आखिर क्या है Electoral Bond, इसको लेकर इतना हंगामा क्यों है बरपा?
यूं तो चुनाव में चंदा देना आम बात है। लेकिन ये चंदा कौन दे रहा है? कितना दे रहा है, किसे दे रहा है और क्यों दे रहा है? ये सवाल हर चुनाव में उठते रहे हैं। लेकिन इस बार देश की संसद में इलेक्टोरल बांड पर सियासत और बयानबाजी जोरो पर हैं।
चुनाव किसी भी लोकतंत्र के लिए त्योहार सरीखे होते हैं। इसमें बेहतर कल के लिए आम आदमी की आकांक्षाएं और उम्मीदें जुड़ी होती हैं। लेकिन इसी चुनावी प्रक्रिया में कुछ ऐसी चिताएं भी जुड़ी हैं जो बीते सात दशकों से लोकतंत्र के इस पर्व का स्वाद कड़वा कर देती है। पालिटिकल फंडिग और खर्च का सवाल भी चिताओं की फेहरिस्त का हिस्सा है। यूं तो चुनाव में चंदा देना आम बात है। लेकिन ये चंदा कौन दे रहा है? कितना दे रहा है, किसे दे रहा है और क्यों दे रहा है? ये सवाल हर चुनाव में उठते रहे हैं। लेकिन इस बार देश की संसद में इलेक्टोरल बांड पर सियासत और बयानबाजी जोरो पर हैं। पहले राहुल गांधी ट्वीटर पर इसे घूस और अवैध कमीशन का दूसरा नाम बता चुके हैं वहीं लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता मामले की गंभीरता बताने में लगे हैं और मनीष तिवारी ने तो सरकार पर ही गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
- चुनावों में राजनीतिक दलों के चंदा जुटाने की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के उद्देश्य से चुनावी बांड लाए गए।
- 5 कानूनों में बदलाव कर चुनावी बांड की योजना लाई गई।
- 2 जनवरी 2018 को चुनावी बांड की योजना को अधिसूचित किया गया।
- कोई भी भारतीय नागरिक, संस्था या फिर कंपनी चुनावी बांड खरीद सकती है।
- बांड खरीदने के लिए KYC फार्म भरना जरूरी है।
- बांड नकद नहीं केवल बैंक अकाउंट से ही खरीद सकते हैं।
- बांड बेचने के लिए केवल SBI को ही अधिकृत किया गया है।
- देश में ऐसे 29 ब्रांच हैं जहां से इसे खरीदा जा सकता है।
- बांड खरीदने वाले का नाम गुप्त रखा जाएगा, लेकिन बैंक खाते की जानकारी होगी।
- बांड के जरिए दिया गया चंदा टैक्स मुक्त होगा।
- इल्केटोरल बांड साल भर में चार बार जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में जारी किए जाते हैं और 10 दिन तक बेचे जाते हैं।
- लोकसभा चुनाव के दौरान एक महीने तक इसकी बिक्री होती है और फिर सरकार के विवेक पर है कि वो कब उन्हें बिक्री के लिए खोलता है।
- चुनावी बांड 15 दिन के लिए वैध होंगे और तय समय सीमा में न भुनाए जाने पर पैसा प्रधानमंत्री राहत कोष में चला जाएगा।
- केवल पंजीकृत राजनीतिक पार्टियां जिन्होंने लोकसभा या विधानसभा चुनावों में डाले गए मतों के कम से कम 1 फीसदी का मत प्राप्त किए हो वो चुनावी बांड ले सकती है।
- हर राजनीतिक पार्टी को चुनाव आयोग को बताना होगा कि बांड के जरिए उसे कितनी राशि मिली है।
- अब तक राजनीतिक दलों को नगद चंदा देने की सीमा 2 हजार रुपए तक निर्धारित थी।
- इन इलेक्टोरल बांड की कीमत 10 हजार से शुरु होती है और 1 करोड़ तक जाती है।
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