Uttar Pradesh : अदालत ने लेक्चरर के निलंबन को रद्द करने को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की

 Allahabad High Court
ANI

प्रदेश सरकार ने एकल न्यायाधीश के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें व्याख्याता के निलंबन को रद्द कर दिया गया था। व्याख्याता को पहले से शादीशुदा होते हुए भी दूसरा विवाह करने के आरोप में निलंबित किया गया था।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक सरकारी डिग्री कॉलेज के व्याख्याता (लेक्चरर) के निलंबन को रद्द करने के फैसले को चुनौती देने वाली उत्तर प्रदेश सरकार की एक याचिका को खारिज करते हुए कहा कि कर्मचारी पर मामूली दंड भी तभी लगाया जाए जब नियोक्ता उसके खिलाफ लगाए गए आरोपों को सही पाए।

प्रदेश सरकार ने एकल न्यायाधीश के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें व्याख्याता के निलंबन को रद्द कर दिया गया था। व्याख्याता को पहले से शादीशुदा होते हुए भी दूसरा विवाह करने के आरोप में निलंबित किया गया था।

राज्य सरकार की विशेष अर्जी को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति सैयद कमर हसन रिजवी ने 11 मार्च को सुनाए अपने फैसले में कहा, मामूली दंड जैसे अधिकार का उपयोग करने के लिए राज्य सरकार को कर्मचारी को उसके खिलाफ लगाए गए आरोप की जानकारी देनी होगी और उचित समय के भीतर उससे स्पष्टीकरण मांगना होगा।

पीठ ने कहा, राजकीय कर्मचारी अनुशासन एवं अपील नियम 1999 के नियम चार तहत कर्मचारी के खिलाफ कोई कार्रवाई करने से पूर्व उसके खिलाफ जांच की जानी चाहिए और उसे अपना पक्ष रखने का अवसर दिया जाना चाहिए। मौजूदा मामले में यह दोनों ही जरूरतें पूरी नहीं की गईं।

इससे पहले एकल न्यायाधीश ने राज्य सरकार द्वारा 27 जुलाई, 2023 को पारित आदेश रद्द कर दिया था, जिसमें चुनार के राजकीय डिग्री कालेज में संस्कृत के व्याख्याता भास्कर प्रसाद द्विवेदी को इस आरोप में निलंबित कर दिया गया कि उन्होंने पहले से विवाहित होने के बावजूद दूसरा विवाह कर लिया। एकल न्यायाधीश ने इस तथ्य को संज्ञान में लिया था कि वास्तव में कोई जांच रिपोर्ट पेश नहीं की गई, जिसके आधार पर नियोक्ता ने निलंबन का निर्णय लिया।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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