इससे बदलेगा ये रण?
कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का बयान अब कांग्रेस के गले की फांस बनता हुआ नजर आ रहा है। बीजेपी इस मुद्दे को लेकर पूरी तरह से हमलावर हो गई है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जब चुनावी समर में उतरे तो करारा हमला बोलते हुए कहा कि प्रधानमंत्री के लिए इस तरह के शब्दों का प्रयोग किया जाना ये बताता है कि उनकी मंशा क्या है।
''यही रात अंतिम यही रात भारी बस एक रात की अब कहानी है सारी''
गुजरात के रण में पहले चरण के लिए वोटिंग का काउंटडाउन शुरू हो गया है। वहीं दूसरे फेज के लिए तमाम दिग्गज चुनावी मैदान में नजर आ रहे हैं। गुजरात में बीते 27 साल से भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और बीजेपी की संयुक्त रणनीति यहां असरदार रही है कि दूसरी सियासी पार्टियां चुनावी रेस तक में नजर नहीं आती है। करीब तीन दशक को छूने के लिए बेकरार इस सफर में सत्ता विरोधी लहर जैसे फैक्टर का भी असर शून्य सरीखा नजर आता है। गुजरात में एक कहावत है: "जब कुछ नहीं काम करता, तो मोदी काम करते हैं। इस बात में सच्चाई है कि साल 2002 के बाद से ही बीजेपी का वोट प्रतिशत इस राज्य में घटता रहा है। 2007, 2012 और 2017 में भी सीटें लगातार कम हुई है फिर भी एक चीज कॉमन नजर आती है वो बीजेपी का राज्य में बहुमत पा जाना।
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1985 की सहानुभूति लहर
1980 में हिंदुत्व लहर चरम पर थी। लोगों को भय, भूख और भ्रष्टाचार से मुक्ति इस कार्यकाल में दिलाने का वादा किया गया। फिर वर्ष 1984 के आम चुनाव ऐसे वक्त में हुए जब कांग्रेस इंदिरा गांधी की हत्या से पैदा सहानुभूति की लहर पर सवार थी। इन चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को महज दो सीटें मिली थीं। 1990 की राम जन्मभूमि लहर कांग्रेस को 1960 में राज्य गठन के बाद को सबसे बड़ी हार मिली। आडवाणी की रथयात्रा सोमनाथ से चली और इसने अयोध्या आंदोलन को नई दिशा दी। इससे हिंदुत्व लहर बनी और जनता दल-बीजेपी की साझा सरकार बन पाई।
1995 की हिंदुत्व लहर
पहली बार बीजेपी चुनाव ने गुजरात में खुद के दम पर सरकार बनाई। बीजेपी का जनता दल से गठजोड़ टूटा। अयोध्या में विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद हिंदुत्व लहर चरम पर थी।
1998 की खजूरिया-हजूरिया लहर
1995 में बनी बेजेपी की सरकार में केशुभाई पटेल के सीएम बनने से नाराज शंकर सिंह वाघेला 121 में से 105 विधायकों के साथ पार्टी छोड़ दिए। बागियों को खजूराहो ले जाया गया जिससे उन्हें खजूरियन नाम मिला। वाघेला ने कांग्रेस के सपोर्ट से सरकार बनाई मगर हाईकमान से रिश्ते खराब हुए और 1998 में चुनाव कराने पड़े। चुनाव में खजूरिया हजुरिया लहर चली और बीजेपी बहुमत से जीती, केशुभाई सीएम बने।
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2002 की गोधरा लहर से केशूभाई बीजेपी के सीएम तो बने मगर उनके काल में कभी भयंकर सूखा आया तो कभी तूफान। 2001 में उनकी जगह नरेंद्र मोदी को सीएम बनाया गया। साबरमती एक्सप्रेस की घटना और उसके बाद भड़के सांप्रदायिक दंगों ने हिंदू वोटों को एकजुट किया और बीजेपी अगले चुनाव में 127 सीटें जीत गई।
2007 में मौत का सौदागर
2007 के चुनाव में सोनिया गांधी ने उन्हें मौत का सौदागर कहा तो बेजीपी ने मुद्दा बना लिया और जीत गयी।
2012 में मोदी लहर
दिसंबर 2012 तक साफ हो गया कि मोदी 2014 में बीजेपी के पीएम पद के उम्मीदवार होंगे। राज्य के लोगों के मन में यह बात आ गई कि वे सीएम नहीं, पीएम चुन रहे हैं। वहीं थ्री डी चुनाव प्रचार भी हुआ। इससे बीजेपी ने राज्य में बढ़िया वापसी की।
2017 में नाराजगी की लहर
हार्दिक पटेल की अगुआई में पाटीदार समाज ओबीसी कोटा मांग रहा था। अल्पेश ठाकोर का कहना था इससे बाकियों के हिस्से पर असर न हो। जिग्नेश मेवानी दलित अधिकार के मुद्दे उठा रहे थे। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने आक्रामक प्रचार किया जिससे बीजेपी जीत तो गई मगर सीटें कम हो गईं।
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पीएम मोदी का अपमान, होगा कांग्रेस का नुकसान?
कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का बयान अब कांग्रेस के गले की फांस बनता हुआ नजर आ रहा है। बीजेपी इस मुद्दे को लेकर पूरी तरह से हमलावर हो गई है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जब चुनावी समर में उतरे तो करारा हमला बोलते हुए कहा कि प्रधानमंत्री के लिए इस तरह के शब्दों का प्रयोग किया जाना ये बताता है कि उनकी मंशा क्या है। वहीं बीजेपी चीफ जेपी नड्डा तो उन्होंने भी कहा कि ये खरगे के बयान नहीं बल्कि कांग्रेस की सोच है। ऐसे में क्या इस बार भी कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के ये बयान कांग्रेस को नुकसान पहुंचाएंगे?
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