सरकार तो गई, अब JDS विधायक भी कुमारस्वामी का साथ छोड़ने जा रहे हैं
एचडी कुमारस्वामी के मुख्यमंत्री रहने के बावजूद JDS की सत्ता से पकड़ कमजोर होती गई। साथ ही साथ दोनों दलों के विधायकों ने भी बगावत शुरू कर दी। इस बगावत का नतीजा ये रहा कि कांग्रेस-JDS की सरकार चली गई और भाजपा सत्ता में वापसी कर गई।
पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा की पार्टी में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। 1999 में जनता दल से अलग होकर एचडी देवेगौड़ा ने जनता दल सेक्युलर का गठन किया था। लेकिन जिन सपनों को लेकर पार्टी की नीव रखी गई थी, वो सपने सपने ही रह गए। चाहे लोकसभा के चुनाव हो या फिर विधानसभा के, पार्टी कभी अपने दम पर अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकी। 2004 के विधानसभा चुनाव में JDS ने अपने अब तक के इतिहास का सबसे ज्यादा 59 सीटें जीती हैं। हालांकि पार्टी का प्रदर्शन लगातार गिरता ही रहा। 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने महज 37 सीटों पर जीत दर्ज की। हालांकि विधानसभा के चुनाव में खराब प्रर्दशन के बावजूद JDS नेता एचडी कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने। यह दूसरा मौका था जब JDS किसी अन्य दल के सहयोग से सत्ता में आई हो। 2018 के चुनाव में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिली और कांग्रेस ने भाजपा को रोकने के लिए JDS को बिना शर्त समर्थन दे दिया। हालांकि बाद में स्थितियां बदली, एचडी कुमारस्वामी के मुख्यमंत्री रहने के बावजूद JDS की सत्ता से पकड़ कमजोर होती गई। साथ ही साथ दोनों दलों के विधायकों ने भी बगावत शुरू कर दी। इस बगावत का नतीजा ये रहा कि कांग्रेस-JDS की सरकार चली गई और भाजपा सत्ता में वापसी कर गई।
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जुलाई 2019 में सत्ता जाने के बाद भी JDS की मुश्किलें बढ़ती गई। अक्टूबर आते-आते पार्टी की स्थिति यह हो गई है कि विधायक देवेगौड़ा और उनके परिवार के खिलाफ ही झंड़ा बुलंद करने लगे हैं। खबरों की मानें तो 27 विधायकों जिसमें 11 विधान पार्षद भी शामिल हैं, ने पार्टी के पहले परिवार के खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी है। माना जा रहा है कि इसकी गूंज JDS के लिए घातक हो सकती है। नाराज विधायकों ने एचडी देवेगौड़ा, एचडी कुमारस्वामी और एचडी रवन्ना के खिलाफ बोला है जो कि आगे भी बढ़ सकता है। लगभग एक सप्ताह पहले नाखुश विधायकों से मिलने के बाद, देवेगौड़ा ने शांति की कोशिश जरूर की, लेकिन किसी ने भी उस में दिलचस्पी नहीं जताई। JDS के भीतर इस विवाद का कारण आने वाला उपचुनाव माना जा रहा है। सूत्र यह भी बताते हैं कि नबंवर में अपने आगे की रणनीति पर ये विधायक मैंगलोर में बैठक कर सकते हैं। वरिष्ठ पार्टी विधायक ने कहा कि जब कांग्रेस-JDS की सरकार थी तो हमें पार्टी हमें गंभीरता से नहीं लेती थी और फंड के बंटवारे में हमशे भेदभाव किया जाता था। उन्होंने कहा कि जब वो हमें चाहते ही नहीं तो उनके साथ हम क्यों रहें?
इस बीच एचडी कुमारस्वामी जेल में बंद कांग्रेस के दिग्गज नेता डीके शिवकुमार से मिलने पहुंचे। इस मुलाकात के बाद माना जा रहा है कि दोनों दल एक साथ चुनाव लड़ने पर विचार कर सकते हैं। हालांकि इससे पहले JDS कई बार ये कह चुकी है कि वो कांग्रेस से अलग होकर चुनाव लड़ेगी। इस मुकालात को लेकर जब कुमारस्वामी से सवाल किए गए तो उन्होंने कहा कि राजनीतिक मुद्दे और व्यक्तिगत संबंध अलग-अलग हैं। मैं निजी तौर पर उनसे मिलने आया था। वह राजनीतिक प्रतिशोध का सामना कर रहे हैं, मैं उन्हें विश्वास दिलाने के लिए यहां था। वह मानसिक रूप से बहुत मजबूत हैं।
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कहते हैं राजनीति में कुछ भी स्थाई नहीं है। यहां चुनावी फायदे के लिए समीकरण बनते और बिगड़ते रहते हैं। अपने विधायकों के बगावत के बाद हो सकता है जेडीएस को कांग्रेस से कुछ मदद की उम्मीद हो। यह भी हो सकती है कि जेडीएस कांग्रेस को मदद करने के लिए उपचुनाव से किनारा कर ले। जेडीएस के ऐसा करने से कांग्रेस को फायदा हो सकता है और अगर सभी सीटों पर कांग्रेस जीत जाती है तो भाजपा सरकार के लिए मुसीबत पैदा हो सकता है। लेकिन एक बात यह भी है कि जेडीएस और कांग्रेस की गठबंधन वाली सरकार अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी। जिसका मुख्य कारण विधायकों का बागी होना था। एक बार फिर JDS में बगावत के सुर बुलंद हो रहे हैं ऐसे में इसे कांट्रोल करने की जरूरत है अन्यथा पार्टी के लिए आगे की राह मुश्किलों भरी हो सकती है। ऐसे में क्या एक बार फिर जेडीएस क्या आपने बागी विधायकों को मना पाएगी यह बात देखने वाली होगी।
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