मनोबल गिराने वाला हो सकता है, संवेदनशाील मुद्दों को हवा नहीं देनी चाहिए, CBI को पिंजरे का तोता बताने वाली SC की टिप्पणी पर बोले उपराष्ट्रपति

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अभिनय आकाश । Sep 16 2024 5:27PM

संस्थाओं को हर साल गड़बड़ियों पर नजर रखनी होती है। एजेंसियां कानून के शासन के तहत स्वतंत्र रूप से काम करती हैं। धनखड़ ने कहा कि यह एक राजनीतिक बहस को जन्म दे सकता है। हमें अपनी संस्थाओं के बारे में बेहद सचेत रहना होगा।

सीबीआई को पिंजरे का तोता बताने वाली सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर अब उपराष्ट्रपति की तरफ से प्रतिक्रिया सामने आई है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि चुनाव आयोग और जांच एजेंसियों सहित संस्थाएं कठिन परिस्थितियों में अपने कर्तव्यों का पालन करती हैं। उनके बारे में कोई भी टिप्पणी करना उनका मनोबल गिराने वाला हो सकता है। धनखड़ ने कहा कि देश की संस्थाओं कठिन माहौल में कानून के अंतर्गत काम करती है। इन संस्थाओं को हर साल गड़बड़ियों पर नजर रखनी होती है। एजेंसियां कानून के शासन के तहत स्वतंत्र रूप से काम करती हैं। धनखड़ ने कहा कि यह एक राजनीतिक बहस को जन्म दे सकता है। हमें अपनी संस्थाओं के बारे में बेहद सचेत रहना होगा। 

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गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश उज्ज्वल भुइयां ने आबकारी नीति घोटाले से संबंधित भ्रष्टाचार के मामले में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी को शुक्रवार को अनुचित करार दिया तथा जांच एजेंसी से कहा कि उसे पिंजरे में बंद तोता की धारणा से निश्चित रूप से बाहर निकलना चाहिए। आम आदमी पार्टी (आप) संयोजक केजरीवाल को जमानत देने को लेकर न्यायमूर्ति सूयकांत के निर्णय से सहमति जताने वाले, परंतु अलग से लिखे अपने फैसले में न्यायमूर्ति भुइयां ने सीबीआई द्वारा मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी के समय को लेकर सवाल किया। न्यायमूर्ति भुइयां ने कहा कि एजेंसी का उद्देश्य प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) मामले में केजरीवाल को मिली जमानत में बाधा डालना था। 

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उपराष्ट्रपति ने कहा कि कानून के शासन द्वारा संचालित एक कार्यशील लोकतंत्र में धारणा मायने रखती है। देश के सभी अंग मिलकर काम करते हैं। उनका एक ही उद्देश्य होता है कि लोगों को उनके सारे अधिकार मिल सके। उराष्ट्रपति ने कहा कि सभी संस्थाओं को संवैधैनिक मूल्यों का पालन करते हुए एक साथ मिलकर काम करना चाहिए। इसलिए विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका को राजनीतिक रूप से संवेदनशाील मुद्दों को हवा नहीं देनी चाहिए।   

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