रोजगार के अवसर मुहैया करा नहीं पाते तो निजी क्षेत्र में भी आरक्षण का दाँव चल देते हैं नेता

Siddaramaiah
ANI

हम आपको बता दें कि कारोबार और प्रौद्योगिकी क्षेत्र के लोगों की तीखी आलोचना के बाद कर्नाटक सरकार ने उस विधेयक को ठंडे बस्ते में डाल दिया जिसमें निजी क्षेत्र में कन्नड़ भाषियों के लिए आरक्षण अनिवार्य किया गया था।

हमारे देश में राजनीति आरक्षण के इर्दगिर्द ही घूमती है। राजनीतिक दलों ने जनता के एक वर्ग के मन में यह बात भर दी है कि सिर्फ आरक्षण ही भला कर सकता है। जबकि असल में भला तब होगा जब अवसर ज्यादा पैदा होंगे। नेता अवसर ज्यादा मुहैया करा नहीं पाते इसलिए जनता आरक्षण के भरोसे बैठी रहती है। दरअसल बेरोजगारी समाप्त करने के लिए सत्तारुढ़ दलों के पास कोई ठोस और दूरगामी नीति है ही नहीं उन्हें तो बस पका पकाया चाहिए होता है जोकि उन्हें निजी उद्योगों में नजर आता है इसीलिए जब-तब उनके लिए कोई ना कोई फरमान जारी होते रहते हैं। रोजगार के अवसरों को बढ़ाने में विफल सरकारों के समक्ष जब जनता ने यह सवाल उठाया कि ऐसे में जबकि सरकारी नौकरियों की संख्या ही कम होती जा रही है तो आरक्षण का हम करेंगे क्या? तो नेताओं ने आसान हल निकालते हुए निजी क्षेत्र की नौकरियों में आरक्षण की ओर कदम बढ़ा दिया। निजी क्षेत्र योग्यता के आधार पर नौकरियां देता है और उसी के बलबूते आगे बढ़ता है लेकिन सरकार यहां भी आरक्षण लागू करना चाहती है। यह एक तरह से निजी क्षेत्र को बर्बाद करने की दिशा में बढ़ाया जाने वाला कदम है। ताजा उदाहरण कर्नाटक का है जहां मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने निजी क्षेत्र की नौकरियों में आरक्षण का बड़ा दांव चल दिया लेकिन जब उद्योग जगत से भारी विरोध हुआ तो फैसला वापस ले लिया।

हम आपको बता दें कि कारोबार और प्रौद्योगिकी क्षेत्र के लोगों की तीखी आलोचना के बाद कर्नाटक सरकार ने उस विधेयक को ठंडे बस्ते में डाल दिया जिसमें निजी क्षेत्र में कन्नड़ भाषियों के लिए आरक्षण अनिवार्य किया गया था। मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से बुधवार को जारी एक बयान में कहा गया, ‘‘निजी क्षेत्र के संस्थानों, उद्योगों और उद्यमों में कन्नड़ भाषियों को आरक्षण देने के लिए मंत्रिमंडल द्वारा स्वीकृत विधेयक को अस्थायी रूप से रोक दिया गया है। इस पर आगामी दिनों में फिर से विचार किया जाएगा और निर्णय लिया जाएगा।’’ इससे पहले, कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने भी ‘एक्स’ पर पोस्ट किया था, ‘‘निजी क्षेत्र के संस्थानों, उद्योगों और उद्यमों में कन्नड़ भाषी लोगों के लिए आरक्षण लागू करने का विधेयक अभी तैयारी के चरण में है। मंत्रिमंडल की अगली बैठक में व्यापक चर्चा के बाद अंतिम निर्णय लिया जाएगा।’’ 

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उद्योग जगत ने किया था तीव्र विरोध

हम आपको बता दें कि कर्नाटक राज्य उद्योग, कारखानों और अन्य प्रतिष्ठानों में स्थानीय उम्मीदवारों के लिए रोजगार विधेयक, 2024 को सोमवार को राज्य मंत्रिमंडल ने मंजूरी दी थी। इस विधेयक को आज विधानसभा में पेश किए जाने की संभावना थी। विधेयक में कहा गया, ‘‘किसी भी उद्योग, कारखाने या अन्य प्रतिष्ठानों को प्रबंधन श्रेणियों में 50 प्रतिशत और गैर-प्रबंधन श्रेणियों में 70 प्रतिशत स्थानीय उम्मीदवारों की नियुक्ति करनी होगी।’’ 

हालांकि कारोबार क्षेत्र की हस्तियों ने प्रस्तावित कोटे पर आपत्ति जताते हुए इसे ‘फासीवादी’ और ‘अदूरदर्शी’ बताया था। जानेमाने उद्यमी एवं इंफोसिस के पूर्व मुख्य वित्त अधिकारी टी.वी. मोहनदास पई ने विधेयक को ‘फासीवादी’ करार दिया। उन्होंने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘इस विधेयक को रद्द कर देना चाहिए। यह पक्षपातपूर्ण, प्रतिगामी और संविधान के विरुद्ध है। अविश्वसनीय है कि कांग्रेस इस तरह का विधेयक लेकर आई है-एक सरकारी अधिकारी निजी क्षेत्र की भर्ती समितियों में बैठेगा? लोगों को भाषा की परीक्षा देनी होगी...?’’

फार्मा कंपनी ‘बायोकॉन’ की प्रबंध निदेशक किरण मजूमदार शॉ ने कहा, ‘‘एक प्रौद्योगिकी केंद्र के रूप में हमें कुशल प्रतिभा की आवश्यकता है और हमारा उद्देश्य स्थानीय लोगों को रोजगार प्रदान करना है। हमें इस कदम से प्रौद्योगिकी में अपनी अग्रणी स्थिति को प्रभावित नहीं करना चाहिए...।’’ एसोचैम की कर्नाटक इकाई के सह अध्यक्ष आर.के. मिश्रा ने ‘एक्स’ पर पोस्ट में तंज कसते हुए कहा, ‘‘कर्नाटक सरकार का एक और प्रतिभावान कदम। स्थानीय स्तर पर आरक्षण और हर कंपनी की निगरानी के लिए सरकारी अधिकारियों की नियुक्ति को अनिवार्य बनाना। इससे भारतीय आईटी और जीसीसी भयभीत होंगे। अदूरदर्शी।’’

हरियाणा सरकार के बिल में क्या था?

हम आपको बता दें कि कर्नाटक का यह कदम हरियाणा सरकार द्वारा पेश किए गए विधेयक जैसा ही है, जिसमें राज्य के निवासियों के लिए निजी क्षेत्र की नौकरियों में 75 प्रतिशत आरक्षण अनिवार्य किया गया था। हालांकि, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने 17 नवंबर 2023 को हरियाणा सरकार के फैसले को रद्द कर दिया था। हरियाणा सरकार के फैसले को रद्द करते हुए अदालत ने कहा था कि यह पूरी तरह से असंवैधानिक है। हाईकोर्ट ने हरियाणा राज्य स्थानीय उम्मीदवारों के रोजगार अधिनियम, 2020 को असंवैधानिक करार देते हुए कहा था कि यह अधिनियम बेहद खतरनाक है और संविधान के भाग-3 का उल्लंघन करता है। बहरहाल, देखा जाये तो निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू करने की बात कर नेता चुनावों के दौरान बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर पैदा करने के अपने वादे से पल्ला झाड़ लेते हैं इसलिए उनके उल जुलूल फैसलों का विरोध किया ही जाना चाहिए।

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