मालवा-निमाड़ के चुनावी रण में दांव पर दिग्गजों का सियासी भविष्य
पांचों नेता शिवराज सिंह चौहान की निवर्तमान भाजपा सरकार में मंत्री हैं। इनके अलावा, प्रदेश के पूर्व मंत्री और मौजूदा भाजपा विधायक महेंद्र हार्डिया (65) भी इसी अंचल की इंदौर-पांच सीट से फिर उम्मीदवार हैं।
इंदौर। मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों का कल बुधवार को होने वाला मतदान मालवा-निमाड़ अंचल के कई वरिष्ठ राजनेताओं का सियासी भविष्य भी तय करेगा। "सत्ता की चाबी" कहे जाने वाले इस क्षेत्र में भाजपा ने अपनी मजबूत पकड़ बरकरार रखने के लिये जोर लगाया है, तो कांग्रेस ने पिछले 15 साल से सत्तारूढ़ दल के गढ़ में सेंध लगाने की भरसक कोशिश की है। मालवा-निमाड़ अंचल की अलग-अलग सीटों से भाजपा की ओर से चुनावी मैदान में उतरे वरिष्ठ राजनेताओं में पारस जैन (68), अर्चना चिटनीस (54), अंतरसिंह आर्य (59), विजय शाह (54) और बालकृष्ण पाटीदार (64) शामिल हैं। पांचों नेता शिवराज सिंह चौहान की निवर्तमान भाजपा सरकार में मंत्री हैं। इनके अलावा, प्रदेश के पूर्व मंत्री और मौजूदा भाजपा विधायक महेंद्र हार्डिया (65) भी इसी अंचल की इंदौर-पांच सीट से फिर उम्मीदवार हैं।
Madhya Pradesh: Visuals of preparation from Bhopal ahead of #MadhyaPradeshElections2018 , the voting for which will be held tomorrow. pic.twitter.com/NNxyOcqlcG
— ANI (@ANI) November 27, 2018
उधर, कांग्रेस की ओर से मालवा-निमाड़ अंचल में किस्मत आजमा रहे दिग्गजों में चार पूर्व मंत्री-सुभाष कुमार सोजतिया (66), नरेंद्र नाहटा (72), हुकुमसिंह कराड़ा (62) और बाला बच्चन (54) शामिल हैं। इसी क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे दो अन्य वरिष्ठ कांग्रेस नेता-विजयलक्ष्मी साधौ (58) और सज्जनसिंह वर्मा (66) गुजरे बरसों के दौरान अपने अलग-अलग कार्यकालों में सांसद और प्रदेश सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं।
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कुल 230 सीटों वाली प्रदेश विधानसभा में मालवा-निमाड़ अंचल की 66 सीटें शामिल हैं। पश्चिमी मध्यप्रदेश के इंदौर और उज्जैन संभागों में फैले इस अंचल में आदिवासी और किसान तबके के मतदाताओं की बड़ी तादाद है। मालवा-निमाड़ का चुनावी महत्व इसी बात से समझा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के साथ कांग्रेस प्रमुख राहुल गांधी ने भी चुनाव प्रचार के दौरान इस क्षेत्र में बड़ी रैलियों को सम्बोधित किया है।
सत्ताविरोधी रुझान को लेकर कांग्रेस के आरोपों के बीच सियासी जानकारों का मानना है कि भाजपा के लिये इस बार मालवा-निमाड़ में चुनावी लड़ाई आसान नहीं है। सत्तारूढ़ दल को टिकट वितरण पर अपने ही खेमे में गहरे असंतोष का सामना करना पड़ा है और कुछ बागी नेता निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़कर उसकी मुश्किलें बढ़ा रहे हैं। उधर, पिछले 15 साल से सूबे की सत्ता से वनवास झेल रही कांग्रेस मालवा-निमाड़ अंचल में अपना खोया जनाधार हासिल करने की चुनौती से जूझ रही है जबकि यह इलाका एक जमाने में उसका गढ़ हुआ करता था।
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मालवा-निमाड़ अंचल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की जड़ें भी बहुत गहरी हैं। ऐसे में जानकारों का आकलन है कि इस क्षेत्र में चुनाव परिणाम तय करने में "संघ फैक्टर" भी अहम भूमिका निभा सकता है। वर्ष 2013 के पिछले विधानसभा चुनावों में मालवा-निमाड़ की 66 सीटों में से भाजपा ने 56 सीटें जीती थी, जबकि कांग्रेस को केवल नौ सीटों से संतोष करना पड़ा था। भाजपा के बागी नेता के खाते में एक सीट आयी थी जिसने अपनी पार्टी से टिकट नहीं मिलने के कारण निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था।
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