पत्रकारिता विश्वविद्यालय ने कोरोना काल में छात्राओं से शुल्क वसूलने निकाला आदेश, NSUI ने विरोध जताते हुए कोर्ट जाने की दी धमकी
छात्रावास शुल्क के रूप में 5250 रूपए और मेस शुल्क के रूप में 3900 रूपए कुल 9150 रूपए जमा करने का आदेश है। वही जो छात्राएं इस दौरान छात्रावास में नहीं रही उनसे सिर्फ छात्रावास शुल्क 5250 रूपए भुगतान करने का आदेश दिया गया है। जिसकी अंतिम तारीख 15 जून 2020 निर्धारित की गई है।
भोपाल। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय ने हॉस्टल में रहने वाली छात्राओं से लॉकडाउन अवधि में रहने और खाने का शुल्क जमा करने का आदेश जारी किया है। आदेश में छात्रावास और मेल शुल्क जमा करने की बात कही गई है। आदेश में स्पष्ट लिखा है कि शुल्क की चतुर्थ किस्त भुगतान हेतु में कोविड-19 महामारी के लॉकडाउन के कारण निम्नानुसार संशोधन किया जाता है। जिसमें छात्रावास शुल्क के रूप में 5250 रूपए और मेस शुल्क के रूप में 3900 रूपए कुल 9150 रूपए जमा करने का आदेश है। वही जो छात्राएं इस दौरान छात्रावास में नहीं रही उनसे सिर्फ छात्रावास शुल्क 5250 रूपए भुगतान करने का आदेश दिया गया है। जिसकी अंतिम तारीख 15 जून 2020 निर्धारित की गई है। इसको लेकर छात्राएं पशोपेश में है।
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वही भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन (NSUI) ने शुल्क वसूली के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। एनएसयूआई के प्रदेश प्रवक्ता सुह्रद तिवारी ने विश्वविद्यालय के कुलपति को पत्र लिखकर कन्या छात्रावास में निवासरत छात्राओं पर ज़बरदस्ती फीस का दवाब डालने वाले आदेश का विरोध किया है। सुह्रद तिवारी ने ज्ञापन के माध्यम से विश्वविद्यालय के कुलपति को प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की 'रूम रेंट माफ करने वाली' घोषणा याद दिलाते हुए कहा है कि जब देश के प्रधानमंत्री और प्रदेश के मुख्यमंत्री खुद फीस माफ करने की घोषणा कर चुके हैं। ऐसे में विश्वविद्यालय प्रशासन का आदेश क्या न्याय संगत है? तिवारी ने कहा कि देश में हुए अचानक लॉकडाउन के कारण कई छात्राएं हॉस्टल में फँस गई थी। उनसे निर्धारित शुल्क वसूलना न्याय संगत नहीं है। उनसे खाने और छात्रावास में रहने का शुल्क लेना गलत है।
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एनएसयूआई प्रवक्ता सुह्रद तिवारी ने कहा कि जबकि इस महामारी में भी विश्वविद्यालय छात्राओं से पैसे वसूलने में लगा है। जो विश्वविद्यालय का असली चेहरा उजागर करता है और हम इसकी घोर भर्त्सना करते हैं। उन्होनें कुलपति महोदय को चेताते हुए कहा है कि अगर विश्वविद्यालय प्रशासन ने अपने इस आदेश को वापस नही लिया तो इसके विरोध में NSUI कोर्ट की शरण में जाएगी जिसकी सम्पूर्ण जिम्मेदारी प्रशासन और स्वयं कुलपति महोदय की होगी।
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