Dalai Lama Birthday: 88 साल के हुए तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा, शऱण देने के लिए भारत को चुकानी पड़ी थी बड़ी कीमत

Dalai Lama Birthday
Creative Commons licenses

आज यानी की 6 जून को तिब्‍बती धर्म गुरु और 14वें दलाई लामा अपना 88वां जन्मदिन मना रहे हैं। बता दें कि दलाई लामा हिमाचल प्रदेश की धर्मशाला में रहते हैं और यहीं से वह तिब्बत की संप्रभुता के लिए अहिंसात्मक संघर्ष कर रहे हैं।

तिब्‍बती धर्म गुरु और 14वें दलाई लामा आज यानी की 6 जुलाई को अपना 88वां जन्मदिन मना रहे हैं। पूर्वोत्तर तिब्बत के एक किसान परिवार में 6 जुलाई 1935 को दलाई लामा तेनज़िन ग्यात्सो का जन्‍म हुआ था। बता दें कि कई आध्‍यात्मिक संकेतों का पालन करने और 13वें दलाई लामा के उत्‍तराधिकारी की खोज के दौरान 2 साल की उम्र में ल्‍हामो थोंडुप स्थित धार्मिक अधिकारियों ने दलाई लामा तेनज़िन ग्यात्सो की पहचान की। इस तरह से उन्हें 14वां दलाई लामा घोषित किया गया। 

हालांकि साल 1959 में चीनी शासन के खिलाफ एक असफल तिब्बती विद्रोह करने के बाद वह सैनिक की वेशभूषा में भारत भाग आए। तब से लेकर आजतक वह हिमाचल प्रदेश की धर्मशाला में रह निवास कर रहे हैं। भारत देश में रहकर वह तिब्‍बत की संप्रभुता के लिए अहिंसात्‍मक संघर्ष कर रहे हैं। आइए जानते हैं उनके जन्मदिन के मौके पर दलाई लामा के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

घड़ियों की मरम्मत करने का शौक

आपको जानकर हैरानी होगी कि मेडिटेशन और गार्डनिंग के अलावा दलाई लामा को घड़ियों की मरम्मत करना काफी पसंद है। घड़ियों के शौकीन वह उस दौरान हुए थे, जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रूजवेल्ट ने उन्हें रोलेक्स घड़ी भेंट की थी। हालांकि उन्हें बचपन से ही तकनीकी चीजों की मरम्मत करने का शौक रहा है। बता दें कि उन्होंने पुराने फिल्म प्रोजेक्टर और कार आदि की भी मरम्मत की है।

ऐसे रखा था भारत में कदम

साल 1959 में लदाई लामा तिब्बत की राजधानी ल्हासा से पैदल ही भारत के लिए निकल पड़े थे। इस दौरान हिमालय के पहाड़ों को पार करते हुए वह महज 15 दिनों के अंदर भारत की सीमा में आ गए थे। प्राप्त जानकारी के अनुसार, वह 31 मार्च 1959 को भारतीय़ सीमा में दाखिल हुए थे। जिसके बाद वह हमेशा के लिए भारत के हो गए। इस यात्रा के दौरान उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। क्योंकि चीन की नजरों से बचने के लिए वह सिर्फ रात में ही सफर करते थे।

भारत से चलाते हैं तिब्बत की सरकार

हिमाचल प्रदेश की धर्मशाला में रहते हुए दलाई लामा तिब्बत की निर्वासित सरकार को चलाते है। जिसका चुनाव भी होता है और इस चुनाव में दुनियाभर के तिब्बती शरणार्थी मतदान करते हैं। हालांकि मतदान करने से पहले शरणार्थी तिब्बतियों को रजिस्ट्रेशन करवाना होता है। चुनाव के दौरान तिब्बती लोग अपने सिकयोंग यानी राष्ट्रपति को चुनते हैं। अपने देश की तरह ही तिब्बत की संसद का कार्यकाल भी 5 साल का होता है। इस दौरान चुनाव लड़ने और मतदान करने का अधिकार सिर्फ उन तिब्बतियों के पास होता है। जिनके पास ग्रीन बुक होती है। सेंट्रल तिब्बतन एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा यह बुक जारी की जाती है। एक तरह से इसे पहचान पत्र भी कहा जा सकता है।

भारत-चीन का युद्ध

साल 1962 में दलाई लामा और उनकी सरकार भारत आ गई थी। जिसके कारण भारत को चीन की नाराजगी का सामना करना पड़ा था। दरअसल, चीन ने दलाई लामा के भारत आ जाने की घटना को युद्ध के रूप में शुरू करने के बहाने के रूप में इस्तेमाल किया। हालांकि साल 1959 में हुए तिब्बती विद्रोह में भारत शामिल नहीं था। लेकिन इसके बाद भी चीन ने इस विद्रोह के लिए भारत को दोषी ठहराया। 

चीन ने भारत पर आरोप लगाते हुए कहा कि दलाई लामा तिब्बती क्षेत्र से भगाने की योजना में भारत शामिल था। उनकी तरफ से दावा किया गया कि चीन विरोधी प्रचार और सीमा पर आक्रामकता में नई दिल्ली शामिल थी। दलाई लामा द्वारा भारत आना और यहां पर शरण लेने का चीन ने कड़ा विरोध जताया था। इस बात का बदला लेने के लिए चीन ने 20 अक्टूबर 1962 को भारत पर हमला कर दिया था।

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़